बीकानेर (अभय इंडिया न्यूज)। नाटक में कैज्युल एप्रोच को स्वीकार ही नहीं करना चाहिये, परफेक्शन ही अनिवार्यता है। इसके लिए बीच का रास्ता है ही नहीं। ये कहना है एनएसडी अध्यक्ष डॉ. अर्जुन देव चारण का।
सुदर्शना कुमारी कला दीर्घा में बीकानेर के रंगकर्मियों से बातचीत में उन्होंने कहा कि नाटक पांचवा वेद है, हम जानते है पर मानते नहीं। भरत मुनि के नाट्य शास्त्र की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जब नाटक की रचना हुई तो उसे खेलने को कहा गया तब देवताओं ने उसमें असमर्थता जताई। देवताओं ने कहा कि अभिनय हम से संभव नहीं, ये काम ऋषि ही कर सकते हैं। तब ऋषियों ने नाटक खेला।
चारण ने कहा कि आज भी हर अभिनेता ऋषि है, ये उसे जानना चाहिए। उसी अनुसार आचरण, व्यवहार और खान–पान करना चाहिए। तय है, हर अभिनेता फिर श्रेष्ठ करेगा। उन्होंने उत्तर भारत, मराठी, बंगाली, गुजराती, कन्नड़ और राजस्थान के रंगमंच की दशा– दिशा की पूरी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि राजस्थान के अभिनेता को राजस्थानी भाषा, यहां का संगीत, नृत्य, संस्कृति जानना जरूरी है। फिर राजस्थान का रंगमंच अपना स्वरूप बनायेगा और देश मे पहचान भी।
भरत राजपुरोहित के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि अभिनय परकाया प्रवेश है, इसलिए अभिनय के बाद पात्र को छोड़ देना चाहिए। अभिनेत्री मीनू गौड़ के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने नाट्य शास्त्र के उदाहरणों से स्पीच के प्रकार बताये। आरंभ में रंगकर्मी आनंद वी. आचार्य ने राजस्थान के रंगमंच की दशा बताई। वरिष्ठ रंगकर्मी प्रदीप भटनागर ने आभार जताया।
ये रंगकर्मी, साहित्यकार थे शामिल
दयानन्द शर्मा, राम सहाय हर्ष, दलीप सिंह, रोहित बोड़ा, बुलाकी शर्मा, राजेन्द्र जोशी, इरशाद, विजय शर्मा, दीपांशु पांडेय, सुरेश आचार्य, वसीम राजा, अक्षय सियोता, राहुल चावला, काननाथ गोदारा, मुकेश सेवग आदि।
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