Friday, March 29, 2024
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‘कैमल मिल्क’ की औषधीयता को आमजन तक पहुंचाना होगा : प्रो. डुकवाल

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बीकानेर Abhayindia.com ऊँटनी के दूध (कैमल मिल्‍क) की औषधीयता, इसे विविध रूपों में बाजार तक लाने की मांग कर रही है ताकि आमजन को दूध एवं इससे निर्मित स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों का लाभ मिल सके। वहीं, ऊँट पालकों की आय में बढ़ोत्तरी हो सकेगी। ये विचार आज भाकृअनुराष्‍ट्रीय उष्‍ट्र अनुसंधान केन्‍द्र में आयोजित ‘’उष्ट्र डेयरी उद्यमिता विकास एवं उष्ट्र स्वास्थ्य प्रबंधन’’ विषयक तीन दिवसीय एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन प्रशिक्षण कार्यक्रम (24-26 मार्च) के समापन पर मुख्‍य अतिथि प्रो. विमला डुकवाल, अधिष्ठाता, स्‍नातकोत्तर अध्ययन, स्वामी के.रा.कृ.वि., बीकानेर ने व्यक्त किए।

प्रो. डुकवाल ने गुजरात (कच्छ) से आए युवा प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि देश में आज का दौर, मात्रा के स्थान पर गुणवत्ता का है तथा प्रतिद्वंदी बाजार में उपभोक्ता द्वारा दूध एवं दुग्ध उत्पादों का चयन, औषधीय गुणों के आधार पर किए जाने का दौर है तो इस परिप्रेक्ष्य में ऊँटनी का दूध एकदम सटीक बैठता है क्योंकि यह औषधीय गुणधर्मों से भरपूर है। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण को अत्‍यंत जरूरी बताया। मुख्य अतिथि ने ऊँटों के परंपरागत उपयोग, सांस्कृतिक संरक्षण, ऊँटनी के दूध का पोषकीय मान एवं भ्रांतियों की समाप्ति, दूध की उपभोक्ताओं में मांग, युवाओं द्वारा उष्‍ट्र पालन व्यवसाय को आगे ले जाने आदि विभिन्न मुद्दों व पहलुओं पर बातचीत करते हुए एनआरसीसी द्वारा अनुसंधान के साथ दूध व पर्यटन के क्षेत्र में किए जा रहे सक्रिय प्रयासों की भी सराहना कीं।

समापन कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्‍धु साहू ने ऊँट को ‘औषधि भण्डार’ की संज्ञा देते हुए कहा कि इसके दूध में अनेकों औषधीय गुण पाए गए हैं तथा यह कई बीमारियों में कारगर सिद्ध हुआ है। डॉ. साहू ने सभी प्रशिक्षणार्थियों को बधाई देते हुए यह आशा व्यक्त की कि प्रशिक्षण उपरांत गुजरात राज्य में ऊँटनी के दूध व्यवसाय के साथसाथ ऊँटों की बहुआयामी उपयोगिता पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए तथा ट्रेनिंग में प्राप्त ज्ञान को प्रशिक्षणार्थी, अधिकाधिक ऊँट पालकों व किसानों तक पहुँचाएं, सही मायने में तभी इसकी सार्थकता सिद्ध हो सकेगी। डॉ.साहू ने देश के विभिन्न इलाकों में दूध की मिल रही अच्छी कीमत, ऊँटनी की दुग्ध उत्पादकता, रखरखाव में लागत राशि तथा दूध के औषधीय महत्व के आधार पर सही बाजार भाव मिलने की अपेक्षा जताई। डॉ. साहू ने केन्‍द्र में ऊँटनी के दूध से प्रायोगिक स्‍तर पर तैयार किण्वित दूध (फरमन्टेड मिल्क) के न्‍यूट्रासिटिकल महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस तरीके से दूध का मान 5 से 10 गुना बढ़ाया गया है जो कि आगे जाकर विभिन्न बीमारियों में कारगर सिद्ध हो सकेगा।

इस अवसर पर प्रो. डुकवाल द्वारा प्रशिक्षण से जुड़ी ‘’उद्यमिता विकास के लिए उष्ट्र डेयरी और दूध प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियां’’ विषयक कम्पेंडियम का विमोचन किया गया एवं प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए। प्रशिक्षणार्थियों की ओर से सहजीवन संस्‍था, गुजरात के प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर श्री महेश गरवा ने एनआरसीसी द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम को अत्यंत उपयोगी बताया तथा आश्वस्त किया कि प्रशिक्षण में प्राप्त कौशल से ऊँटनी के दूध से विभिन्न दुग्ध उत्पादों बनाने का व्यवसाय प्रारम्भ करेंगे।

कार्यक्रम समन्वयक डॉ. शिरीष नारनवरे, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने प्रशिक्षण के महत्व एवं उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए इस त्रिदिवसीय प्रशिक्षण में किए गए ऊँट पालकों के कौशल विकास से अवगत करवाया। डॉ. श्याम सुन्दर चौधरी, वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक ने सभी के प्रति आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित किया।

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