Thursday, November 14, 2024
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…तो इसलिए भी राजस्थान-मध्यप्रदेश में चारों खाने चित हुई भाजपा!

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जयपुर (अभय इंडिया न्यूज)। एससी-एसटी द्वारा बुलाए गए भारत बंद के दौरान हुए हिंसक प्रदर्शन हों या सवर्ण आंदोलन, इसका नुकसान आखिरकार भाजपा को ही उठाना पड़ा है। पार्टी इन दोनों ही प्रदेशों में चारों खाने चित हुई है। राजस्थान में भाजपा को मिले वोटों का आकलन करें तो पता चलता है कि यहां पार्टी को एससी-एसटी समुदायों का गुस्सा भारी पड़ा है। वहीं, एससी-एसटी कानून पर भाजपा सरकार के अध्यादेश के बाद सवर्ण संगठनों के आंदोलन से भी मध्यप्रदेश में पार्टी को काफी नुकसान हुआ है।

यहां हुआ 30 सीटों का नुकसान

राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव में एससी-एसटी समुदाय के लिए आरक्षित 59 सीटों में से भाजपा को महज 20 सीटों पर ही जीत मिली है, जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को 50 सीटों पर जीत मिली थी। इसी तरह एससी (अनुसूचित जाति) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित 36 सीटों में भाजपा को महज 11 सीटों पर जीत मिली है, जबकि 2013 के चुनाव में पार्टी को 32 सीटें मिली थीं। वहीं, एसटी (अनुसूचित जनजाति) के लिए आरक्षित 25 सीटों में से भाजपा को इस बार 9 सीटें ही मिली हैं, 2013 में पार्टी को 18 सीटों पर जीत मिली थी।

एमपी में असर…

मध्यप्रदेश में भी भाजपा का कुछ ऐसा ही हाल है। यहां जिन-जिन इलाकों में सवर्ण आंदोलन हुए, वहां-वहां भाजपा को सीटों का नुकसान हुआ है। ग्वालियर और चंबल जैसे इलाकों में जहां सबसे अधिक सवर्ण आंदोलन हुए, वहां की 34 सीटों में से भाजपा महज 7 सीटें ही जीत पाई, जबकि इन इलाकों में भाजपा और संघ का सबसे अधिक वर्चस्व है।

सवर्णों की नाराजगी बनी हार का कारण

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राजस्थान में सवर्णों की नाराजगी भाजपा की हार का कारण बनी। यहां का राजपूत समुदाय और करणी सेना लंबे समय से पार्टी का खुलेतौर पर विरोध कर रहे थे। उनकी नाराजगी बूथों तक जाहिर हुई।
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