ज्योतिमित्र आचार्य/बीकानेर। ‘पानी मे रहकर मगरमच्छ से बैर’ नहीं चलेगा, इस बात को पूर्व मंत्री एवं कद्दावर नेता देवीसिंह भाटी कई बार साबित कर चुके है। अपनी लंबी राजनैतिक पारी खेल रहे भाटी इस बार होने वाले लोकसभा के चुनावी समर में वे अलग ही भूमिका में नजर आ रहे हैं। इसमें हथियार वही पुराने है, लेकिन फ्रंट पर आकर बीकानेर के सांसद व केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को टिकट देने की खिलाफत कर रहे हैं।
अपनी साफगोई के लिए जाने जाने वाले भाटी ने विधानसभा चुनाव से पूर्व चुनाव न लडऩे की तो बात तो कही थी, लेकिन राजनीति से किनारा करने की नहीं। एक तथ्य यह भी है कि वर्तमान में प्रदेश के राजपूत नेताओं में यदि कोई नाम उभरकर आता है तो उसमें इनका नाम सबसे पहले आता है। यही कारण है हाल ही में विधानसभा क्षेत्र नोखा के प्रत्याशी बिहारीलाल बिश्नोई को अपने क्षेत्र में राजपूतों को साधने के लिए देवी सिंह भाटी की जरूरत पड़ी। भाटी ने भी उनके क्षेत्र में जाकर राजपूतों को भाजपा के पक्ष में करने में कोई कसर नही छोड़ी थी। नतीजा सामने है, बिहारी चुनाव जीत गए।
यहां उल्लेखनीय है कि देवी सिंह भाटी जमीन से जुड़े हुए नेता है। अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत के बाद लगातार चुनाव जीतने वाले भाटी राजस्थान के एकमात्र करिश्माई नेता है जिनका ब्राह्मणों, मुसलमानों, राजपूतों, पिछड़े वर्ग, आरक्षण से वंचित सहित अन्य वर्गों में खासा प्रभाव है। पाठकों को याद होगा शेखावत सरकार को बचाने के लिए जनता दल दिग्विजय का भाजपा में विलय करवाने में इस दबंग नेता की अहम भूमिका थी। भाटी ने 90 के दौर में सामाजिक न्याय मंच नाम से आरक्षण आंदोलन शुरू किया था। राजस्थान के लगभग हर जिले में उस दौर की रैलियों में उमडऩे वाली भीड़ ने राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक प्रेक्षकों का ध्यान अपनी ओर खींचा।
बहरहाल, ताजा जंग में उनकी कार्यशैली राजनीतिक विरोधियों को कंफ्यूजन में डाल रही है। उल्लेखनीय है कि भाटी ने ही बीकानेर संसदीय सीट पर पहली बार भाजपा का कमल खिलाया था। उनके पुत्र स्व. महेंद्र सिंह भाटी बीकानेर से पहली बार भाजपा के सांसद बने थे। पूर्व सांसद महेंद्र सिंह भाटी बीकानेर संसदीय क्षेत्र में युवाओं के रोल मॉडल रहे। एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद से युवा आज भी उनको भुला नहीं पाए हैं। राजपूतों के इस खांटी नेता के पौत्र अंशुमान सिंह भाटी भी राजनीति में खासे सक्रिय हैं। इधर, ऐन चुनाव के मौके पर सांसद खेमे की और से भी तीखी प्रतिक्रिया आने के बाद राजनीति के पंडितों का आंकलन है कि इससे दोनों नेताओं में सुलह की कोशिशों को पलीता लग सकता है।
आज जाते-जाते डीजीपी दे गए ऐसे तत्वों को सलाखों के पीछे डालने के निर्देश…