Thursday, April 25, 2024
Hometrendingअखबार की कतरन और इल्म की उतरन कभी भी साहित्य नहीं होती...

अखबार की कतरन और इल्म की उतरन कभी भी साहित्य नहीं होती : शीन काफ निज़ाम

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad

बीकानेर abhayindia.com साहित्य की रचना समाज या सियासत के लिए नहीं, बल्कि संस्कृति के उन्नयन के लिए की जाती है। जब साहित्य समाज की अपेक्षाओं के अनुसार अथवा सियासत की मांग के अनुसार लिखा जाने लगे तब वह अपना अदब खोने लगता हैं। ये उद्बोधन उर्दू के ख्यातनाम शायर शीन काफ़ निज़ाम ने बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति की ओर से शुक्रवार को स्थानीय धरणीधर रंगमंच सभागार में आयोजित डॉ. छगन मोहता स्मृति व्याख्यानमाला की 18 वीं कड़ी के अंतर्गत मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। 

dr chagan mohta 1

निज़ाम ने कहा कि कहते हैं कि मन की बात मुंह तक आईलेकिन मन में वो बात कहां से आई – यही जिज्ञासा साहित्य का लक्ष्य है। अपनी अनुभूति को संस्कृति के उन्नयन के लिए नए-नए आयामों से अभिव्यक्ति देना ही साहित्य का प्रयोजन होता है। लेकिन ये हमारी बदनसीबी है कि आज के तकनीकी युग में हमने शब्दों को इकहरे मायनों तक ही सीमित कर दिया है। हमने शब्दों से बात करना बंद कर दिया है। किसी चीज की सीमा कितनी होती है वही उसकी अदब होती है। उर्दू में साहित्य को अदब कहा गया है, जिसका एक मायना कायदा भी होता है। इसलिए अदब और साहित्य का संबंध सीधे तौर पर जबान से होता है। साहित्य में जबान का मायना शब्द से है।

निजाम ने कहा कि प्राचीन ग्रंथों में लिखा गया है कि इस सृस्टि का सृजन ही शब्द से हुआ है। तब शब्द से पहले क्या सन्नाटा था। क्या सन्नाटे की सरसराहट और सरगोशी ने जब मूर्त रूप धारण किया तो वो शब्द नहीं हो गया। जब उस शब्द के साथ अपनी शिद्दत और आपका अहसास शामिल हुआ तब वह साहित्य हो गया। इस प्रकार साहित्य से हमें शब्द के विभिन्न अर्थ और उसके प्रयोग का अनुशासन सीखने को मिलता है, क्योंकि एक ही अहसास को अलग-अलग लेखक अलग-अलग जुबान में अलग-अलग अर्थ के साथ लिखते हैं।

इसी क्रम में निज़ाम ने अपनी विशिष्ट शैली में कईं शेरोंनज्मों को सुनाते हुए जोर देकर कहा कि अखबार की कतरन और इल्म की उतरन कभी भी साहित्य नहीं होती,क्योंकि कृत्रिम व्यवहार कभी भी अदब की श्रेणी में नहीं आता। कृ़ि‍त्रम व्यवहार या कहें कि मजहब में आदमी जन्नत से निकलकर जन्नत में जाना चाहता है और अदब में जन्नत खुद आदमी तक आना चाहती है। साहित्य भाषा की आत्मानुभूति है और भाषा के रूप का प्रकाशन है। हम यह हमेशा याद रखें कि तस्‍वीर में तसव्वुर शामिल होता है।  

व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए कवि-चिंतक डॉ. नंदकिशोर आचार्य ने कहा कि एक पाठक साहित्य क्यों पढ़ेएक लेखक साहित्य क्यों रचे और साहित्य स्वयं अपने होने का प्रयोजन ढूंढे – इन सभी प्रश्‍नों का उत्तर निज़ाम साहब ने अपने व्याख्यान में बखूबी ढंग से अभिव्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि साहित्य तो एक तलाश है – एक जिज्ञासा है। जिसे आप सूचनात्मक ज्ञान से नहीं वरन् ज्ञाता और ज्ञेय के आंतरिकीकरण से प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञान प्राप्ति के वैध अनुशासनों से जो कुछ छूट जाता है उन प्रश्नों का उत्तर हमें साहित्य से मिलता है। इसलिए साहित्य अनुभव के ढंग का अनुभव है।  व्याख्यानमाला के जिज्ञासा सत्र में  गोपाल जोशीदेवीसिंह भाटीअविनाश व्यासकमल पारीक और जुगलकिशोर पुरोहित द्वारा रखी गई जिज्ञासाओं का भी मुख्य वक्ता निज़ाम द्वारा उत्तर दिया गया। 

कार्यक्रम के प्रारंभ में समिति के मानद सचिव डॉ. ओम कुवेरा ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए व्याख्यानमाला की पृस्टभूमि पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि डॉ. छगन मोहता अद्भूतों में अद्भूत थे। कार्यक्रम का प्रारंभ मॉं सरस्वती एवं डॉ. छगन मोहता के छायाचित्रों के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण कर किया गया। इस क्रम में आगंतुकों द्वारा डॉ. छगन मोहता के छाया चित्र के समक्ष पुष्पांजली अर्पित की गई। कार्यक्रम के अंत में समिति के अध्यक्ष डॉ. श्रीलाल मोहता ने संस्था की ओर से आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया गया। इस अवसर पर शहर के गणमान्य महानुभावों की उपस्थिति ने व्याख्यानमाला को सार्थकता प्रदान की।

पत्रकार प्रवीण जाखड़ को youtube ने सिल्वर मैडल से नवाजा

कातिलाना हमले की वारदात में नामी क्रिकेट बुकी का भाई और हिस्ट्रीशीटर भी नामजद

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad
Ad
- Advertisment -

Most Popular