मुकेश पूनिया/बीकानेर (अभय इंडिया न्यूज)। शहर के नजदीक अवैध कॉलोनियों बसाने वाले भू–माफियाओं ने पटवारियों के साथ मिलीभगत कर जमीनों के खसरे ही बदल दिए। दशकभर पहले बड़े पैमाने पर चले खसरों की हेरा–फेरी के इस खेल में तहसील मुख्यालय के अधिकारी और बीकानेर के रसूखदार नेता भी बराबर के हिस्सेदार रहे। हेरा–फेरी के इस खेल में दूर–दराज गावों की जमीनों के खसरों के नंबर शहर के नजदीक सरकारी जमीनों के खसरे ही बदल दिए। नक्शों में मनमर्जी से तरमीम कर इन जमीनों की खातेदारी अपने नाम दर्ज करवाकर अवैध कॉलोनिया बसा दी। जमीनों के खसरों के हेरा–फेरी का यह खेल दशकभर तक चलता रहा। जागरूक लोगों ने शासन–प्रशासन के समक्ष शिकायतें भी दर्ज करवाई, लेकिन रसूखदार सियासी नेताओं के दबाव में जिम्मेदार अफसरों ने शिकायतों को फाइलों में दफन कर दी।
पता चला है कि नजदीक गांव चकगर्बी की जमीनों में रिकॉर्ड तोड़ हेरा–फेरी हुई। पुख्ता खबर यह भी मिली है कि बीकानेर इंजीनियरिंग कॉलेज भी बिना खसरा नंबर की जमीन पर बसी है। कॉलेज की जमीन से जुड़ी मूल फाइल और तहसील रिकॉर्ड में ‘अंदाजिया’ खसरा दर्ज है और अंदाजिया खसरा क्या होता है? इसका जवाब राजस्व विभाग के अधिकारियों के पास भी नहीं है।
ग्राम चकगर्बी की जमीनों के खसरों की अदला–बदली और नक्शे में मनमानी तरमीम करने की कारस्तानी में भू–माफियाओं के साथ पटवारियों और गिरदावरों की भी बराबर की हिस्सेदारी रही। इन जमीनों पर भू–माफियाओं ने थोक के भाव कॉलोनिया बसाकर बेच दी। कई भू–माफियाओं ने एक ही कॉलोनी का नाम बदल कर दो–दो बार भूखण्ड बेच दिए और रजिस्ट्री भी करवा दी। इन भूखण्डों के खरीददार अब दर–दर भटकने को मजबूर है। इतना ही नहीं
लोगों को गुमराह करके केवल स्टाम्प पर इकरारनामा या भूखंड की रजिस्ट्री कृषि भूखंड के रूप में करवाकर दी। जबकि राजस्थान भू–राजस्व अधिनियम के तहत बेची गई, जमीन का इंतकाल दूसरे व्यक्ति के नाम दर्ज नहीं होने तक वह भूमि पुराने खातेदार की ही होती है। ऐसे बहुत से भूखंडधारी हैं, जो आज भी अपने भूखंड का मालिकाना हक पाने के लिए कोर्ट में चक्कर काट रहे हैं। उन्होंने पैसे देकर भूखंड तो खरीद लिया, मगर उसका इंतकाल नहीं चढ़ा होने के कारण उनको भूखंड का मालिक नहीं माना जा रहा है।
अवैध कॉलोनियों के भूखण्डों की रजिस्ट्री पर रोक, इनमें मचा है हड़कंप…