Friday, April 26, 2024
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अजब-गजब संयोग : …तो क्या नेता प्रतिपक्ष डूडी नहीं बन पाएंगे सीएम?

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जयपुर (अभय इंडिया न्यूज)। प्रदेश की राजनीति में ऐसे कई अजब-गजब संयोग बने हैं, जिन्हें जानना हमारे लिए बेहद दिलचस्प होगा। इन्हीं में से संयोग है नेता प्रतिपक्ष को लेकर। विधानसभा के कार्यकाल के आखिर में जो भी नेता प्रतिपक्ष रहा, वह मुख्यमंत्री नहीं बना। भैरोंसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे नेता प्रतिपक्ष रहे, लेकिन चुनाव के वक्त विपक्ष के नेता नहीं थे। हरिदेव जोशी तीन बार मुख्यमंत्री रहे। नेता प्रतिपक्ष चुने जाने के बाद सीएम नहीं बने। इसी तरह गुलाबचंद कटारिया व परसराम मदेरणा दो-दो बार विपक्ष के नेता रहे। अगले चुनाव में उनकी पार्टियों की सरकार तो बनी, लेकिन वे सीएम नहीं बन सके।

डूडी पांच साल से नेता प्रतिपक्ष

चौहदवीं विधानसभा में बीकानेर की नोखा सीट से पहली बार विधायक चुने गए कांग्रेस नेता रामेश्वर डूडी को पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष बनाया। विधानसभा के पूरे कार्यकाल में उन्होंने नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई। डूडी बीकानेर से एक बार लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं। अब यह देखना रोचक होगा कि यदि आगामी विधानसभा चुनावों के बाद सरकार कांग्रेस की बनी तो क्या विपक्ष का नेता सीएम बन सकेगा? क्या पहली बार यह परंपरा टूट सकेगी?

भैरोंसिंह शेखावत : वर्ष 1977 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। 1990-92 और फिर 1993-98 तक सीएम रहे। जब वे सीएम चुने गए उससे पहले नेता प्रतिपक्ष नहीं थे। शेखावत 1980 में पहली बार नेता प्रतिपक्ष बने। तब लगातार दो बार कांग्रेस सरकार बनी। 1990 के चुनाव से 3 महीने पहले शेखावत की जगह प्रो. केदारनाथ शर्मा को विपक्ष का नेता बना दिया गया था। 1998 में कांग्रेस सरकार बनी, शेखावत फिर नेता प्रतिपक्ष चुने गए। वर्ष 2002 में शेखावत उपराष्ट्रपति चुन लिए गए।

हरिदेव जोशी : भैरोसिंह शेखावत की तरह जोशी ऐसे दूसरे नेता रहे जो कांग्रेस सरकार में सीएम पहले बने और बाद में नेता प्रतिपक्ष। जोशी वर्ष 1973-77, वर्ष 1985-88 और वर्ष 1989 -90 मुख्यमंत्री रहे। इससे पहले वे कभी विपक्ष के नेता नहीं रहे थे। विपक्ष के नेता वह पहली बार वर्ष 1990 में बने, जो दिसंबर, 1992 तक रहे।

वसुंधरा राजे : 2003-09 तक प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 2013 से उनका दूसरा कार्यकाल चल रहा है। दोनों ही बार सीएम बनने से पहले विधानसभा के आखिरी समय में वे नेता प्रतिपक्ष नहीं थीं। राजे पहली बार 2009-10 और फिर 2011 से फरवरी 2013 तक नेता प्रतिपक्ष रहीं। चुनाव से पहले उनसे विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी ले ली गई थी।

ये नेता सिर्फ नेता प्रतिपक्ष ही रहे

परसराम मदेरणा छठी एवं दसवीं विधानसभा, रामनारायण चौधरी एवं लक्ष्मण सिंह छठी विधानसभा, प्रो. केदारनाथ शर्मा आठवीं, गुलाब चंद कटारिया 11वीं एवं 13वीं और डॉ. बी. डी. कल्ला, रामनारायण चौधरी (मंडावा) एवं हेमाराम चौधरी 12वीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। इनमें से एक भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंचा। सरकारें भी उनकी अपनी पार्टियों की बनी। पार्टियों ने सीएम बनने का मौका नहीं दिया।

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