बीकानेर abhayindia.com भारत मौसम विभाग द्वारा किसान हित में जारी मौसम संबंधी भविष्यवाणी के अनुसार इस वर्ष मानसून में 5 से 10 प्रतिशत तक कम बरसात होने की संभावना है। इसके मद्देनजर किसानों को कृषि कार्यों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाने के संबंध में मंगलवार को स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय में बैठक आयोजित हुई।
बैठक की अध्यक्षता अनुसंधान निदेशक प्रो. एस. एल. गोदारा ने की। उन्होंने बताया कि कम बरसात की संभावना के मद्दनेजर किसानों को सचेत होकर कृषि कार्य करने होंगे। इसके लिए कृषि वैज्ञानिक, किसानों का मार्गदर्शन करें। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में मानसून सामान्यतया जुलाई के दूसरे या तीसरे सप्ताह में प्रभावी हो जाता है, लेकिन मानसून सामान्य से 2 सप्ताह देरी से प्रारम्भ होने की स्थिति में किसानों द्वारा बाजरा की बुवाई में कमी करते हुए ग्वार का क्षेत्रफल बढ़ाया जाए, यह किसानों के लिए लाभदायक रहेगा। मानसून के लगभग चार सप्ताह की देरी से शुरू होने की स्थिति में संभाग में मोठ की बुवाई की सलाह दी गई। वहीं भारी मृदा वाले क्षेत्रों में मानसून 15 दिन देरी से प्रभावी होने पर ग्वार के साथ मूंग की बुवाई की जा सकती है।
प्रो. गोदारा ने बताया कि मूंग की एसएमएल 668 किस्म, अन्य किस्मों की तुलना में अधिक फायदेमंद रहेगी। इसी प्रकार बाजरा में कम अवधि संकर किस्में जैसे एचबी 67 उन्नत, एमपीएमएच 17, आरएचबी 177 की बुवाई की जाए। वहीं ग्वार में 936 एवं 1003 किस्में फायदेमंद रहेगी। उन्होंने बताया कि सितम्बर में मानसूनी बरसात होने की स्थिति में उपलब्ध नमी का संरक्षण कर आगामी रबी फसलों जैसे तारामीरा, रायड़ा आदि की अगेती बुवाई करना फायदेमंद रहेगा। इसी प्रकार 15 अगस्त के बाद बारिश होने पर चारा फसलों के रूप में बाजरा की बुवाई की जा सकती है। बारिश के बीच फसल अवस्था में लम्बे समय तक नहीं होने पर फसलों में खरपतवारों को निकालने के साथ मृदा पलवार और जैविक पलवार कार्य किय जाए। उन्होंने कहा कि फूल एवं फसल पकाव अवस्था पर बरसात नहीं होने पर हार्मोन्स एचं घुलनशील पोषक तत्व का छिड़काव लाभदायक रहेगा।
बैठक में कृषि अनुसंधान केन्द्र श्रीगंगानगर के डॉ. आर.पी.एस. चौहान, अनुसंधान निदेशालय के उपनिदेशक डॉ. एस. एम. कुमावत, डॉ. आर. एस. राठौड़, डॉ. प्रदीप कुमार, चंद्रभान, डॉ. एस. पी. सिंह, डॉ. नरेन्द्र सिंह, डॉ. ए. आर. नकवी, डॉ. योगेश शर्मा तथा डॉ. एम. एम. शर्मा सहित विभिन्न कृषि वैज्ञानिक मौजूद रहे।
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