Friday, April 26, 2024
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आचार्य ज्‍योति मित्र का व्‍यंग्‍य : अब संस्कार सेलिब्रिटी बनाने का?

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वो राजतंत्र का जमाना था जब हमारे शहर में सिर्फ राजा जी ही सेलिब्रिटी होते थे। अब आप कहेंगे कि राजा है तो सेलिब्रिटी तो होंगे ही, इसमें नई बात क्या है? अरे भाई खास बात तो यह है कि उस जमाने में सेलिब्रिटी के जलवे देखदेख कर जवान हुई कई पीढ़ियों की तिलमिलाहट अब इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में सेलिब्रिटी बनने के अवसर तलाश रही है। उस जमाने में तो टेम्प्रेरी सेलिब्रिटी बनते थे। समाज उनकी सेलिब्रिटी बनने की दबी इच्छा को पूरी कराने के लिए उनका विवाह तय कर देता। इसमें नाम तो एक का होता लेकिन कई सेलेब्स तैयार हो जाते। खैर, आम जन भी राजा जी की तरह घोड़ी पर बैठते क्योंकि घोड़ा तो राजाजी के लिए ही रिजर्व होता था। इस एक दिन के राजा जी के लिए रिश्तेदार ही दरबारी का रोल भी प्ले कर लेते थे। फिर वो कुछ दिनों के लिए सेलिब्रिटी बन जाते थे। लोग विवाह में छक कर खाते पीते। बाद में नई सेलिब्रिटी की खोज में निकल पड़ते।

उस जमाने का इतिहास खंगालने वाले बताते हैं कि उस दौर में यदि किसी की सगाई नहीं होती तो उसका दिमाग सटक जाता । सेलिब्रिटी बनने की सनक में असफलता मिलने पर सैकड़ों लोग सटक गए। इन सब सनकियों की हरकतें भी एक जैसी होती थी । इनकी संख्या ज्यादा होने के कारण शुरू में लोगों ने इन्हें लाल , हरा जैसे रंगों के नाम से पुकारना शुरू किया जो बाद में इनकी पहचान बन गया।

जमाना बदला तो सेलिब्रिटी बनना लोगों की मजबूरी बन गई इसलिए पहले 16 संस्कार माने जाते थे अब 17 वां संस्कार सेलिब्रिटी बनाने का हो गया। रातोंरात सेलिब्रिटी बनाने वाले पण्डों की पूरी एक जमात मैदान में आ गई। इसका असर भी हुआ है। टेलीविजन व सोशल मीडिया के इस दौर में सेलिब्रिटी बनने की सुनामी आई हुई है। सेलिब्रिटी बनने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई को लोगों में बांटा जा रहा है। बांटते हुए के फोटो खिंचवाएं जा रहे हैं, उनको सोशल मीडिया पर अपलोड किया जा रहा है। काम यहीं खत्म नहीं होता उसके लिए लाइक और कमेंट का जुगाड़ भी किया जाता है। अब तो हर आदमी खास होने की ख्वाहिश रखता है। उसको सब कुछ समझा जाए लेकिन आम आदमी न समझा जाये। मैं तो आजकल सोशल मीडिया में इस तरह बैठे लोगों को बहुत खास क़िस्म का प्राणी ही समझ रहा हूं। आम से खास बनना है तो खर्चा तो करना पड़ेगा। भई फोकट में कौन बनाता है सेलिब्रिटी? अब खर्चा कर सोशल मीडिया की शॉर्टकट से सेलिब्रिटी बनने वालों की तानाशाही तो देखते ही बनती है। पहले राजा लोग अपने साथी राजाओं को अपने हाथी, घोड़े , दास व दासियां गिनाते थे। गिनती आज भी होती है सम्मान समारोह में मिले शाल व प्रशस्ति पत्र की। दिखाने के लिए महल तो होते नहीं इसलिए समारोह की फोटो दिखाने की रस्म पूरी की जाती है।

एक तरफ आम खास बनने की जुगाड़ में लगा है वहीं हमारे नेता अपने को आम आदमी घोषित करने में ही लगे रहते हैं। उधर, एक राजनीति की टाइमबार्ड सेलिब्रिटी को अरसे से कोई पूछ नहीं रहा था उन्होंने मुख्य धारा में आने के लिए अपने पुराने पट्ठों से कहा मेरे घर के आगे आकर प्रदर्शन करो। पट्ठों ने गुरु की आज्ञानुसार उनके ही घर के आगे मुर्दाबाद के नारे लगाए। इन नारों ने संजीवनी का काम किया, मुर्दाबाद के नारों से उनकी राजनीति फिर से जिंदा हो गई! अखबारों में खबर छपी, अरसे बाद टीवी पर दिखे सोशल मीडिया पर पोस्टें लिखी गई और सेलिब्रिटी बनने का संस्कार पूरा हो गया। सेलिब्रिटी के रिफॉर्म में आए नेताजी की पार्टी में पूछ होने लगी। हमारे यहां एक नेताजी प्रत्येक चुनाव में पार्टी का टिकट मांगते हैं, लोग उनके वोटों की गणना करते हैं। चुनावचुनाव वे सेलिब्रिटी के टेम्प्रेरी सिंहासन पर बैठकर इतराते रहते हैं।

वहीं, कोरोनाकाल में हमारे उस्ताद जी के हाथ कुछ नहीं लगा तो उन्हें सेलिब्रिटी बनाने के धंधे में स्कोप नजर आ गया। बस फिर क्या था उन्होंने अपने एक पट्ठे के मुख से मुनादी करवा दी कि हम जिसे मानेंगे वही सेलिब्रिटी होगा। हमारे कहे बिना कोई सेलिब्रिटी हो ही नहीं सकता। अब उस्ताद जी को पूछो उनको यह मानक अधिकारी किसने नियुक्त किया, यह तय करने के लिए कि कौन सेलिब्रिटी है व कौन आम आदमी। उस्ताद जी ने आम आदमी के खिलाफ अनटोलरेंस का माहौल कुछ इस तरह बनाया है कि आम आदमी को लगता है यदि वे समय रहते सेलेब्स नहीं बने तो सरवाइव करना मुश्किल हो जाएगा। आम आदमी दहशत में जी रहा है उधर सेलेब्स बनातेबनाते अपने स्टारडम पर इतराते उस्ताद जी से इस बारे में कुछ पूछना तो पत्थरों पर सिर फोड़ना है। उस्ताद जी ने इन दिनों एक विज्ञापन बनाया है जिसका मजमून है – ‘ क्या आप आम आदमी की जिंदगी ढोतेढोते परेशान हो गए हैं तो आज ही हमसे सेलिब्रिटी बनने के लिए संपर्क करें। हमारे यहां 24 घंटे में गारंटी से सेलिब्रिटी बनाए जाते हैं। उस्ताद जी ऐसे ही गारंटी नहीं देते। इतिहास गवाह है उन्होंने कई लफाड़ियों को लोक कला मर्मज्ञ बना कर उनकी बड़ीबड़ी खबरें अखबारों में छपवा दी। जिन लोगों ने अपने परिजनों की कभी खैर खबर नहीं ली उन्हें समाजसेवी बना डाला। घर की जोरू ने जिसका कहना कभी नहीं माना उसे जनाधार वाला नेता घोषित कर दिया। जो एक पंक्ति लिखने में दुनियाभर की गलतियां करते वे उस्ताद जी की ग्रूमिंग क्लास में जाकर भाषाविद् बन गए। जो कमाई के फेर में अपनी ही कहानी भूल गए थे उन्हें कहानीकार बनाकर एक नई कहानी रच डाली। उस्ताद जी की दुकान से सेलिब्रिटीज की फसल हर दिन तैयार होती है। बताते हैं कि उस्ताद जी ने अपने आढ़तिये पूरे शहर में छोड़ रखे हैं। उनको सख्त हिदायत दे रखी है कि शहर में कोई भी सेलिब्रिटी बनना चाहता है तो उसे निराश न किया जाए। उस्ताद जी गलत नहीं हैं, अवसर है तो उसका लाभ लेने में क्या हर्ज है। आजकल बच्चे के पैदा होते ही उनकी मांएं उन्हें सेलिब्रिटी बनाने के संस्कार देने लगती हैं। पहले दिन रोतेरोते स्कूल गए अपने लाल को मॉनिटर बनाने का जुगाड़ में लगती है। जिस तरह से सेलिब्रिटी बनाने का धंधा जोरों पर चल रहा है उससे लगता है एक दिन हमारे यहां सभी लोग सेलिब्रिटी हो जाएंगे। तो क्या भविष्य में आम आदमी को सेलिब्रिटी से बचाने के लिए अभ्यारण्य खोले जाएंगे? यदि इस तरह के प्रयास गम्भीरता पूर्वक नहीं किए गए तो आम आदमियों की प्रजाति पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। -आचार्य ज्‍योति मित्र (व्‍यंग्‍यकार), उस्‍ता बारी के अंदर, बीकानेर

आचार्य ज्योति मित्र का व्‍यंग्‍य- साहित्य का सिकंदर! 

उस्तादजी बचपन से ही सिकंदर को अपना आदर्श मानते रहे हैं। मानें भी क्यों ना? वो सिकंदर ही तो था जिसका पाठ उन्हें कंठस्थ याद था। वो पाठ उनकी स्मृति में हमेशा के लिए छप गया था कि सिकंदर महान था, वो विश्व विजय के लिए निकला था। बस वो दिन और आज का दिन, उस्तादजी भी महान बनने के लिए हाथ-पैर मारने लगे। वे उस समय से महान बनने के लिए लालायित थे जब वे पूरी तरह से मानव भी नहीं बने थे। गणित में तो वे आर्यभट्ट के चेले हैं इसलिए कैलकुलेशन कर उन्होंने पहले लोगों को महान घोषित करने का काम बड़ी शिद्दत से किया। सच तो यह है कि वे जब, जिसे और जहाँ चाहें, महान घोषित कर सकते हैं।

ये तो उस्तादजी का ही कमाल था कि उन्होंने ऐसे कई महान बना दिए जो ठीक से इंसान भी नहीं थे। उस्तादजी के प्रसाद से वे सीधे भगवान हो गए! उस्तादजी के महान बनाने के हुनर ने हमें भी अंदर तक झकझोर दिया। आप ऐसे समझ लें कि महान बनने की हमारी दबी इच्छा भी हिलोरे मारने लगी। अपनी इच्छा को अमलीजामा पहनाने के लिए हम भी उस्ताद जी के अखाड़े में पहुँच गए। वहां जाकर तो उस्ताद जी की महानता से आतंकित हो गए। उनकी महानता का तेज इतना था जिसे हम बर्दाश्त नहीं कर पाए। आपसे क्या छिपाना, अपनी कमजोर इम्युनिटी के कारण हम उस्ताद जी के सामने एक मिनट भी नहीं ठहर पाए। भारत के इतिहास में नौ रत्न रखने वाला एक अकबर ही महान नहीं हुआ। हमारे उस्ताद जी ने भी अपने नौ रत्न अपॉइंट कर रखे हैं। ये बात अलग है कि हमने भी एक बार उनका दसवां रत्न बनने का सांगोपांग प्रयास किया, लेकिन नौ रत्नों के विद्रोह के डर से हमारे सारी कोशिशें भोथरी हो गई। उनके अपने पर्सनल हिस्टोरियन हैं जो साहित्य की सूनी गोद भरने का श्रेय उस्ताद जी को ही देते हैं।

शुरुआत में साहित्य बहुत ही आशाभरी निगाहों से उस्ताद जी की ओर निहार रहा था, लेकिन उस्ताद जी का रोल मॉडल तो सिकंदर रहा है। कहते हैं अपनी मृत्यु तक सिकन्दर उस तमाम भूमि को जीत चुका था, जिसकी जानकारी उसके देश के लोगों को थी। हमारे उस्ताद जी भी कम नहीं है, उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में अपना जौहर दिखाते हुए अपने दौर के सभी सम्मान व पुरस्कारों पर बलपूर्वक अपना आधिपत्य जमा लिया। उस्ताद जी के साहित्य के इस अश्वमेध घोड़े को जिसने भी पोरस बनकर रोकने की कोशिश की, उस पर उनका प्रकोप टूट पड़ा।

हमारे उस्ताद जी साहित्यिक चौकीदारी को कर्म-कांड मानते रहे हैं। साहित्य का यह प्रधान सेवक यह काम दरबारी इतिहासकारो के भरोसे नहीं छोड़ सकता, इसलिए अपनी ‘साहित्यिक चौकीदारी’ की वसीयत वे जरूर अच्छे से किसी गुरू अरस्तू के नाम लिखेंगे। -ज्‍योति मित्र आचार्य, उस्ता बारी के अंदर, बीकानेर

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