Saturday, April 27, 2024
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‘संवेदना के स्वर’ -चित्रा पारीक

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राहुल ने जब हमारा ऑफिस ज्वाइन किया तो वह हम सहकर्मियों में सबसे कम उम्र का और बहुत ही सीधा, सरल स्वभाव का लड़का था। हमें बड़ा ही आश्चर्य होता था, आज के युग में भी ऐसी संतान मिलना सौभाग्य से कम नहीं। कुछ ही समय में राहुल हम सब से घुल-मिल गया था। उसे गुस्से में कोई कुछ कह भी देता तो भी सिकन तक माथे पर नहीं आती थी। कुछ महीने बाद हमारे ऑफिस में एक और एंट्री हुई। वह थी अंकिता।

राहुल की हम उम्र थी। राहुल पहली ही मुलाकात में अंकिता से काफी अटैच हो गया। और “सोने पे सुहागा, तब हुआ जब हमारे बॉस ने अंकिता को काम समझाने का जिम्मा राहुल को दिया। अब तो ना चाहते हुए भी दोनों को एक दूसरे के करीब रहने का मौका मिल रहा था। अंकिता भी स्वभाव से बिल्कुल राहुल की तरह,  शांत शर्मीली और नेक दिल थी। एक मैं ही थी, जिससे वो दोनों दिल की बात साझा करते थे। साथ काम में समय बिताते-बिताते दोनों मन ही मन एक दूसरे को पसंद करने लगे मगर अपने स्वभाव के कारण किसी और को क्या एक दूसरे को भी बता ना सके। इसका अंदेशा मुझे पहले ही हो गया था। बातों ही बातों में 5 महीने निकल चुके थे।

अपनी पर्सनल बातों के लिए दोनों की आंखें काफी थी, जिससे वह अपने प्यार का इजहार भी करते थे। हमेशा ऑफिस आते ही अंकिता को अपनी कुर्सी पर बैठा देखकर राहुल की जान में जान आ जाती थी। मगर उस दिन अंकिता अपनी सीट पर नहीं थी। राहुल अपनी जगह  बैठ कर काम करने लगा। बार-बार दरवाजे की तरफ देख कर हताश मन से फिर अपने काम में लग जाता। जब देर तक वह नहीं आई, तो राहुल के मन में कई सवाल उठने लगे- क्या हुआ? आज आई क्यों नहीं? बीमार तो नहीं? फोन भी तो  बंद आ रहा है। करूं तो क्या करूं! कैसे पूछूँ दीदी से उसके बारे में? ओर किसी को पता ना चल जाए कि मैं उसे पसंद करता हूं।

विचार करता हुआ राहुल आखिर शाम को जाते समय मेरे पास आकर, धीमे स्वर में बोला, दीदी! आज वह आई क्यों नहीं? क्या आप जानते हो? कौन ? मैंने आश्चर्य से पूछा, अंकिता, फाइल के पन्ने पलटता हुआ, खुद को व्यस्त दिखाते हुए बोला। मैंने उसके हाथों से फाइल लेकर उसे सीधी पकड़ाते हुए बताया नहीं, मैं नहीं जानती और मैं घर को निकल गई। अगले दिन तबीयत सुस्त होने के कारण मैं ऑफिस नहीं आई मगर, राहुल 10 मिनट जल्दी आ गया, और बेचैन होकर अंकिता का इंतजार करने लगा जैसे आते ही उसपे सवालों की बौछार कर देगा। मगर, आज भी उसकी कुर्सी खाली थी।

अब राहुल के सब्र का बांध टूट चुका था। 5 महीनों में बातों में बस इतना ही पता था कि इंदौर रहने वाली अंकिता यहां ऑफिस से कुछ ही दूरी पर किराए का कमरा लेकर अकेली ही रहती है। पता करते- करते आखिर कमरे तक पहुंचने  में कामयाब हो गया, पर पता लगा कि अंकिता की मां का स्वर्गवास हो गया है, तो वह अपने घर चली गई। राहुल के बदलते स्वभाव को देखकर मैं दंग थी। चिड़चिड़ा, काम में ध्यान नहीं, आने का, ना जाने का समय, उदास बैठा रहता था। मैंने कारण पूछा तो उसकी आंख भर आई और अंकिता के बारे में बताया उसने। मैंने मदद के लिए यहां-वहां से कैसे भी, उसके लिए अंकिता के इंदौर के घर का पता ढूंढ निकाला। राहुल ने अगले ही दिन ट्रेन पकड़ी और उस पते पर पहुंच गया। दरवाजा खटखटाया! एक बुजुर्ग ने खोला, पता चला कि आर्थिक तंगी के कारण यह घर तो 1 साल पहले ही वह लोग बेच कर यहीं, कहीं ओर रहने लग गए थे। अब कहां है? पूछने पर, पता नहीं।

राहुल की लाख कोशिशों के बाद भी पता नहीं चला, बुझिल मन लेकर राहुल वापस लौट आया। धीरे -धीरे समझाने पर राहुल का दर्द कम हो रहा था, मगर अंकिता के प्रति प्रेम नहीं। उन बातों को थोड़ा समय गुजर चुका था। अचानक मोबाइल में मेसेज टयून बजी, फेसबुक पर  फ्रेंड रिक्वेस्ट थी, देखते ही राहुल चिल्लाया! दीदी, सब सहकर्मी अचानक उसे देखते लगे, राहुल मेरे पास आया, मैंने पूछा ,क्या हुआ? यह देखो, फोन दिखाते हुए, अंकिता की फ्रेंड रिक्वेस्ट देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। आखिरकार दोनों को बात करने का जरिया मिल ही गया। राहुल ने रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करते हुए मैसेज भेजा, हाय!

तुरंत रिप्लाई आया, हाय! कैसे हो?

 जिंदा हूं बस,

सॉरी, तुम्हें बताएं बिना जाना पड़ा।

नहीं, थैंक्स मुझमें फिर से जान डालने के लिए।

मैसेज करते हुए दोनों की आंखों से गंगा-जमुना बहने लगी।

अंकिता ने बताया, कि मां के देहांत के बाद छोटे भाई और अपाहिज पिता की जिम्मेदारियां उसके सर पर आ गई और राहुल की तरह उसके पास भी बात करने का कोई जरीया नहीं था। बहुत ढूंढने पर आज, जैसे कि किस्मत से तुम्हें छीना हो, तुम मिल ही गए। राहुल ने पूछा तुम कहां हो? मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ, अंकिता ने अपने नंबर और पता भेजा, राहुल इंदौर जाकर अंकिता से मिला, ओर वँही रह कर दोनों ने अपना छोटा सा व्यवसाय शुरू कर लिया।

“जब प्रेम सच्चा हो तो पूरी कायनात उसे मिलाने की कोशिश मैं लग जाती है” सुना था मगर देख भी लिया।।

-चित्रा पारीक

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