अभय इंडिया न्यूज़ abhayindia.com समय काल अपने चक्र के साथ घूम रहा हैं। इस दौर में समय ने अपने काल चक्र से ऐसे जगह ला दिया हैँ। जहां एक और महामारी का दौर आ गया, और लोग इससे इतने प्रभावित हुए कि आज घरों में रुकने को मजबूर हे तो, इसी दौर में सरकारी चैनल दूरदर्शन ने अपने उस समय को याद किया जब लोग मजबूर होकर दूरदर्शन देखते थे।
क्योंकि “रामायण” जो आती थी और आज उन्हीं लोगों के लिए एक बार फिर वो पारिवारिक एकता को जोड़ने वाला नाट्य लोगों के सामने चरितार्थ हो रहा हैं, वही जो 33 वर्ष निकले इसमें कई गुण-अगुण लोगों के साथ जुड़े, क्योंकि समय ने अपना पहरा फेरा था और पारिवारिक दूरियां आने लगी थी क्योंकि मर्यादा की लेखांकन अपने स्तर से नीचे आ गयी थी, लेकिन इस दौर में “रामायण” अपना गहरा प्रभाव छोड़ रही है जहाँ परिवार उसी समय की तरह अखंड होकर साथ देखता हैं तो अनुमानित ही वह लाभ उन परिवारों के मर्यादित संस्कारो में हिजाफा करेंगे, क्योकि मर्यादा की पूर्ण परिभाषा की रचना तुलसीदास जी ने रामायण में की हैं।
साथ ही रामायण हमारें जीवन के उस दौर में भी शुरू हुआ जहाँ हमें अपने कठिनाइयों का सामना करना हैं और उन्ही कठिनाइयों से चनौतीपूर्ण निपटने के सीख हमें आज के दौर में रामायण दे रहा हैं और तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में कहा हैं कि…
पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदं
मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम्।
श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये
ते संसारपतंगघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः
(यह श्री रामचरितमानस पुण्य रूप, पापों का हरण करनेवाला, सदा कल्याणकारी, विज्ञान और भक्ति को देनेवाला, माया मोह और मल का नाश करनेवाला, परम निर्मल प्रेमरूपी जल से परिपूर्ण तथा मंगलमय है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस मानसरोवर में गोता लगाते हैं, वे संसाररूपी सूर्य की अति प्रचंड किरणों से नहीं जलते)