Tuesday, May 7, 2024
Hometrendingबीकानेर : तपस्या से कर्मों की निर्जरा-साध्वी श्री सौम्य प्रभा

बीकानेर : तपस्या से कर्मों की निर्जरा-साध्वी श्री सौम्य प्रभा

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad

बीकानेर abhayindia.com श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ की वरिष्ठ साध्वीश्री सौम्यप्रभा, बीकानेर मूल की साध्वीश्री सौम्य दर्शना, अक्षय दर्शना तथा जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की साध्वीश्री श्रद्धानिधि के सान्निध्य में शनिवार को कोचरों के चौक के पुरुष उपासरे में वर्षीतप साधिकाओं का सम्मान व संक्रांति कार्यक्रम हुआ।

कोरोना महामारी को देखते हुए संक्षिप्त कार्यक्रम में लगातार 29 वर्षों से वर्षीतप करने वाली श्राविका कमला पत्नी  गुलाब चंद कोचर, 19 साल से वर्षीतप करने वाली चंपा कोचर पत्नी जयचंद लाल कोचर व दूसरी वर्षी तप की तपस्वी सरोज पत्नी महेन्द्र कोचर का श्री जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ के अध्यक्ष रिखब चंद सिरोहिया, वरिष्ठ श्रावक सुरेन्द्र जैन बद्धानी और विजय चंद बांठिया ने प्रशस्तिपत्र, श्राविकाओ ने माला, तिलक से अभिनंदन किया।

साध्वीश्री सौम्यप्रभा ने प्रवचन में कहा कि दृढ़ आत्मबल से देव, गुरु व धर्म की कृपा से वर्षीतप की कठिन तपस्या की जाती है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव परमात्मा (आदिनाथजी) को दीक्षा अंगीकार करने के बाद लाभांतराय कर्म का उदय होने से 400 दिनों तक निर्दोष भिक्षा की प्राप्ति नहीं हुई थी और उन्होंने 400 दिनों तक निर्जल उपवास किए। आदिनाथ परमात्मा की तपस्या की अनुमोदना व याद और अपने कर्मों की निर्जरा के लिए यह वर्षीतप (संवत्सर तप) किया जाता है। तप में 13 माह और 11 दिवस एकांतर उपवास और पारणे में कम से कम बियासना और नियमित सुबह शाम प्रतिक्रमण किया जाता है। तप के तपस्वियों को दरमियान एक साथ दो दिन नहीं खाया जाता है। तपस्वी निरन्तर उपवास व बियासना, उपवास के दिन देव वंदन, प्रभु पूजा, 12 साथिया व 12 लोगस्स का कायोत्सर्ग, 20 माला ’’श्री ऋषभ देवनाथाय नमः’’ सहित विविध अनुष्ठान के साथ कड़े नियमों का पालन करना होता है।

साध्वीश्री ने कहा कि धन्य है वो श्रावक-श्राविकाएं जो वर्षीतप की तपस्या करते है। उनकी तपस्याओं की अनुमोदना अधिकाधिक करनी चाहिए। तपस्या से कर्मों का क्षय होता है तथा आत्मा सही स्वरूप में प्रकट होकर मोक्ष का मार्ग दिखाती है। उन्होंने कहा कि दान,शील, तप व भाव में तप उत्तम मार्ग है। तपस्या से हम पुराने कर्मों की निर्जरा कर सकते है। जैन धर्म में नवकारसी से लेकर मासखमण,वर्षीतप की तपस्या श्रावक-श्राविकाएं अपनी शक्ति के अनुसार कर सकते है। लोगों की गलत धारणा है कि तपस्या से बीमारियां होती है, जबकी वास्तविकता है कि तपस्या व संयमित आहार का उपयोग करने से तन व मन स्वस्थ रहता है।

साध्वीश्री सौम्य दर्शना ने गीतिका ’’तप जीवन का श्रोत है, तप जीवन की जलती ज्योत है, तप से होती है, कर्म निर्जरा, तप मोक्ष मार्ग का स्तोत्र’’ के माध्यम से तपस्या के महत्व को उजागर किया। वरिष्ठ श्रावक कमल कोचर ने संक्रांति भजन व श्राविकाओं ने भगवान आदि नाथ को समर्पित भक्ति गीत व तपस्या के अनुमोदनार्थ गीत प्रस्तुत किए। इस अवसर पर जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ के अध्यक्ष रिखब चंद सिरोहिया, सुरेन्द्र कोचर बद्धाणी व बांठिया परिवार की ओर से प्रभावना का लाभ लिया गया। सभी को इक्षु रस (गन्ने का ज्यूस) पिलाकर तप का पारणा करवाया गया । अनेक परिजनों ने भी तपस्वियों का अभिनंदन किया।

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad
Ad
- Advertisment -

Most Popular