Monday, April 29, 2024
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बीकानेर थिएटर फेस्टिवल: ख्यातनाम रंगकर्मी रवि चतुर्वेदी से हुआ रंगकर्म पर संवाद, मंचित हुए तीन नाटक

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बीकानेर abhayindia.com बीकानेर थिएटर फेस्टिवल के दूसरे दिन सोमवार को सुबह रवि चतुर्वेदी के साथ रंगकर्म पर संवाद हुआ जिसमें उन्होंने बताया कि रंगकर्मियों को खुद से मुकाबला करना होगा और और यह समझना होगा कि दर्शक क्या देखना चाहते है तब नाटकों को दर्शक मिलने शुरू होंगे, उन्होंने छह भी कहा कि नाट्य मंडली में निर्देशक, कलाकार, संगीत, प्रकाश प्रभाव आदि के साथ प्रमुख तौर में लेखक को हिस्सा बनना होगा और नाटक इन सभी के मिले जुले प्रयासों से सफल होता है न कि कोई नाटक इनमें से किसी एक का माध्यम होता है, उन्होंने रोजीरोटी के लिए कभी कुलीगिरी भी की। एनएसडी में ट्रेनिंग के दौरान कई रातें बैंच पर बिताईं। पढऩे की धुन ऐसी कि फैकल्टी भी चकाचौंध और फिर एक दिन सारी चकाचौंध को त्याग भी दिया।

 

सेठ तोलाराम बाफना स्कूल परिसर में आयोजित इस रंग-संवाद में रवि की जिंदगी के पन्ने जब खुलने लगे तो उनकी मां का संघर्ष भी सामने आया। शिक्षकों की साजिशें भी खुलीं। जीवन की त्रासदियों के वे क्षण भी साझा हुए जिसमें रवि चतुर्वेदी को लगा जैसे सारी दुनिया उनके विरुद्ध है, लेकिन हार नहीं मानी। जो नहीं जचा, उसका विरोध ही नहीं जरूरत पड़ी तो विद्रोह भी किया, क्योंकि यह जान लिया कि ऑफेंस इज बेस्ट डिफेंस। जब सारे एक्टर बनने की धुन में थे, खुद ने शिक्षक बनना तय किया और आज देश को उन पर गर्व है, क्योंकि उन्होंने लंदन, इजरायल और दुनिया के ऐसे ही कई स्थानों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।

संवाद के दौरान लगा जैसे लगभग हर रंगकर्मी इन परिस्थितियों से होकर निकलता होगा, लेकिन रवि चतुर्वेदी कोई बिरला ही बन पाता है तो उसकी वजह है ग्लेमर और एंबीसन से दूरी। अगर उनमें ऐसा कुछ होता तो उन्हें लोगों के पीछे भागना पड़ता। उन्होंने अपने शिष्य इरफान को भी यही सिखाया। बताया कि हमेशा अहंकार मत करना, सभी के लिए उपलब्ध रहना।

उन्हें संतोष था कि इरफान ने उनकी बात मानी। एनएसडी के किस्से सुनाते हुए वे भावुक हो गए, लेकिन अगले ही पल किसी योद्धा की तरह हुंकार भरते नजर आए। दिल्ली में कैसे रहे, यह भी बताया तो एक मित्र ने उन्हें काम नहीं मिलने तक हर महीने सौ रुपये दिये, यह भी नि:संकोच साझाा किया।

नाट्य शास्त्र पर अपनी अवधारणा को रखा तो यह भी कहने में गुरेज नहीं किया कि नाटक में निर्देशक की सत्ता तो आती ही 1860 के आसपास है। साफ-साफ कहा कि अगर नाटक को दर्शक चाहिये तो रंगकर्मियों को पहले जन का मन टटोलना होगा। समझना होगा कि दर्शक चाहते क्या हैं। एक गांव में नाटक से सत्ता-परिवर्तन के किस्से को सुनाते हुए उन्होंने कहा कि गांव की सरकार एक नाटक से बदल गई, लेकिन उन्हें लगा कि यह काम उनका नहीं है। इसलिए इस काम को आगे नहीं बढ़ाया।

संभवतया पहली बार किसी रंगकर्मी को नाटककार की तरफदारी करते हुए सुना। नाटकों की प्रस्तुति के दौरान सबसे उपेक्षित रहने वाले इस लेखक रूपी किरदार से उन्होंने अपेक्षा की कि वह मंच पर नाटक लिखे तो यह भी कहा कि नाटक-मंडलियों को चाहिए कि वे लेखकों को अपनी टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाएं। लेखक को पारिश्रमिक मिले, उसे क्रेडिट मिले तो अच्छे-अच्छे नाटक सामने आ सकते हैं, क्योंकि राजस्थान में लेखकों की कोई कमी नहीं है।

नि:संदेह, बीकानेर में रवि चतुर्वेदी का आना एक बड़ी घटना के रूप में याद किया जाना चाहिए। यहां अभिनय की कार्यशाला के निमित्त आए रवि चतुर्वेदी ने बच्चों को रंगकर्म की बारीकियां तो सिखाई ही, इस रंग-संवाद में यह भी साबित कर दिया कि एक सख्त दिखने वाला व्यक्तित्व जब खुलता है तो कितना कोमल और कितना उजला भी हो सकता है। मेरे सवालों को स्वीकार करने के लिए उनका मन से आभार। एक यादगार मुलाकात। एक यादगार व्यक्ति। एक यादगार दिन।

समारोह संयोजक सुधेश व्यास ने बताया कि दूसरे दिन तीन नाटकों का मंचन हुआ। पहला नाटक रेलवे प्रेक्षाग्रह मे वाराणसी के कामायनी दल द्वारा सुमित श्रीवास्तव के निर्देशन में ‘गेशे जम्पा’ मंचित हुआ।तिब्बती शरणार्थियों के जीवन पर आधारित नाटक ‘गेशे जम्पा’ को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। नीरजा माधव के उपन्यास ‘गेशे जम्पा’ का नाट्य रूपांतरण तिब्बती शरणार्थियों की मुक्ति साधना और सांस्कृतिक व सामाजिक अस्मिता की छटपटाहट दिखाता है। तिब्बतियों की स्वतंत्र सांस्कृतिक और धार्मिक अस्मिता के प्रश्नों पर छाई वैश्विक चुप्पी तोड़ने की दिशा मे एक छोटी सी हलचल के रूप मे नीरजा माधव का यह अनूठा उपन्यास तिब्बती अनुभूति और उनकी लोक-संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति है ।

समारोह समिति से जुड़े विजय सिंह राठौड़ ने बताया कि फेस्टिवल की दूसरी प्रस्तुति देश के ख्यातनाम रंग निर्देशक स्व. बंसी कौल द्वारा निर्देशित नाटक ‘ज़िंदगी और जोंक’ थी। ‘ज़िन्दगी और जोंक’’ अमरकान्त की एक चर्चित कहानी है। लोगों के छोटे-मोटे काम कर बदले में मिलने वाले भोजन पर जीवन यापन करने वाला एक परजीवी चरित्र कहानी के केन्द्र में है। जो अपने गाँव की विषम आर्थिक परिस्थितियों से उखड़ कर शहर के एक मोहल्ले में डेरा डाल लेता है। कथावाचक यह नहीं समझ पाता है कि वह ज़िन्दगी से जोंक की तरह लिपटा है या फिर खुद ज़िन्दगी। वह ज़िन्दगी का खून चूस रहा था या ज़िन्दगी उसका? इतने अभावों में जिन्दगी के प्रति मोह, उसकी जिजीविषा को प्रकट करती है।

दूसरे दिन की अंतिम प्रस्तुति राजस्थान पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक सौरभ श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित नाटक ‘एक एक्टर की मौत’ था। इस नाटक के मूल लेखक क्रोएशियन लेखन मिरो गवरन हैं और इसका हिन्दी नाट्य रूपांतरण सौरभ श्रीवास्तव द्वारा ही किया गया है। यह कहानी एक एमेच्योर थिएटर एक्टर और  हिन्दी थिएटर, फिल्म और टीवी जगत की मशहूर अदाकारा इरा की ज़िंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है। वह उसे एक वृद्धाश्रम मे चैरिटी शो करने के लिए आमंत्रित करता है । उस नाटक की रिहर्सल के दौरान वो दोनों अपनी अपनी ज़िंदगी और थिएटर क्राफ्ट की बातें करते चलते हैं और एक अनजानी सी दोस्ती और अबूझ सी समझ उन दोनों के बीच उपजती है, जो दर्शकों को अपने साथ एक भावनात्मक सफर पर ले चलती है।

समारोह के तीसरे दिन मंगलवार को सुबह 10 बजे डॉ. नंदकिशोर आचार्य के साथ होटल मिलेनियम में परिचर्चा होगी उसके बाद बीकानेर के वरिष्ठ रंगकर्मी कैलाश भारद्वाज को निर्मोही नाट्य सम्मान दिया जाएगा तत्पश्चात 2.30 बजे रेलवे ऑडीटोरियम में बीकानेर के रमेश शर्मा द्वारा निर्देशित नाटक पागलघर का मंचन होगा, 4:30 बजे टाउन हॉल में जयपुर से प्रसिद्ध नाट्य दल रंग मस्ताने के युवा निर्देशक चंदन कुमार जांगिड़ के निर्देशन में “मैं बीड़ी पीकर झूठ नी बोलता” का मंचन होगा, 6 बजे रविन्द्र रंगमंच में दिल्ली से सईद आलम के निर्देशन में ग़ालिब इन न्यू दिल्ली और 8 बजे टी एम ऑडिटोरियम में मुम्बई से निरेश कुमार के निर्देशन में बांसवाड़ा कंपनी का मंचन होगा।

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