Saturday, April 20, 2024
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राजस्थान का इतिहास नई तरह से लिखा जाए – प्रो. गौतम

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बीकानेर abhayindia.com राजस्थान के बारे में जितना कुछ कहा जाए वह कम है क्योंकि यह बहुत बड़ा भूभाग विविधताओं से भरा अपनी भाषा, कला, साहित्य और संस्कृति को संजोए हुए अब मांग कर रहा है कि इसका इतिहास नई तरह से लिखा जाए। नीदरलैंड के अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रो. मोहन कांत गौतम ने ‘अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज मंच’ की तरफ से ‘कोरोना काल में राजस्थानी भाषा, साहित्य अर संस्कृति’ विषय पर बोलते हुए उक्त उद्गार व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि मेरा राजस्थान से जुड़ाव बचपन से रहा है और मुझे भाषाओं से बहुत प्रेम है। इतिहास गवाह है कि राजस्थान में जो भी आया उसे पसंद आया। राजस्थान और राजस्थानी ने सभी को प्रभावित किया है। विश्व की बहुत सी भाषाएं लुप्त हो चुकी है ऐसे में राजस्थानी भाषा के विपुल साहित्य भंडार और वर्तमान साहित्य को देखते हेतु इस भाषा को मान्यता और सम्मानजनक स्थान देकर सरकारी संरक्षण मिलना जरूरी है। प्रो. गौतम ने कहा कि समकालीन साहित्य में वैश्विक दृष्टि होनी चाहिए और वह अनुवाद के माध्यम से विश्व के कोने कोने में पहुंचे।

जोधपुर के कवि-आलोचक डॉ. आईदान सिंह भाटी ने कहा कि कोरोना काल में राजस्थानी में बहुत अच्छा साहित्य राजस्थान के कोने कोने में बैठे रचनाकारों ने रचा है, आज आवश्यकता उस साहित्य के मूल्यांकन के साथ ही प्रकाश में लाने की है। उत्तर आधुनिक साहित्य की तुलना में हमें हमारी परंपरा और विरासत के साथ सामाजिकता को बचाने की आवश्यकता है। डॉ. भाटी ने कहा कि साहित्य में किसान, मजदूर और शोषित वर्ग की पीड़ा को व्यक्त किया जाना चाहिए। राजस्थानी में ध्वन्यात्मकता और नाद सौंदर्य कविता की विशिष्टता है जिसे सहेजते हुए हमें राजस्थानी की सबलता को प्रकाश में लाने की आवश्यकता है।

सूरतगढ़ के युवा कवि-आलोचक डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने राजस्थानी भाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाए जाने पर जोर देत हुए कहा कि राजस्थान में मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम नहीं बनाने से बहुत नुकसान हो रहा है। जब दुनियाभर के शिक्षा वैज्ञानिक और भाषाविद इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि बच्चों की प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही होनी चाहिए फिर राजस्थानी में पढ़ाना बच्चों के लिए सपना ही क्यों है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया ने कहा कि कोरोना काल में राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति के विविध क्षेत्रों में हुए कार्यों को विश्व मंच पटल पर रखने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज की स्थापना की गई है। आज नई तकनीक के माध्यम से राजस्थानी की मांग दूर तक पहुंच रही है। कार्यक्रम में साहित्यकार श्यामसुंदर भारती, बुलाकी शर्मा, राजेन्द्र जोशी, डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित, मनोज कुमार स्वामी, विमला भंडारी, डॉ. नमामीशंकर आचार्य, जगदीश सोनी, जितेंद्र सिंह रावत, मीरा कृष्णा, महेंद्र सिंह छायण, प्रहलादराय पारीक, मुखर कविता, इंदु बारोट, मंजू कुमारी, कन्हैयालाल पारीक ने भाग लिया और अपने विचार रखे। अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी समाज मंच के संयोजक डॉ. नीरज दइया ने बताया कि प्रत्येक रविवार को यह कार्यक्रम फेसबुक पर किया जाता है और सोमवार को प्रातः 9 बजे यूट्यूब चैनल पर प्रसारित होता है।

अगला कार्यक्रम राजस्थानी बाल साहित्य पर केंद्रित रहेगा जिसमें बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा, विमला भंडारी और कृष्णकुमार आशु से डॉ. नीरज दइया बाल साहित्य की दशा और दिशा पर संवाद होगा।

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