हाल में हुए अहमदाबाद फ्लाइट दुर्घटना के कारण पूरा देश दहल गया। न जाने कितने सपनों पर पानी फिरा होगा जो हो गया उसे तो बदला नहीं जा सकता। अंत में नियति को स्वीकार करना ही पड़ता है। जरूरी नहीं कि सड़क दुर्घटना, ट्रेन दुर्घटना आदि ही हो कई बार व्यक्ति का बहुत अच्छा समय चल रहा होता है और वह अचानक से ऐसे असाध्य रोग से ग्रसित हो जाता है जिससे की उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है। ऐसे में हम भारतीय सनातन परंपरा में वास्तु शास्त्र का सहारा लेकर कुछ सिद्धांतों को अपनाकर प्रयास कर सकते हैं जिससे कि भविष्य में ऐसी स्थिति न बने। जन्म व मौत अटल सत्य है जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। फिर भी वास्तु शास्त्र के कुछ नियमों का पालन करके यदि इन चीजों से बचा जा सकता है तो जरूर बचना चाहिए।
वास्तु शास्त्र में दिशाओं को विशेष महत्व होता है। सही दिशा में बनी चीजों के होने पर शुभ फल की प्राप्ति होती है वहीं, अगर दिशाओं में दोष हो तो इसका असर घर पर रहने वाले प्रत्येक सदस्यों पर पड़ता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, नैऋत्य दिशा यानि पश्चिम- दक्षिण में दोष होता है इसका परिणाम घातक रहता है। घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में आप बेडरूम बना सकते हैं। उस बेडरूम में घर के मुखिया को रहना चाहिए क्योंकि यह कमांडिंग जगह होती है, इसलिए यहां पर जो भी रहता है वह पूरे घर को चलाता है लेकिन, अगर आपने इस दिशा में सेप्टिक टैंक बना दिया तो नुकसान होगा।
वास्तु के अनुसार, यदि भवन की रचना, दिशाओं का उपयोग, और ऊर्जा प्रवाह संतुलित न हो, तो नकारात्मकता बढ़ती है जिससे दुर्घटनाओं की संभावना भी अधिक होती है। कुछ वास्तु दोषों के कारण जीवन में बार-बार दुर्घटनाएँ होती हैं, और उन्हें दूर करके सुरक्षा और सुख-शांति प्राप्त की जा सकती है।
दक्षिण-पूर्व दिशा अग्नि तत्व से संबंधित होती है। यदि इस दिशा में पानी का स्त्रोत, अंडरग्राउंड टैंक, या बाथरूम है, तो दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है। अनुभव में आया है कि कई बार इस दिशा में जब पानी का स्रोत होता है तो सड़क दुर्घटना के साथ साथ उस घर में कैंसर जैसे असाध्य रोग भी हो जाते हैं। यदि दक्षिण दिशा में कोई बड़ा कटाव हो, या यह दिशा खुली हो तो अकाल मृत्यु, एक्सीडेंट या गंभीर चोटों की संभावनाएं रहती हैं। इस दिशा में बेवजह भारी वस्तुएं या बंद कमरा होने से वायु तत्व बाधित होता है, जिससे बार-बार वाहन दुर्घटनाएं या कोर्ट-कचहरी से जुड़े मामले बनते हैं।
अनुभव में आया है कि जब वायव्य कोण का फ्लोर लेवल अपेक्षाकृत ऊँचा होता है तो मुखिया की बुद्धि ठीक नहीं रहती और उसे व्यापार में घाटा खाना पड़ता है। कई बार ऐसा भी देखने में आया है कि मुखिया के अपनी पत्नी से मधुर संबंध नहीं होते हैं। यदि मुख्य द्वार पर सीढ़ियाँ गलत दिशा में हैं, दरवाज़ा टूटा-फूटा है, या दरवाज़े के सामने कोई नुकीली वस्तु या खंभा है, तो उससे नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है और मानसिक विचलन के कारण दुर्घटनाएं होती हैं। हाल ही में मेरे द्वारा किए गए वास्तु विजिट में मैंने कुछ विशेष बातों पर गौर किया।
केस स्टडी-1
मैंने वासुदेव के घर का निरीक्षण किया। घर पूर्वमुखी था और अच्छा था लेकिन रसोई तथा जल कुंड दोनों ही अनुचित स्थान पर थे, साथ ही दक्षिण-पश्चिम में भी अण्डरग्राउंड था जो कि वास्तु सम्मत नहीं था। ऐसे में एक दिन वासुदेव को सड़क दुर्घटना का शिकार होना पड़ा जिसमे उसके सिर पर चोट आई।
केस स्टडी-2
मैंने श्रीधर के घर का वास्तु अवलोकन किया। उनका घर पूर्व मुखी था। उनके घर में वायव्य कोण का निर्माण बहुत ऊँचा हो रखा था। साथ ही वायव्य कोण में अण्डरग्राउंड और दक्षिण-पश्चिम में रसोई थी। जिसके कारण श्रीधर की सड़क दुर्घटना में मृत्यु तो नहीं हुई लेकिन उसे मृत्यु तुल्य कष्ट सहन करने पड़े।
केस स्टडी-3
कुछ दिन पहले मुझे अपने एक परिचित के घर का वास्तु निरीक्षण करने का मौका मिला वहां मैंने देखा कि दक्षिण पश्चिम में सेफ्टी टैंक है। वहीं, उत्तर पश्चिम में अंडरग्राउंड बना हुआ था। इस घर में अकाल मृत्यु हो चुकी थी इसके अलावा घर में दिनभर कलह का वातावरण बना रहता है। मैंने मकान मालिक को जीवन में शांति के लिए इन दिशाओं में अपेक्षित सुधार करने की सलाह दी।
वास्तु शास्त्र केवल भवन की रचना का विज्ञान नहीं है, बल्कि यह जीवन में सुख, सुरक्षा और संतुलन लाने का माध्यम है। यदि हम अपने घर और कार्यालय की दिशाओं और ऊर्जा संतुलन को वास्तु के अनुसार व्यवस्थित करें, तो जीवन में आने वाली दुर्घटनाएं, मानसिक तनाव, और अकस्मात संकट काफी हद तक कम हो सकते हैं। उचित वास्तु के पालन से हम न केवल अपने परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं, बल्कि जीवन में स्थिरता और सकारात्मकता भी बढ़ा सकते हैं। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431










