कहा जाता है कि पहला सुख निरोगी काया और दूजा सुख घर में हो माया। आज की इस भाग-दौड़ की ज़िंदगी में सभी लोग दूसरे सुख के पीछे दौड़ रहे है। जिसका नतीजा वे बीमार रहने लगे है। घर का पुरूष सदस्य सभी वाजिब गैरवाजिब आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दिन-रात मेहनत करता है। लेकिन, उसकी मेहनत तब बेकार हो जाती है जब घर में राशन के सामान के बराबर दवाइयों खर्चा होने लगता है। मैंने अनेक क्लाइन्ट्स के यहां देखा कि सभी मेडिकल रिपोर्ट्स सही होते हुए भी बीमारी पकड़ में नहीं आती और आदमी निराश हताश होते हुए एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के यहां चक्कर लगाने को मजबूर होता है। इस तरह की हताशा के हालात में वह ज्योतिष व वास्तु की ओर रुख करता है। मैं ये नहीं कहता कि आपके सभी रोग कोई ज्योतिषी या वास्तुशास्त्री ठीक कर देगा लेकिन साथ में ये कहना चाहूंगा कि यदि वास्तु के कुछ नियमों का सख्ती से पालन करें तो कई मुसीबतों से बचा जा सकता है।
इंटीरियर डिज़ाइन में वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों को अपनाकर, हम ऐसे घर बना सकते हैं जो न केवल सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन दिखें बल्कि हमारे समग्र स्वास्थ्य और खुशी में भी योगदान दें। यह ऐसे वातावरण बनाने के बारे में है जो हमारे शरीर, मन और आत्मा का पोषण करते हैं, हमारे स्वस्थ दैनिक जीवन को बढ़ावा दें।
रंगों का हमारी भावनाओं और सेहत पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इस बात से विज्ञान भी इंकार नहीं करता। यदि करता तो सम्पूर्ण विश्व के अस्पतालों में हरे रंग के पर्दे नहीं होते। वास्तु में पाँच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष के साथ उनके संबंध के आधार पर रंगों का चयन करने का सुझाव दिया गया है। लाल और नारंगी जैसे गर्म रंग अग्नि से जुड़े होते हैं और ऊर्जा और जीवन शक्ति को उत्तेजित करते हैं। दूसरी ओर, नीले और हरे जैसे ठंडे रंग पानी का प्रतिनिधित्व करते हैं और शांति और आराम की भावना पैदा करते हैं। प्राकृतिक तत्वों के साथ रंगों का सामंजस्य करके, हम ऐसे वातावरण बना सकते हैं जो हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में सहभागी हो सकते हैं। घर के अंदर के पौधों और प्राकृतिक रोशनी जैसे प्राकृतिक तत्वों को शामिल करना वास्तु-अनुरूप डिजाइन का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। घर के अंदर के पौधे वायु को शुद्ध करते है। पौधे सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते हैं और नकारात्मकता को दूर भगाते हैं। वास्तु शास्त्र प्राकृतिक प्रकाश घर में अधिकतम आए इसकी वकालात करता है। मेडिकल साइंस भी मानता है सूर्य का प्रकाश से विटामिन डी संश्लेषण बढ़ता है। आज अधिकतर बीमारियां इस विटामिन की कमी की देन है।
अगर घर के सदस्यों में मानसिक शांति का अभाव है, तो कमरों की पूर्व और उत्तर दिशा से पश्चिम और दक्षिण को भारी कर देना चाहिए। ईशान कोण काफी संवेदनशील होता है, स्वास्थ्य सुख और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इसे साफ-सुथरा, स्वच्छ रखने का हमेशा प्रयास करना चहिए। ईशानकोण वास्तुदोष रहित रहने से धन का अपव्यय दवाइयों पर नहीं होता है।
सिर दर्द/माइग्रेन के लिए
यदि व्यक्ति को सिर दर्द की शिकायत रहती है तो बिस्तर पर सफेद चादर बिछानी चाहिए। वास्तुशास्त्र के अनुसार, बीम के नीचे बैठना, सोना, पढ़ना अत्यधिक मानसिक दबाव और चिड़चिड़ापन देता है, जो कि स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होता है।
घर के अधिकांश सदस्यों को स्वास्थ कष्ट है तो, तो मकान तथा भूखंड के बीच के स्थान, ब्रह्मस्थान, में कोई स्टोर, लोहे का सामान या जाल, अथवा फालतू सामान नहीं रखें।
जोड़ों में दर्द होने पर
अनुभवों में पाया गया है कि घर की दीवारों का उखड़ा हुआ प्लास्टर अशुभ उर्जा का संचार करता है, अगर घर की दीवारों में दरारे हैं, तो ग्रहदशा निर्बल होने पर घर के सदस्यों को जोड़ों में दर्द, गठिया, साइटिका, पीठ का दर्द आदि की समस्या हो सकती है। इन दरारों को प्लास्टर करवा करके बंद करा दें।
लोगों की आदत होती है कि वह सीढ़ियों के नीचे की जगह पर कुछ-न-कुछ रख देते हैं। इसे ठीक नहीं माना गया, क्योंकि ऐसा करने से आप कई बीमारियों से घिर सकते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए वास्तु में सीढ़ियों के नीचे की जगह को साफ और अव्यवस्था मुक्त रखने की सलाह दी जाती है।
बेडरूम पूरी तरह से बंद नहीं होना चाहिए। बेडरूम में पलंग के सामने दर्पण नहीं होना चाहिए। ऐसा होने से व्यक्ति की सेहत खराब रह सकती है।
हृदय रोग की समस्या के लिए
घर के मुख्य दरवाजे के सामने कोई गड्ढा या कीचड़ है तो इससे परिजनों को मानसिक रोग या तनाव तथा विभिन्न शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। उस गड्ढे को मिट्टी से भर दें। ध्यान रखें कि घर के मुख्य दरवाजे के सामने गंदगी न रहे। मकान के ठीक सामने विशाल पेड़ नहीं हो, तो बेहतर है। विशाल पेड़ से पड़ने वाली छाया मकान में रहने वाले सदस्यों पर शुभ प्रभाव नहीं डालती और वहाँ के लोगों को साँस, हृदय रोग जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। कई बार बाईपास सर्जरी तथा एंजियोग्राफ़ी भी करवानी पड़ जाती है।
मुख्य द्वार के सामने कोई गड्ढा या सीधा मार्ग नहीं होना चाहिए। इससे वास्तु दोष उत्पन्न होता है जो स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। मुख्य द्वार के ठीक सामने किसी भी तरह का कोई खंभा न हो।
पेट की समस्या से पीड़ित होने पर
यदि आप पेट की समस्या से ग्रसित है तो आप जब भी भोजन करने बैठें तो इस बात का ध्यान रखें कि आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा में हो। इससे पाचन अच्छा होगा जिस कारण आपकी सेहत अच्छी रहेगी।
रसोई घर में भोजन बनाते समय यदि गृहणी का मुख दक्षिण दिशा की ओर है तो त्वचा एवं हड्डी के रोग हो सकते हैं। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन पकाने से पैरों में दर्द की संभावना भी बनती है। इसी तरह पश्चिम की ओर मुख करके खाना पकने से आँख, नाक, कान एवं गले की समस्याएं हो सकती हैं। पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके रसोई में भोजन बनाना स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
किसी भी भवन में ईशान कोण का संबंध जल तत्व से होता है अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से किसी भी मानव के शरीर में जल तत्व के असंतुलित होने से अनेक व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। अतः ईशान कोण को जितना खुला एवं हल्का रखेंगे उतना ही अच्छा है इस दिशा में रसोई का निर्माण अशुभ है रसोई निर्माण करने पर उदर जनित रोगों का सामना करना पड़ता है
रक्त संबंधित समस्या के लिए
भवन में ईशान कोण कटा हुआ नहीं होना चाहिए। कोण कटा होने से भवन में निवास करने वाले व्यक्ति रक्त विकार से ग्रस्त हो सकते है यौन रोगों में वृद्धि होती है प्रजनन क्षमता में कमी हो सकती है। ईशान कोण में यदि उत्तर का स्थान अधिक ऊंचा है तो उस स्थान पर रहने वाली स्त्रियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
अनिद्रा/अवसाद जैसी समस्या के लिए
वास्तुशास्त्र में पूर्व तथा उत्तर दिशा का हल्का और नीचा होना तथा दक्षिण व पश्चिम दिशा का भारी व ऊँचा होना अच्छा माना गया है। यदि पूर्व दिशा में भारी निर्माण हो तथा पश्चिम दिशा एकदम खाली व निर्माण रहित हो तो अनिद्रा का शिकार होना पड़ सकता है। उत्तर दिशा में भारी निर्माण हो परन्तु दक्षिण और पश्चिम दिशा निर्माण रहित हो तो भी ऐसी स्थिति उत्त्पन्न होती है।
गृहस्वामी अग्निकोण या वायव्य कोण में शयन करे, या उत्तर में सिर व दक्षिण में पैर करके सोए तब भी अनिद्रा या बेचैनी, सिरदर्द और चक्कर जैसी परेशानी हो सकती है, जिसके कारण दिन भर थकान की समस्या हो सकती है। धन आगमन और स्वास्थ्य की दृष्टि से दक्षिण या पूर्व की ओर पैर करना अच्छा माना गया है।
घर के आग्नेय कोण में टॉयलेट रोगों को निमंत्रण देता है। इसकी वजह से आपका अधिकतर पैसा दवाओं पर वेस्ट होता है। इसीलिए इस दिशा में टॉयलेट बनवाना अवॉयड करें। घर में किचन नॉर्थ-ईस्ट में होने से स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता है। साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि घर की छत पर कबाड़ या फ़ालतू सामान ना रखें अन्यथा परिवार में रोगों का आगमन हो जाता है।
प्रायः लोगों की आदत होती है कि लोग दवाइयों को अपने सिरहाने पर रखते है। घर में सकारात्मकता बढाने के लिए नियमित रूप से खिड़कियों और दरवाजों को कुछ देर के लिए खुला रखें। वास्तुशास्त्र कोई उपचार की विधि भले ही न हो लेकिन बिना साइड इफेक्ट के मामूली बदलावों से यदि स्वस्थ जीवन मिले तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। -सुमित व्यास, एम.ए. (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल- 6376188431