ज्योतिष डेस्क। प्राचीन काल से यथा पिण्डे तथा ब्रह्मांडे का सिद्धान्त प्रचलित हैं यह सिद्धान्त बताता हैं कि सौर जगत में सूर्य, चन्द्र, मंगल आदि ग्रहों कि विभिन्न गतिविधियॉ व क्रियाकलापों के जो नियम काम करते हैं ठीक वे ही नियम प्राणी व जीवों पर भी लागू होता हैं, मैंने गण्ड रोग व चेचक तथा लम्पी बीमारी पर ज्योतिषशास्त्र की पुस्तकों का अध्ययन किया तब यह तथ्य शोध के द्वारा मालूम हुआ कि वर्तमान में सम्वत् 2079 में चैत्र मास में यह योग ग्रहों के कारण उत्पन्न हो गया था गोचर ग्रह की सूर्य कुण्डली के अनुसार सूर्य मीन राशि में, मंगल, गुरु, शुक्र कुंभ राशि मे एक साथ होना यह इस रोग को प्रकट करता हैं। श्री विक्रमराज्यातीत पंचाग में शुभ सम्वत् 2079 के शालीवाहनकृत शाकः 1944 ईस्वीय सन् 2022-2023 के भैरव भवानी सुवाक्यं सूत्रावली में लिखा है कि –
युति योग रवि मंदका, पशु पीड़ा जन रोग।
विषम ताप भू–क्रन्दना,जन संतापित योग।।
ज्योतिषशास्त्र की रोग विचार पुस्तक में तत्रैव सू. 20-22 में ऐसा लिखा है कि लग्नेश एवं मंगल त्रिक स्थान में हो तो शरीर में गांठ तथा उस गांठ फुटने से घाव होता। क्योंकि मीन का सूर्य षष्ठ भाव का मालिक होकर लग्न में स्थित लग्न का मालिक बृहस्पति द्वादश भाव में मंगल व शुक्र साथ बैठा हैं। इन तीनों की पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड रही है। पुस्तक देवज्ञभरणम् के पृ. 14 के श्लोक 20 का जिक्र भी ज्योतिषयशास्त्र मे रोगविचार नामक पुस्तक के पृष्ठ संख्या 121 पर किया गया हैं जिसमे लिखा गया हैं कि लग्नेश, षष्ठेश या अष्टमेश मंगल के साथ हो तो गांठ या शस्त्र से घाव होता हैं, लग्नेश लग्न का मालिक बृहस्पति द्वादश भाव में मंगल के साथ है यही से पशुओं में गण्ड रोग इस को पशु माता रोग, चेंचक भी कहे तो ज्यादा ठीक रहेगी। दिनांक 7 अप्रेल 2022 को 15 बजकर 16 मिन्ट पर प्रकट हो गया था।
जेठ बदी एकम पडे, रवि मंगल बुधवार।
संक्रामण रोगों का रहे मास में गर्म बाजार।।
इस वर्ष जेठ बदी एकम को मंगलवार था। इस कारण से भी संक्रामण रोग महामारी, प्लेग, हैजा, आदि रोग उत्त्पन हो सकते हैं। शुक्र से पशुओं के सम्बध में विचार किया जाता हैं। भारतीय ज्योतिष में लिखा है कि यह प्राणी मात्र के प्रति भ्रातृत्व भावना का विकास करता हैं। शारीरिक दृष्टिकोण से अगर देखा जाय तो यह गला, गुरदा, आकृति, वर्ण, केश आदि साधारणतः शरीर संचालित करने वाले अंग एवं लिंग आदि पर इसका प्रभाव पड़ता है। गायों का मानव जीवन में बहुत महत्व है गायों के प्रति लगााव धर्म व संस्कृति दोनो से जुडा है। गायों के गले में पीड़ा शुक्र के द्वादश भाव में होने से हो रही है। ऑख, कान, नाक, गला रोग द्वादश स्थान से देखा जाता हैं।
ज्योतिष में सिद्धान्त, संहिता, होरा आज भी सही सटीक फलादेश देते हैं लेकिन बहुत कम लोग है जो उतर भारत में सम्वत के शुरु वर्ष में भैरव भवानी संवाद को सुनकर लोग अनुमान लगा लेते हैं कि यह वर्ष जनधन के लिए कैसा रहेगा। यह व्यापारी, कृषि, वर्तमान भौगोलिक स्थति के हालात के बारे में ज्ञान होगा। भारत सरकार व राज्य सरकार विद्यालयों में, मंदिरो में, मन की बात की तरह विद्वान पण्डितों द्वारा टी. वी., रेडियो पर ज्योतिष गणनाओं पर आधारित नव वर्ष के शुभारभ में भैरव भवानी संवाद जरुर सुनावें। जिस कारण जनता के मन में संवाद सुनने की जिज्ञासा उत्पन हो।
पशु पीड़ा गण्ड रोग में नवम्बर के प्रथम सप्ताह से सुधार होना प्रारभ होगा।
उपाय :
- लाल फिटकरी व साबत नमक कांच के बर्तन में अलग–अलग डालकर गौशाला में पूर्व दिशा में रखें।
2. एक अखरोट गाय के शरीर पर से सात वार उवार कर चौहराये पर फेंके।
3. दक्षिण की तरफ हनुमान जी के मुंह का फोटो गौशाला में लगावें।
– पं. बृजेश्वर लाल व्यास, कीकाणी व्यासो का चौक, बीकानेर। मो. 9461244520