बीकानेर Abhayindia.com “मैं ज़िन्दा जावेद बाअंदाज़े दीगर हूँ, भीगे हुए जंगल मे सुलगता हुआ घर हूँ, तुम जिस्म के शहकार हो,मैं रूह का फनकार, तुम हुस्न सरापा हो तो मैं हुस्ने–नज़र हूँ।“ ये शेर उर्दू के विद्वान मौलाना उबैदुल्लाह खान आज़मी पूर्व सदस्य राज्यसभा ने होटल ताज एंड रेस्टोरेंट में अपने सम्मान में महफिले अदब की ओर से आयोजित मुशायरे में सुना कर वाह–वाही लूटी।
उन्होंने आशावाद के शेर भी सुनाया– “किरणों से आस तोड़ ले, ज़र्रों को आफताब कर, सुबह कहीं गुज़र ना जाये,सुबह के इंतज़ार में…।“
मुशायरे की अध्यक्षता करते गए पूर्व महापौर हाजी मक़सूद अहमद ने कहा कि बीकानेर में उर्दू शायरी की समृद्ध परम्परा है जो अब भी कायम है।
मुख्य अतिथि अब्दुल वाहिद अशरफी ने अपना कलाम सुनकर दाद लूटी– “मैं ज़ुबाँ से क्यूँ कहूँ वीरानी ए गुलशन का हाल, पूछिये गुल से, कली से, बुलबुले–मुज़्तर से आप।”
वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने तिशनगी रदीफ़ से शेर पेशकर सराहना प्राप्त की। महफिले अदब के डा ज़िया उल हसन क़ादरी ने मां की अज़मत पर शेर सुनाए– ”रक्खा है माँ के पांव में अपना जो सर ज़िया, पहले ज़मीन था ये मगर आसमाँ है अब।”
मुशायरे में असद अली असद, वली मुहम्मद गौरी वली, इरशाद अज़ीज़, साग़र सिद्दीक़ी, अब्दुल जब्बार जज़्बी, इम्दादुल्लाह बासित, क़ासिम बीकानेरी, रहमान बादशाह, माजिद अली ग़ौरी, गुलफाम हुसैन आही व मुईनुद्दीन मुईन ने शानदार गज़लें सुनाकर मुशायरे को आगे बढाया।
इस अवसर पर इस्हाक़ ग़ौरी, हसन राठौड़, कंवर नियाज़ मुहम्मद, अलीमुद्दीन जामी, नोशाद अली, ज़ुल्फ़िक़ार अली सहित अनेक श्रोतागण मौजूद थे। पूर्व में नईमुद्दीन जामी ने संस्कृत में तरन्नुम में नात शरीफ पेश की। संचालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया।
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