तुम मर्यादाओं में जकड़ी हो
निस्वार्थ भाव से कर्मरत हो
भरपूर ममता से भरी
कुसुम-सितारों से सजी
सहनशीलता की मूरत
निच्छल मन ज्यूं हो दर्पण
कभी रौद्र-कभी करूण
रूप तुम धरती
क्या कुछ नहीं करती
अतुल्य प्रेम की अधिकारी हो
तुम एक नारी हो।
-चित्रा पारीक, कवयित्री, बीकानेर