Monday, May 20, 2024
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Happy Birthday Bikaner : सूंटौ आ जद धर पर चालै,  खंख उडै बादळ रे रूप…

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बीकानेर Abhayindia.com सूरज रो तप मंदौ पड़ज्या, ज्यूं गादीं सूं उतर्यां भूप। पांख पंखेरू पड़ै टपाटप,  टूटै जन जीवण री आस। मानौ मौत धरा पर घूमै, करण  चराचर रो चिरनास। उदयवीर शर्मा द्वारा रचित  कविता “सूंटौ”  की उक्त पंक्तियाॅं हिंदुस्तान के महामरूस्थल में स्थित जांगल प्रदेश की तत्कालीन भौगोलिक परिस्थितियों को इंगित करती है जहां चंहुऔर रेत का समंदर तथा बूंद-बूंद पानी को तरसता मानव एवं जीव-जन्तु अपने अस्तित्व को बचाने के लिये विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों से मुकाबला कर रहे थे।

थार का मरूस्थल कभी समुन्द्र की लहरों से आह्लादित होता था इस क्षेत्र में मिलने वाले शंख, सीपी, बजरी, गुलगचिया, नमक, कोयला, दलदल इत्यादि से यह तथ्य प्रमाणित होता है। वेदों के अनुसार भी इस क्षेत्र में कभी सरस्वती एवं दृषद्वती नदी प्रवाहित होती थी। विलुप्त सरस्वती नदी के अवशेष इस क्षेत्र में घघ्घर नदी में मिलते है। इस क्षेत्र में प्राचीनकालीन सभ्यता एवं संस्कृति के अवशेष रंगमहल, बडोपल, कालीबंगा क्षेत्रों में मिले है। सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि ने कोलायत में अपनी माता देवहुति को ज्ञान दिया था। ऋषि दत्तात्रेय से दियातरा, च्यवन ऋषि से चांनी गांव तथा गुरू द्रोणाचार्य से छापर द्रोणपुर जाने जाते है। महाभारत काल में जांगल प्रदेश कुरू साम्राज्य का अंग था। यह प्रदेश बाद में शूद्रक, मोर्य, कुषाण एवं गुप्त साम्राज्य का हिस्सा रहा। इस क्षेत्र पर हर्षवर्धन के बाद यौद्धेय, सांखला (परमार), जोहिया, भाटियों एवं जाटो का अधिकार रहा। इन सभी पर विजय प्राप्त कर राव बीकाजी ने बीकानेर नामक एक अलग राज्य की स्थापना की।

राव बीका का जन्म जोधपुर के राजा राव जोधा की सांखली रानी नौरंगदे से 5 अगस्त 1438 को हुआ। एक दिन दरबार में बीकाजी एवं उसके चाचा कांधल जी आपस में वार्तालाप कर रहे थे उनको देखकर राव जोधा ने व्यंगात्मक भाषा में पूछा कि, “आज चाचा भतीजे क्या सलाह कर रहै है क्या कोई नया ठिकाना जीतने की बात हो रही है?” कांधल ने उत्तर दिया कि, “आपके प्रताप से यह भी हो जायेगा।” उन दिनों जांगलू का नापा सांखला भी दरबार में आया हुआ था क्योकि जांगलू प्रदेश पर बिलोचों के आक्रमण हो रहें थे जिससे कुछ सांखले उस स्थान को छोडकर अन्यत्र जा रहे थे। नापा सांखला ने राव जोधा को बताया कि, “यदि आप चाहो तो सरलता से वहां अधिकार किया जा सकता है!” राव जोधा को यह बात पंसद आई और उन्होने बीका और कांधल को नापा के साथ जाकर नया राज्य स्थापित करने की आज्ञा दे दी। तब बीका ने अपने चाचा कांधल, रूपा, मांडण, मंडला, नाथु भाईजोगा, पडिहार बेला, नापा सांखला इत्यादि अन्य राजपूतों के साथ जोधपुर से  30 सिंतबर 1465 को प्रस्थान किया। इस अवसर पर बीका के साथ 100 घोडे एवं 500 राजपूत थे। बीका ने मण्डोर होते हुए गोरेजीभैरूजी की मूर्ति को साथ लेकर देशनोक पहुंचकर श्री करणी माता के दर्शन किये तथा मां करणी ने आर्शीवाद देते हुए कहा कि, “तेरा प्रताप जोधा से सवाया बढेगा बहुत से भूपति तेरे चाकर होंगे  तथा साथ आये भैरूंजी की सेवा अच्छी तरह करना।”

उसके बाद बीकाजी चांडासर चले गये जहां वे 3 वर्ष निवास कर पुनः देशनोक आ गये जहां 6 वर्ष निवास कर कोडमदेसर गये। वहां तालाब के किनारे श्री गोरेजीभैरूजी की मूर्ति पधराई एवं स्वयं को राजा घोषित किया। उसके पश्चात जांगलू पहुंच कर 84 गांवों को अपने अधीन किया। श्री करणीजी के आदेश से बीकाजी ने पूगल के राव शेखा की पुत्री रंगकुवंरी के साथ विवाह किया। राव बीका ने शुभ शगुन देखकर राती घाटी पर श्री करणी माता के हाथो से किले की नींव रखवाई तथा  विक्रम संवत 1545 बैसाख सुदि दूज 12.4.1488 को किले के पास बीकानेर नगर बसाया।

पनरै सौ पैतालवैं, बीवीसुद बैसाख सुमेर। थावर बीज थरपियौ, बी बीकै बीकानेर।।

बीकानेर के उतर पूर्वी क्षेत्र में जाट जनपद थे जिनमें गोदारा, सिहाग, सहारण, बैनीवाल, कस्वां, पूनिया, सिहाय, सोडूआन प्रमुख थे जिनके लगभग 1600 गांव थे। जाटों में गोदारा प्रमुख थे जिनका मुखिया पाण्डू गोदारा था। गोदारा की जोहियों से हमेशा लडाई चलती रहती थी इसलिये पाण्डू गोदारा एवं अन्य पंचों ने मिलकर जोहियों के खिलाफ बीकाजी से संधि की। इस प्रकार जाटो कें सब ठिकाने बीकाजी के अधिकार में आ गये। पाण्डू गोदारा को इसके बदले ये अधिकार दिया गया कि बीकानेर के राजा का राजतिलक पाण्डू गोदारा के वंशजों के हाथ से हुआ करेगा। उसके पश्चात ही राजा को गद्दी का अधिकार मिलेगा और अब तक यह प्रथा प्रचलित है।

उसके बाद बीका ने राजपूतो, मुसलमानो एवं जोहियों पर अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे समस्त जांगल प्रदेश, हिसार के पठानों, भूट्टों एवं बिलोचों को भी परास्त कर इन क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। छापर-द्रोणपुर पर अधिकार कर बीका ने अपने भाई बीदा को सौंप दिया। इस समय बीकाजी का 2670 गांवो तथा 40000 वर्ग मील भूमि पर अधिकार था। बीकानेर में सूखपूर्वक राज्य करते हुए 11 सिंतबर 1504 को बीकाजी का देहांत हो गया।

कला, साहित्य एवं सांस्कृतिक दृष्टि से बीकानेर की एक समृद्ध पंरपरा रही है। महाराजा अनूप सिंह साहित्य के बडे संरक्षक थें जिन्होने अनूप संस्कृत लाइब्रेरी की स्थापना की। राजकवि पृथ्वीराज जी डिंगल भाषा के कवि थे जिन्होंने वेलि कृष्ण रूकमणी री की रचना की। महाराजा गंगा सिंह जी ने इटली के विद्वान एलपी तैस्तोरी को राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं साहित्य को समृद्ध करने के लिये नियुक्त किया। अगरचंद नाहटा, डाॅ विधाधर, सूर्यकरण पारीक एवं गिरधारी सिंह राजस्थानी साहित्य के प्रमुख विद्वान रहें है।

बीकानेर रियासत में धार्मिक दृष्टि से श्री करणी माता का मंदिर, पर्यावरण एवं जीव रक्षक विश्नोई संप्रदाय के संस्थापक संत श्री जाम्भौ जी  महाराज, श्री जसनाथ जी, श्री गोगाजी, लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर, जैन भाण्डेश्वर मंदिर प्रमुख है। चित्रकला की मथेरण कला एवं उस्ता कला, संगीत की माण्डराग में अल्लाह जिलाई बाई एवं पदमश्री अली-घनी, स्थापत्य कला में दुलमेरा के लाल पत्थर की कारीगरी से निर्मित हवेलिंयाॅ, छतरिया एवं झरोखे, नाट्य कला में रम्मत नाट्य प्रमुख स्थान रखते है।

बीकानेर ऊंट, मिठाई, स्त्री के सोना गहना, सेठ साहुकारों के लिये प्रसिद्ध है। यहां के व्यापारियों ने विपरित भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद देश विदेश में बीकानेर का नाम रोशन किया है। इन विपरित भौगोलिक परिस्थितियों ने रेगिस्तान के आदमी को साहसी, मेहनती, झुझारू, संघर्षशील, धैर्यवान एवं सृजनशील बनाया। सामान्यतः शहरीकरण नदी एवं नहरों के किनारे होता था लेकिन यहां के शासकों ने मरूस्थल में श्रीडूंगरगढ, अनूपगढ एवं श्रीगंगानगर जैसे शहर बसा कर शहरीकरण की दिशा में नये आयाम स्थापित किये। महाराजा गंगासिंह जी बीकानेर रियासत में 26.10.1927 को मरूस्थल में गंगनहर का निर्माण कार्य पूरा करवाकर आधुनिक भारत के भागीरथ बने जिसकी प्रेरणा से बाद में राजस्थान नहर परियोजना का निर्माण हुआ जो इस रेतीले मरूस्थल के लिये जीवनदायिनी है। लेखक : डाॅ दुलीचंद मीणा, आरएएस

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