जयपुर abhayindia.com कहते हैं कि नसीब में यदि जीत नहीं लिखी तो चाहे कितने भी चुनाव लड़ लो, लेकिन सफलता नहीं मिल पाती। ये बात राजस्थान के उन 4 नेताओं पर सटीक बैठ रही है तो पिछले 6 महीने में 2 बड़े चुनाव हार गए हैं। लगातार दो चुनाव में मिली हार के बाद इन नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़ा होने लगा है। अब कांग्रेस ऐसे प्रत्याशियों के बजाय नए चेहरों पर दांव लगाने पर विचार कर सकती है।
आपको बता दें कि भाजपा से कांग्रेस में आए मानवेंद्र सिंह झालरापालटन से चुनाव लड़े, लेकिन यहां उनकी बुरी हार हुई। इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव में आजमाते हुए परंपरागत सीट बाड़मेर से टिकट दिया, इस चुनाव में भी मानवेन्द्र हार गए। उन्हें भाजपा के कैलाश चौधरी ने हराया है।
इसी तरह कांग्रेस के रघुवीर मीणा 2018 के विधानसभा चुनाव में हार गए। इसके बाद भी कांग्रेस ने मीणा पर भरोसा जताते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में उदयपुर से मैदान में उतार दिया, लेकिन मीणा को इसमें भी हार का मुंह देखना पड़ा। इसी तरह कांग्रेस नेता श्रवण कुमार 2018 के विधानसभा चुनाव में सूरजगढ़ सीट से चुनाव हार गए थे। इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में झुझुनू सीट से मैदान में उतारा। इस चुनाव में भी वे हार गए हैं।
कांग्रेस नेता रतन देवासी 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में माहौल होने के बाद भी चुनाव हार गए। इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें जालोर सिरोही लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन इसमें भी वे अपनी प्रतिष्ठा नहीं बचा पाए।
बीते 6 माह के भीतर बाप-बेटे के चुनाव हारने की घटना के भी चर्चे खूब है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में चूरू सीट से बेटे मकबूल मंडेलिया को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया था, जिसे भाजपा के राजेंद्र राठौड़ ने हरा दिया था। इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने उनके पिता रफीक मंडेलिया को अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन वे भी हार गए।
बीकानेर : …इसलिए अब जल्द होगी सियासी नियुक्तियां, कांग्रेस में सरगर्मियां तेज