








जयपुर Abhayindia.com चैत्र मास की अष्टमी तिथि को शीतला माता का प्राकट्य दिवस (शीतलाष्टमी) के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता को बासी खाने का भोग लगाकर सुख-समृदि्ध व परिवार के निरोगी रहने की कामना की जाती है। शीतला अष्टमी से गर्मी की शुरुआत मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि बास्योड़ा करने के बाद रात का बचा भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि गर्मी के प्रभाव से देर तक रखा भोजन खराब होने लगता है, जिससे बीमारियां होने की आशंका रहती है। बासी भोजन से बुखार, फुंसी, फोड़े, नेत्र रोग बढ़ जाते हैं।
गधे पर सवार, हाथ में झाड़ू
हिन्दू धर्म की सभी देवियों में शीतला माता का स्वरूप सबसे अलग है। शीतला माता को शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक कहा गया है। शीतला माता की सवारी गर्दभ यानी गधा है। देवी के अन्य स्वरूपों की भांति हाथ में तलवार नहीं बल्कि झाड़ू है। झाड़ू सफाई का प्रतीक है। मान्यता है कि आप साफ सफाई रखोगे तो कोई भी रोग–दोष आपके पास नहीं आएगा। माता ने गले में नीम की माला धारण की है। क्योंकि, नीम एक ऐसा औषधीय पौधा है जो सभी कठिन रोगों को समाप्त करने की ताकत और क्षमता अपने अंदर रखता है।
इसलिए गर्दभ है माता की सवारी...
शीतला माता की सवारी गधा इसलिए है क्योंकि यह बहुत ही सहनशीलता और धैर्य रखने वाला जानवर माना जाता है। सब कुछ सहन करने के बाद भी इसके अंदर सहनशीलता होती है। बहुत अधिक वजन और परिश्रम करने की बावजूद भी इसका स्वभाव हमेशा सहनशील और सरल रहता है। शीतला माता भी सहनशीलता का ही संदेश देती है।





