Friday, May 3, 2024
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जात-पात से मुक्त कार्यकर्ताओं का चहेता बनना चााहिए प्रदेशाध्यक्ष : भाटी

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जयपुर/बीकानेर (अभय इंडिया न्यूज)। पूर्व मंत्री एवं भाजपा के कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी ने कहा है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था स्थापित होने पर यह उम्मीद बंधी थी कि देश से जातिवाद समाप्त हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उलटे जातिवाद ने न केवल समाज में, बल्कि राजनीति में भी प्रवेश कर उग्र रूप धारण कर लिया है। जाति का राजनीतिकरण किसी सूरत में नहीं होना चाहिए।

भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के पद पर गजेन्द्र सिंह शेखावत के नाम को लेकर चल रही चर्चा के सवाल पर भाटी ने ‘अभय इंडिया’ को बताया कि पार्टी के ऐसे महत्वपूर्ण पद पर चयन जाति के आधार पर नहीं होना चाहिए। इस पद पर तो उस व्यक्ति को लाना चाहिए जो जाति के बंधन से मुक्त हो, कार्यकर्ताओं में छाया हुआ हो। जहां तक गजेन्द्र सिंह शेखावत की बात है तो वे छात्र राजनीति से भी जुड़े रहे हैं और उनकी छवि जाट विरोधी भी मानी जाती है। उनकी नियुक्ति से जाट पार्टी से दूर हो सकते हैं। इस पद पर नियुक्ति से पहले सत्ता पक्ष को भी विश्वास में लेना चाहिए। ऐसा होने से ही सत्ता और संगठन में तालमेल बैठ सकेगा, तभी पार्टी को अपेक्षित लाभ मिलेगा। अन्यथा जातियों के आधार पर नियुक्तियां होने से तो पार्टी और समाज दोनों को नुकसान ही होना है। प्रदेशाध्यक्ष के पद पर अर्जुनराम मेघवाल की दावेदारी के सवाल पर भाटी ने फिर दोहराया कि पार्टी में ऐसे व्यक्ति को ही कमान सौंपी जानी चाहिए जो जाति बंधन से मुक्त हो, जिनकी छवि जाति विशेष के काम करने की बनी हो, उन्हें ऐसे पदों से दूर ही रखा जाना चाहिए।

पार्टी प्रदेशाध्यक्ष पद पर गजेन्द्र सिंह शेखावत के नाम पर विरोध दर्ज कराने के सवाल पर भाटी ने कहा कि प्रकृति ने मुझे ऐसा ही बनाया है कि मैं कोई भी बात करता हूं वो स्पष्ट करता हूं। मेरा व्यक्तिगत रूप से किसी से राग-द्वेष नहीं है, मैं तो बस यही कहता हूं कि राजनीतिक दलों को जाति से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। जातियों से लोग शादी-ब्याह करते होंगे, लेकिन इससे राजनीति नहीं होनी चाहिए। ंपूर्व मंत्री भाटी ने कहा कि वर्तमान में जातिवाद ने न केवल यहां की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धामिक प्रवृत्तियों को ही प्रभावित किया, बल्कि राजनीति को भी पूर्ण रूप से प्रभावित किया है। जाति के आधार पर भेदभाव भारत में स्वाधीनता प्राप्ति से पूर्व भी था, लेकिन स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद प्रजातन्त्र की स्थापना होने पर समझा गया कि जातिगत भेद मिट जाएगा किन्तु ऐसा नहीं हुआ। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

अब शुरू होगी भाटी की नई जंग…!

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