Saturday, April 27, 2024
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बीकानेर नगर स्थापना दिवस पर उड़ा “चंदा”, युवाओं ने किया परंपरा का निर्वहन

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बीकानेर Abhayindia.com बीकानेर स्थापना दिवस अक्षय द्वितीया और अक्षय तृतीया के मौके पर शहर में पतंगबाजी के साथ गोल सूर्यानुमा राजपतंग ‘चंदा‘ उड़ाने की परम्परा भी रही है। कहा जाता है कि जब बीकानेर बसाने के बाद यहां के तत्कालीन राजा राव बीका जी ने तेज आंधियों में सूर्य न दिखने की वजह से, एक सूर्यनुमा पतंग बनाकर उसमें अपनी खुद की पगड़ी लगाकर सूर्यदेव को नमस्कार किया। तब से ये परम्परा बीकानेर में चलती आ रही है। एक समय के बाद जब राजपरिवार में चन्दा उड़ना बंद हुआ तो मथेरण जाति के लोग इसे उड़ाने लगे और उनके बन्द करने बाद कीकाणी व्यासों के चौक में हैप्पी व्यास परिवार पिछले 38 सालों से ये परम्परा निभाता चला आ रहा है। आज से कई वर्षो पूर्व नगर संस्थापक राव बीकाजी ने संवत 1545 (सन 1488) में बीकानेर की स्थापना कर सूर्य देव को नमस्कार करने के लिए गोल पतंग नुमा चंदा उड़ा सूर्यदेव से खुशहाली की कामना की। उसी परंपरा को किकाणी व्यासों के चौक स्थित व्यास परिवार कई सालों से निभा रहा हैं।

Chanda Flying in Bikaner
Chanda Flying in Bikaner

चंदा कलाकार ब्रजेश्वर लाल व्यास ने “अभय इंडिया” को बताया की “चंदा” पर की जाने वाली कलाकारी और लिखे गये दोहे एक विशेष महत्व रखते हैं। व्यास ने बताया की बीकानेरी रियासत के राजा महाराजाओं, माँ करणी, नगर संस्‍थापक राव बीकाजी और बीकानेरी रियासत को दर्शाने वाला “जय जंगल धर बादशाह” सहित आमजनों में सकारात्मक सन्देश देने के लिए ऐसे चित्र चंदे पर बनाये जाते हैं। इस बार चंदे में विशेष तौर से बीकानेर रियासत के सिक्के, महाराजा गंगा सिंह आदि विषयों के चंदे बनाये गये हैं। इसमे हैप्पी परिवार के ब्रजेश्वर लाल व्यास, गणेश लाल व्यास, भंवर लाल व्यास, राहुल व्यास, पवन व्यास, लोकेश व्यास, मयंक व्यास आदि हर साल मेहनत करते हैं।

क्या हैं चंदा? सौंपी युवाओं को विरासत

सूर्य देव को नमस्कार करने के लिए गोल पतंग नुमा चंदा विशेष प्रकार के बनता हैं। चंदा कलाकार गणेश लाल व्यास ने बताया कि चंदा बनाने में पुरानी बहियों का कागज, सरकंडा, बांस की लकडिया, पाठा डोरी, ल्याई, कपडा, पाग आदि की आवश्‍यकता हैं। कलाकार व्यास परिवार सहित पिछले लगभग 4 दशकों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं जिसको वर्तमान में उन्होंने विरासत के तौर पर पवन व्यास और लोकेश व्यास को सौंप दिया हैं, जो इस परंपरा का भविष्य में निर्वहन करेंगे।

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