बीकानेर abhayindia.com भारतीय पशु प्रजनन अध्ययन सोसाइटी (इसार) एवं वेटरनरी विश्वविद्यालय बीकानेर के संयुक्त तत्वावधान में अश्व प्रजनन विषय पर रविवार को अन्तरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इसमें विशेषज्ञों ने देश में अश्वों की घटती संख्या को लेकर चिन्ता जताई, साथ ही इस विषय पर गंभीरता के साथ मंथन करने की बात कही।
वेबिनार में बोलते हुए भारतीय पशु प्रजनन अध्ययन सोसाइटी के अध्यक्ष प्रो. वी. चन्द्रशेखरमूर्ति ने कहा कि अश्वों के उपयोग का अतीत भारतीय संस्कृति में लगभग 4000 वर्ष पुराना है, इसका वेदो में भी उल्लेख है। घोड़ों की भारत में कई नस्ले है। भारत में 1951 में घोड़ों की संख्या 15 लाख थी जो वर्ष 2019 में 3.4 लाख रह गई। घोड़ा दौड़ से भारत सरकार को 2016 में 600 करोड़ रुपए की आय हुई थी, जो कि 2019 में केवल 220 करोड़ रुपए रह गई।
घोड़ों की घटती हुई संख्या एवं आर्थिक नुकसान को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है। चर्चा के दौरान कुलपति प्रो. विष्णु शर्मा ने बताया कि अश्व (घोड़े) सदा ही राजस्थानी शौर्य एवं राजशाही परम्परा के प्रतीक रहे है, अर्थव्यवस्था में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है अत: इस वेबिनार के माध्यम से विभिन्न घोड़ा पालकों, अनुसंधान, स्वास्थ्य एवं अन्य क्षेत्रों में कार्य कर रहे पशुचिकित्सकों को नवीन जानकारी उपलब्ध होगी साथ ही लाभदायक परिणाम सामने आएंगे।
भारतीय पशु प्रजनन अध्ययन सोसाइटी के राजस्थान चैप्टर के अध्यक्ष प्रो. गोविन्द नारायण पुरोहित ने अश्व प्रजनन की विशेषताओं के बारे में जानकारी दी। इस दौरान अश्व अनुसंधान केन्द्र बीकानेर के वैज्ञानिक डॉ. टी.आर. तालुरी, वेटरनरी कॉलेज के नवानियां उदयपुर के सहायक प्रध्यापक डॉ. दिनेश झाम्ब, पशु प्रजनन अध्ययन सोसाइटी प्रो. जे.एस. मेहत्ता,डॉ. सुमन्त व्यास आदि ने विचार रखे।
21 देशों के प्रतिभागी हुए शामिल
वेबिनार में 21 देशों के कुल 946 प्रतिभागियो ने पंजीकृत किया। डॉ. संदीप धौलपुरिया, डॉ. अशोक खीचड, डॉ. अमित चौधरी एवं डॉ. अशोक डांगी ने सहभागिता निभाई।