Friday, April 19, 2024
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अब शुरू होगी भाटी की नई जंग…!

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ज्योति मित्र आचार्य/जयपुर (अभय इंडिया न्यूज)। पूर्व मंत्री एवं भाजपा के कद्दावर नेता देवीसिंह भाटी ने आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लडऩे की घोषणा करके प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में खासी गर्मी ला दी है। इस घोषणा मात्र से ही कोलायत की ढाणियों से लेकर सत्ता के गलियारों तक चर्चा थमने का नाम नही ले रही है। उधर, राजनीति के पंडितों का मानना है कि भाटी ने ये बयान देकर अपनी नई जंग की तैयारी शुरू कर दी है। गौरतलब है कि वर्तमान में सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों से जनता व जनप्रतिनिधियों में रोष व्याप्त है। ऐसे दौर में भाटी ने चुनाव न लडऩे की तो बात कही है, लेकिन राजनीति से किनारा करने की नहीं। प्रदेश के प्रमुख ब्राह्मण नेता एवं भाजपा विधायक घनश्याम तिवाड़ी के बागी तेवर उसके साथ खांटी राजपूत नेता भाटी का यह ऐलान निश्चित तौर पर भाजपा के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है।

राजस्थान की राजनीति में पिछले तीन-चार सालों में राजपूत समाज असंतुष्ट चल रहा है। यह भी सत्य है कि राजस्थान के चुनाव को जीतने के लिए राजपूतों की अनदेखी नहीं की जा सकती। वर्तमान में प्रदेश के राजपूत नेताओं में यदि कोई नाम सबसे पहले उभरकर आता है तो वह है देवी सिंह भाटी का नाम। जनता की नब्ज पर हर पल हाथ रखने वाले भाटी अच्छी तरह से जानते हैं कि जनता में सरकार के प्रति जबरदस्त रोष है। ऐसे में सरकार के बारे में खरी-खरी कहकर अपने कार्यकर्ता को संतुष्ट करने का प्रयास है। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल पर गत चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने का आरोप प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के सामने लगाकर मंत्री के प्रति भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी को जग जाहिर कर दिया। राजनीति के जानकारों का कहना है कि राजस्थान में भाटी की सक्रियता या निष्क्रियता वोट पर खासा असर डाल सकती है।

यहां उल्लेखनीय है कि देवी सिंह भाटी जमीन से जुड़े हुए नेता है। अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत के बाद लगातार चुनाव जीतने वाले भाटी राजस्थान के एकमात्र करिश्माई नेता है जिनका ब्राह्मणों, मुसलमानों, राजपूतों, पिछड़े वर्ग, आरक्षण से वंचित सहित अन्य वर्गों में खासा प्रभाव है। यदि चुनाव के बाद जोड़-तोड़ की राजनीति भी करनी पड़े तो भाटी को इसमें ज्यादा दिक्कत नही होगी।

पाठकों को याद होगा शेखावत सरकार को बचाने के लिए जनता दल दिग्विजय का भाजपा में विलय करवाने में इस दबंग नेता की अहम भूमिका थी। भाटी ने 90 के दौर में सामाजिक न्याय मंच नाम से आरक्षण आंदोलन शुरू किया था। राजस्थान के लगभग हर जिले में उस दौर की रैलियों में उमडऩे वाली भीड़ ने राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक प्रेक्षकों का ध्यान अपनी ओर खींचा। विगत चुनाव के बाद भाटी ने अपना पूरा ध्यान भारतीय संस्कृति की धरोहर आयुर्वेद व गोचर भूमि को बचाने, उसमें सेवण घास उगाने, गौधन के लिए अपने स्तर प्रयास कर रहे हैं। यही कारण है आज संघ के शीर्ष पदों पर बैठे पदाधिकारियों के चहेते है। राजनीति के पंडितों का मानना है कि यदि भाजपा आलाकमान ने भाटी को चुनावी राजनीति के लिए नहीं मनाया तो राजस्थान में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

भाटी ने छोड़े अर्जुन पर बाण, चुनाव नहीं लडऩे का भी ऐलान

…तो सीएम के बीकानेर आने पर धरना देंगे भाटी

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