Friday, March 29, 2024
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…तो नई सरकार इस तरह रोकेगी निजी स्कूलों की मनमानी

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जयपुर (अभय इंडिया न्यूज) नए सत्र में सिर्फ तीन महीने ही हैं। अप्रैल में सत्र प्रारंभ होते ही एक बार फिर फीस को लेकर अभिभावक और निजी स्कूल संचालक आमनेसामने होंगे। निजी स्कूलों की फीस को लेकर अभी से सरकार सचेत है। प्रदेश में अब तक निजी स्कूलों की फीस तय करने के लिए दो कानून बन चुके हैं। नई सरकार इन दोनों ही कानूनों की खामियों को देखेगी कि आखिरकार अभिभावकों को राहत क्यों नहीं मिली। जरूरत पड़ी तो सरकार नया फीस एक्ट भी ला सकती है। कांग्रेस सरकार ने 2013 में तमिलनाडु और भाजपा सरकार ने 2016 में महाराष्ट्र पैटर्न पर निजी स्कूलों की फीस पर लगाम के लिए फीस एक्ट बनाए थे। दोनों ही कानून फीस पर लगाम लगाने के मामले में फेल साबित हुए। प्रदेश में 35 हजार निजी स्कूल हैं। इनमें करीब 80 लाख विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। 

आपको बता दें कि महाराष्ट्र पैटर्न पर वर्ष 2016 में बने फीस एक्ट में फीस तय करने की जिम्मेदारी 10 सदस्यीय स्कूल स्तरीय फीस कमेटियों को दी गई। इसमें 5 स्कूल प्रशासन और 5 सदस्य अभिभावक होते हैं। निजी स्कूल ने इस कानून की खामियों का जमकर फायदा उठाया और मनमर्जी से अभिभावकों को इस कमेटी का सदस्य बना लिया। कई निजी स्कूलों ने अभिभावकों को सूचना दिए बिना ही कमेटी की बैठक कर फीस तय कर ली। इस कानून को कांग्रेस शासन में बनाए कानून से हल्का कर सजा का प्रावधान हटा दिया गया और केवल जुर्माने का प्रावधान ही रखा गया।

कांग्रेस सरकार में तमिलनाडु पैटर्न पर वर्ष 2013में बने फीस एक्ट में राज्यस्तरीय फीस कमेटी को सभी निजी स्कूलों की फीस तय करने का अधिकार दिया गया था। पूर्व न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा को कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनको सरकार ने कोई सुविधा नहीं दी। उपलब्ध सुविधाओं के आधार पर ही 9 हजार स्कूलों की फीस भी तय कर दी थी। जिन स्कूलों की फीस तय की, उन्होंने कमेटी के आदेश नहीं माने। भाजपा सरकार ने आदेशों को लागू कराने का प्रयास नहीं किया। एक्ट के उल्लंघन पर 1 से 3 साल तक सजा और 50 हजार तक के जुर्माने का प्रावधान रखा गया था।

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