बीकानेर (अभय इंडिया न्यूज)। निराश्रित गौवंश की समस्या से निजात दिलाने के लिए शहर में राजनीतिक दलों के अलावा स्वयंसेवी संगठन भी आगे आ रहे हैं। सभी एक स्वर में इस समस्या का स्थायी हल निकालने की मांग कर रहे हैं।
इस बीच युवा कांग्रेस नेता एवं जिला देहात कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष कौशल दुग्गड़ ने भी निराश्रित गौवंश की समस्या के निदान के लिए राज्य सरकार को सुझाव पत्र भेजा हैं। दुग्गड़ ने पत्र में कहा है कि निराश्रित गौवंश को रखने के लिए गोचर सबसे उपयुक्त स्थान है। बीकानेर के भामाशाहों ने गोचर का प्रावधान चूंकि गौवंश के लिए ही किया था, लिहाजा वहीं इन्हीं रखने से किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वो गोचर से जुड़े कानून में परिवर्तन करके वहां गौशाला निर्माण को मंजूरी दें ताकि इस समस्या का स्थायी हल निकल सके। दुग्गड़ ने पत्र में यह भी कहा है कि जब तक इस समस्या का स्थायी हल नहीं निकले तब तक प्रशासन को चाहिए कि वो शहर में जगह-जगह गौवंश के लिए खुली टाळों पर पाबंदी लगाएं। कई टाळें तो हाइवे पर खुली हुई है। इनके इर्द-गिर्द चौबीसों घंटे गौवंश मंडराता रहता है। इसी तरह कई चौराहों और तिराहों पर खुले में चारा डाल दिया जाता है। इससे न केवल दुर्घटनाएं होती है, बल्कि गंदगी भी फैलती है। इस तरह से चारा डालने के लिए कोई स्थान भी तय होना चाहिए, ताकि किसी की धार्मिक भावनाओं को भी ठेस नहीं पहुंचे। दुग्गड़ ने पत्र में बताया है कि पिछले कुछ महीनों में निराश्रित गौवंश की चपेट में आने से बीकानेर में ग्यारह लोगों की जानें जा चुकी है। इसलिए प्रशासन को चाहिए कि वो ऐसे स्थान चिन्हित करें जहां हर समय आवारा गौवंश का जमावड़ा रहता है और उसके बाद तत्काल प्रभाव से इन्हें हटाने की कार्रवाई करें। दुग्गड़ ने पत्र में शहर में संचालित इन टाळों के अलावा डेयरियों को भी आबादी मुक्त बाहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वो गौवंश के नाम पर अब राजनीति करना बंद कर दें। पिछले चार वर्षों में सरकार ने इस समस्या के निदान के नाम पर केवल आश्वासन ही दिए हैं। यदि समय रहते सरकार ने इस संबंध में कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बनाई तो उसे इसका गंभीर नुकसान भी भुगतना पड़ेगा।
गौरतलब है कि निराश्रित गौवंश का मुद्दा अब बीकानेर में तूल पकडऩे लगा है। एक तरफ जहां कांग्रेस नेता गोपाल गहलोत की अगुवाई में 17 जनवरी से कलक्ट्रेट के समक्ष अनिश्चितकालीन धरना प्रस्तावित हैं, वहीं दूसरी ओर भाजपा के पार्षद भी तीन दिनों से क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। इनके अलावा अन्य विभिन्न संगठन भी इस समस्या के स्थायी हल की मांग को लेकर आगे आ रहे हैं। ऐसे में सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वो अब इस मुद्दे पर कोरे आश्वासन देने के बजाय कोई ठोस कार्ययोजना बनाएं।