आज होली है। रंग के साथ उमंग है। ढंग कुछ अलग है। यह पल है मिलन का। नाचने–झूमने का। जवान बच्चे बन गए हैं। बूढ़े जवान हो चले हैं। सब अलमस्त है। त्यौहार भी मद मस्त है। बीती बातें भूलने का है। नए आयाम लिखने का है। नए अंदाज से जीने का है। बयार फागुनी है। इसलिए रौनक भी चौगुनी है। चेहरों पर लाली है। लबों पर श्लील गाली है। गली–चौक में चंग–डफ की थाप है। परकोटे में तो रसिकों की धाक है। –सुरेश बोड़ा
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