वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं। जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है।
अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिए। प्रेत के शरीर की रचना में 25 प्रतिशत फिजिकल एटम और 75 प्रतिशत ईथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में 25 प्रतिशत ईथरिक एटम और 75 प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है। अगर ईथरिक एटम सघन हो जाए तो प्रेतों का छायाचित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी छायाचित्र लिया जा सकता है।
ज्योतिष में चन्द्र को मन का देवता माना गया है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं, उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। लड़कियां मन से बहुत ही भावुक होती हैं। इस दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है।
धर्मग्रंथों में चन्द्रमा की 16वीं कला को ‘अमा’ कहा गया है। चन्द्रमंडल की ‘अमा’ नाम की महाकला है जिसमें चन्द्रमा की 16 कलाओं की शक्ति शामिल है। शास्त्रों में अमा के अनेक नाम आए हैं, जैसे अमावस्या, सूर्य-चन्द्र संगम, पंचदशी, अमावसी, अमावासी या अमामासी। अमावस्या के दिन चन्द्र नहीं दिखाई देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता है उसे अमावस्या कहा गया है, तब इसे ‘कुहू अमावस्या’ भी कहा जाता है। अमावस्या माह में एक बार ही आती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। अमावस्या सूर्य और चन्द्र के मिलन का काल है। इस दिन दोनों ही एक ही राशि में रहते हैं।
सोमवती अमावस्या, भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या आदि मुख्य अमावस्या होती है।