Monday, May 6, 2024
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माटी, केश, चर्म कला के बाद अब काष्‍ठ कला के बोर्ड के गठन की उठी मांग

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बीकानेर Abhayindia.com राजस्‍थान में गहलोत सरकार ने विभिन्‍न समाजों के नाम से बोर्ड का गठन कर उन्‍हें साधने की कोशिश कर रही है। इसी बीच, कई अन्‍य समाज के बोर्ड के गठन की भी मांग उठने लगी है। बीकानेर के सामाजिक कार्यकर्ता चौरू लाल सुथार एक बार फिर राजस्थान में काष्ठ कला बोर्ड के गठन की मांग को लेकर एक पत्र अशोक गहलोत, केन्‍द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, शिक्षा मंत्री डॉ. बी. डी. कल्ला, ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी और अध्यक्ष, जन अभाव अभियोजन निराकरण समिति, राजस्थान को प्रेषित किया है।

पत्र में सुथार ने बताया कि राजस्थान में काष्‍ठ कला मरणासन्न स्थिति में पहुंच गई है। काष्ठ कला को संजीवनी देकर वापिस जीवनदान देने के लिए इस बोर्ड की नितांत आवश्यकता है ताकि राज्य में विलुप्त होती जा रही यह कला वापिस पुरजोर तरीके से अपना वर्चस्व कायम रख सके। लेकिन बड़े ही दुःख का विषय है कि आज तक इस पर कोई गौर नहीं किया गया है जबकि राजस्थान सरकार ने पूर्व में माटी कला बोर्ड, केश कला बोर्ड व अभी चर्म कला बोर्ड व धोबी कला बोर्ड का गठन कर समाज के प्रतिष्ठित लोगों को राज्य मंत्री का दर्जा प्रदान कर उक्त कलाओं को विकसित करने के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया है लेकिन काष्ठ कला के कार्य को आगे बढ़ाने में उपेक्षा का बर्ताव किया है जिससे सुथार, जांगिड़ व लकड़ी का कार्य करने वालों में काफी रोष व्याप्त है। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार कर तुरंत काष्ठ कला बोर्ड के गठन कर इस कार्य से जुड़े लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान कर इस कला को विकसित करने में अपना अमूल्य योगदान देना चाहिये।

सुथार ने बताया कि वैसे तो लकड़ी का कार्य देश में सभी जगह होता है लेकिन राजस्थान के चितौड़गढ़ जिले का बस्सी कस्बा जो प्राचीन समय से ही इस कला के लिए प्रसिद्ध रहा है। इसके अलावा इस कला में डूंगरपुर जिले का जेथाना गांव विख्यात है ईसके अलावा राज्य के बांसवाड़ा जिले का गढ़ा तथा डूंगरपुर जिले का बोडिगामा तीर कमान के लिए विख्यात है। इन सबसे अलावा चुरू जिला चंदन की लकड़ी पर खुदाई के लिए विख्यात है।

सुथार ने आगे बताया कि बीकानेर जिले में भी लकड़ी पर कोरणी व खुदाई कार्य करने वालों की अपनी अलग ही पहचान है। बीकानेर जिले के कारीगर पूरे भारत वर्ष के लगभग सभी राज्यों, बड़े-बड़े महानगरों, शहरों में अपने कार्य की कुशलता व हुनर से अपनी आजीविका के साथ-साथ राजस्थान व बीकानेर का नाम भी रोशन कर रहे हैं। सुथार ने बताया कि उदयपुर की खराद कला भी पूरे देश मे विख्यात है। खराद कला में मुख्यतः खिरनी की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। 

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