Saturday, April 20, 2024
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डॉ. दइया के अतिथि सम्पादन में प्रकाशित ‘सृजन कुंज’ के राजस्थानी कविता विशेषांक का लोकार्पण

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बीकानेर Abhayindia.com सुपरिचित कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया के अतिथि सम्पादन में प्रकाशित ‘सृजन कुंज’ के राजस्थानी कविता विशेषांक का लोकार्पण राजस्थान राज्य अभिलेखागार बीकानेर में किया गया। लोकार्पण पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग राजस्थान जयपुर तथा राजस्थान राज्य अभिलेखागार के निदेशक डॉ. महेंद्र खड़गावत, प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. शिवकुमार भनोत, प्रख्यात साहित्यकार बुलाकी शर्मा ने किया।

इस अवसर पर निदेशक डॉ. महेन्द्र खड़गावत ने कहा कि राजस्थानी कविता का इतिहास बहुत उज्ज्वल रहा है और सृजन कुंज का यह अंक राजस्थानी की आधुनिक कविता का एक सम्यक दस्तावेज प्रस्तुत करता है। अतिथि संपादक कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया के संपादन में प्रकाशित इस अंक के माध्यम से हिंदी के विशाल पाठक वर्ग तक राजस्थानी कविता पहुंच सकेगी।

प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. शिवकुमार भनोत ने कहा कि वर्तमान के राजस्थान को जानने-समझने का यह राजस्थानी कवितांक एक झरोखा है, जिसमें विभिन्न कवियों की कविताओं और विद्वानों के आलेखों द्वारा बदलते हुए राजस्थान के सांस्कृतिक और साहित्यिक परिवेश का सुंदर अंकन हुआ है।

साहित्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि सृजन कुंज के संपादक डॉ. कृष्ण कुमार आशु और अतिथि संपादक डॉ. नीरज दइया के अथक प्रयासों से इस अंक में राजस्थानी के सभी महत्त्वपूर्ण कवियों की रचनाओं को स्थान मिला है वहीं समग्र कविता-यात्रा पर विभिन्न आलेखों के माध्यम से सुंदर आकलन प्रस्तुत किया गया है। डॉ. नीरज दइया अनुवाद और संपादन के कार्य को हिंदी पाठकों तक पहुंचाते रहे हैं।

अंक के अतिथि संपादक डॉ. नीरज दइया ने इस अवसर पर कहा कि गंगानगर से प्रकाशित होने वाली ‘सृजन कुंज’ त्रैमासिक के संपादक डॉ. आशु का आभारी हूं जिन्होंने इस अंक का दायित्व मुझे सौंप कर अपना विश्वास प्रकट किया है। दइया ने कहा कि आधुनिक राजस्थानी कविता की यह अंक एक झलक मात्र प्रस्तुत करता है। आधुनिक राजस्थानी कविता के अनेक हस्ताक्षर और विभिन्न धाराओं के कवियों की सक्रिया को रेखांकित किए जाने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि इस दिशा में अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। राजकीय डूंगर महाविद्यालय के व्याख्याता डॉ. विपिन सैनी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस अंक में राजस्थान के सभी संभागों के प्रतिनिधि कवियों को स्थान मिला है वहीं समग्र कविता के विकास को समझने का यह भागीरथ प्रयास है।

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