Monday, April 29, 2024
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ऊँटनी के दूध से बने काजू पेड़ा, फ्लेवर्ड बटर लॉंच, उष्ट्र पर्यटन से जुड़े एनआरसीसी के नवाचार सराहनीय : डॉ. त्रिपाठी

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बीकानेर Abhayindia.com भाकृअनुप-राष्‍ट्रीय उष्‍ट्र अनुसंधान केन्द्र में ‘शुष्‍क पशुपालन एवं एक स्वास्थ्य अवधारणा : चुनौतियां एवं अवसर’ विषयक राष्‍ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। एनआरसीसी की इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. बी. एन. त्रिपाठी, उप महानिदेशक (पशु विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली ने की। हाईब्रिड रूप से आयोजित इस संगोष्ठी में देशभर के शोध कर्त्ताओं ने भाग लिया। इस अवसर पर डॉ. त्रिपाठी द्वारा ऊँटनी के दूध से बने नूतन उत्‍पादों मिल्क काजू पेड़ा, मिल्क कैमल घी, मिल्क कैमल बटर (फ्लेवर्ड) को जारी किया गया। वहीं प्रकाशनों में पर्यटन कार्यों के लिए ऊँटों का प्रबंधन, सिंधी कैमल एवं अपॉरच्युनिटी एण्‍ड कॉन्सट्रेंट इन कैमल प्रोडेक्शन सिस्टम एण्ड एटस् सस्टेनेबिलिटी का विमोचन किया गया। इस अवसर पर उन्होंने कई महत्वपूर्ण गतिविधियों/इवेंटस यथा कैमल स्टैच्यु, उष्ट्र प्रदर्शनी स्थल, नर ऊँट अभ्यास स्थल, केन्द्र स्थापना स्टॉन, प्रदर्शनी स्थल, आई लव कैमल सेल्फी पॉईन्ट का उद्घाटन किया।

संगोष्ठी अध्यक्ष डॉ. बी.एन. त्रिपाठी ने ‘शुष्क पशुपालन को एक स्वास्थ्य अवधारणा से जोड़ना’ विषयक मुख्य भाषण में  देश के घरेलू सकल उत्‍पादन में पशुधन के योगदान की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि हमने आजादी के बाद से पशु उत्पादन के क्षेत्र में सराहनीय प्रगति की है तथा वैश्विक स्तर पर दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान हासिल किया है, लेकिन अभी भी औसत दुग्‍ध उत्पादन में अपार संभावनाएं हैं जिसके लिए हमें देशी नस्लों को बढ़ावा देना होगा। साथ ही हमें पशुपालन के  पारंपरिक तौर तरीकों को  विज्ञान की नवीन प्रौद्योगिकी से जोड़ते हुए संतुलित उत्‍पादन प्राप्ति पर जोर देना होगा, जिसके लिए पशुपालन को एक स्वास्थ्य अवधारणा से जोड़ना होगा। उन्होंने उष्ट्र संरक्षण एवं विकास के लिए एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे नवाचारी प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा वैज्ञानिकों को बड़ा सोचने, बड़े सपने देखने तथा बड़ा करने  के लिए  प्रोत्साहित करते हुए बदलते परिवेश में उष्ट्र पालन विकास में सामयिक प्रयासों की महत्ती आवश्यकता जताई।

केन्द्र निदेशक एवं संगोष्ठी के संयोजक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने स्वागत अभिभाषण प्रस्तुत करते हुए एनआरसीसी की अनुसंधान गतिविधियों एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डाला तथा उष्ट्र विकास एवं संरक्षण के लिए किए जा रहे केन्द्र के अद्यतन प्रयासों की जानकारी दीं। डॉ. साहू ने कहा कि बदलते परिवेश में ऊँट पालन व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए केन्‍द्र, ऊँट के विविध पहलुओं यथा-दूध, पर्यटन, ऊन, चमड़ी, खाद आदि के क्षेत्र में सतत प्रयत्‍नशील है। साथ ही संस्थान, पशु एवं इससे जुड़े समुदायों के स्वास्थ्य, विविध पशुजन्य रोगों, समन्वित पशुपालन आदि पहलुओं संबंधी जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यरत है। डॉ. साहू ने वर्तमान समय में शुष्क पशुपालन एवं एक स्वास्थ्य अवधारणा की आवश्यकता पर बल दिया।

आमंत्रित अतिथि वक्‍ता डॉ. हेमन्त दाधीच, निदेशक अनुसंधान, राजुवास, बीकानेर ने ‘उभरते तथा पुन: उभरने वाले ऊँट स्वास्थ्य मुद्दे और उनका प्रबंधन’ विषयक व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि  ‘एक स्वास्थ्य अवधारणा को प्राप्त करने के लिए ऊँटों के उभरते रोगों का प्रबंधन किया जाना अत्यंत आवश्यक है। डॉ. यशपाल, निदेशक, भाकृअनुप-राष्‍ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्‍द्र, हिसार ने भी इस संगोष्ठी में भाग लिया।

इस अवसर पर डॉ. त्रिपाठी द्वारा ऊँटनी के दूध से बने नूतन उत्‍पादों मिल्क काजू पेड़ा, मिल्क कैमल घी, मिल्क कैमल बटर (फ्लेवर्ड) को जारी किया गया। वहीं प्रकाशनों में पर्यटन कार्यों के लिए ऊँटों का प्रबंधन, सिंधी कैमल एवं अपॉरच्युनिटी एण्‍ड कॉन्सट्रेंट इन कैमल प्रोडेक्शन सिस्टम एण्ड एटस् सस्टेनेबिलिटी का विमोचन किया गया। इस अवसर पर उन्होंने कई महत्वपूर्ण गतिविधियों/इवेंटस यथा कैमल स्टैच्यु, उष्ट्र प्रदर्शनी स्थल, नर ऊँट अभ्यास स्थल, केन्द्र स्थापना स्टॉन, प्रदर्शनी स्थल, आई लव कैमल सेल्फी पॉईन्ट का उद्घाटन किया।

इस दौरान केन्द्र द्वारा महिला किसानों के लिए ‘उष्ट्र उत्‍पादन लघु उद्योग प्रशिक्षण का आयोजन किया गया जिसमें ग्रामीण महिलाओं को ऊँट की ऊन से बनाये जाने वाले उत्पादों का प्रशिक्षण दिया गया तथा डीडीजी के कर कमलों से प्रमाण- पत्र भी वितरित किए गए। वहीं केन्द्र में जन जातीय उपयोजना के तहत चल रहे तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन्होंने सिरोही के माऊंट आबू क्षेत्र के उष्ट्र पालकों की समस्याओं को भी जाना तथा इस के लिए प्रक्रिया अनुसार उचित निराकरण का आश्वासन दिया। एनआरसीसी में अपनी विजिट के दौरान उप महानिदेशक महोदय ने डेयरी प्रसंस्करण यूनिट, फार्म प्रक्षेत्र तथा केन्‍द्र द्वारा उष्ट्र पर्यटनीय विकास के तहत सूर्यास्त दृश्य स्थल, टीब्बा  कुटीर, रेत के टीले आदि स्थलों का भी अवलोकन करते हुए इस क्षेत्र में केन्द्र द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। साथ ही उन्होंने वृक्षारोपण भी किया। कार्यक्रम के अंत में संगोष्ठी समन्वयक डॉ. आर.के. सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने सभी के प्रति धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया।

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