






नौ ग्रहों में से शनि ग्रह सबसे मंद गति से चलने वाला ग्रह है। शनि ग्रह को न्याय का देवता दंडाधीश भी कहा जाता है, अर्थात अच्छे कर्म करने वालों को शनि सुख, सफलता, सौभाग्य आदि शुभ फल एवं बुरे कर्म करने वालों के लिए दंड देने का कार्य करते हैं। ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को सूर्य पुत्र शनि का जन्म हुआ था। इसलिए ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 27 मई को शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। यह देवी छाया और ग्रहों के राजा सूर्य के पुत्र हैं। शनि मकर एवं कुंभ राशि के स्वामी है एवं अनुराधा, पुष्य एवं उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी हैं। तुला राशि में शनि उच्च राशि में तथा मेष राशि में शनि नीच राशि में होते हैं। एक राशि में शनि ढाई वर्ष तक रहते हैं।
सामान्यतया शनि की साढ़ेसाती या ढैया का नाम सुनते ही लोग भयभीत होने लगते हैं जबकि शनि एक न्यायाधीश की तरह काम करते हैं और हर समय अशुभ फल नहीं देते हैं। वृष, तुला, मिथुन, कन्या, मकर, कुंभ लग्न के जातकों के लिए शनि की महादशा, साढ़ेसाती, ढैया आदि शुभ फलदाई होती है। शनि की वक्र दृष्टि एवं साढ़ेसाती व्यक्ति के जीवन पर अपना प्रभाव डालती है। शनि का गोचर में तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव से भ्रमण शुभ फलदायक होता है। भगवान गणेश का सिरच्छेदन हो चाहे राम का बनवास, राजा हरिश्चंद्र, रावण, विक्रमादित्य आदि भी शनि की वक्र दृष्टि से बच नहीं पाए थे।किंतु ज्योतिष की केपी पद्धति के अनुसार शनि की साढ़ेसाती को मान्यता नहीं दी जाती है।
कृष्णमूर्ति पद्धति पूरी तरह नक्षत्रों के आधार पर फलादेश करती है। केपी पद्धति शनि की साढ़ेसाती या ढैया को मान्यता नहीं देती। इस पद्धति के अनुसार, यदि शनि जन्म कुंडली में शुभ भावों में स्थित ग्रहों के नक्षत्र में हो या गोचर में शनि शुभ भाव में स्थित ग्रहों के नक्षत्र में या शुभ भावों के स्वामी के नक्षत्र में जा रहे हो तो साढ़ेसाती होने पर भी अर्थात शनि के चंद्रमा की राशि पर या उससे 12वीं या अगली राशि पर गोचर में जाने पर भी शुभ फल प्राप्त होते हैं। उदाहरण के तौर पर एक लोकसभा सांसद के तुला लग्न की कुंडली में शनि कारक होकर लग्न में उच्च राशि में स्थित हैं। जातक के उस समय शनि की महादशा थी और जन्म राशि कन्या से 12वीं राशि सिंह से शनि के गोचर में जाने पर शनि की साढ़ेसाती भी थी। शनि के गोचर में सिंह राशि में शुक्र के नक्षत्र में जाने पर जातक की कुंडली में शुक्र के लग्नेश होकर लाभ भाव में होने के कारण साढ़ेसाती होते हुए भी इन्हें प्रसिद्धि मिली और शनि की साढ़ेसाती में ये सांसद बने।
कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार शनि की साढ़ेसाती होने पर भी शनि के गोचर में शुभ नक्षत्रों में जाने पर शुभ फल प्राप्त होते हैं। जिन जातकों की कुंडली में शनि नीच या अस्त, मारकेश या शत्रु राशि में स्थित होकर पीड़ा दे रहे हो तो सरल उपाय के जरिए उनके कुप्रभाव को कम किया जा सकता है :-
(1) सदाचारी जातकों को शनि सदैव कृपा करते हैं, अतः सबसे पहले अपना आचरण सुधारें, सत्कर्म व परोपकार से जुड़ें।
(2) नौकर, दीन दुखी, गरीब, मजदूर वर्ग की मदद करें। इनसे अच्छा व्यवहार रखें। वृद्धजनों, माता-पिता की सेवा करें। कुसंगति से बचें और मांस मदिरा से दूर रहें।
(3) छाया दान करें। शनिवार को लोहे के पात्र में तिल्ली का तेल, काले तिल व लोहे की कील डालकर इसमें चेहरा देखकर डाकोत को दान करें।
(4) किसी लंगड़े व्यक्ति को काला वस्त्र या काला कंबल दान करें। शनिवार को खेजड़ी के पेड़ की जड़ में जल डाल कर दीपक जलाएं।
(5) शनिवार को नारियल को थोड़ा सा काट कर उस में आटा, बुरा और घी डालकर शाम के समय चींटियों के स्थान में गाड़ दें। प्रतिदिन या शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करें। –डॉ. लता श्रीमाली, निदेशक, राजस्थान संस्कृत अकादमी जयपुर, केपी एवं वैदिक ज्योतिष विशेषज्ञ, मालवीय नगर, जयपुर



