Wednesday, July 3, 2024
Hometrendingजप 108 का वैज्ञानिक विधान (मेघों पर प्रभाव)

जप 108 का वैज्ञानिक विधान (मेघों पर प्रभाव)

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad

प्रत्येक विशिष्ट शब्द एक विशिष्टता रखता है। इसी कारण वेद के शब्दों की आनुपूर्वी में परिवर्तन नहीं किया जाता क्योंकि उसके शब्दों को उसी क्रम से पढ़ने में लाभ होता है। उसी आनुपूर्वी का मेघों पर भी प्रभाव होता है और वृष्टि हो जाती है। उसी आनुपूर्वी का सूर्य देव पर प्रभाव पड़ता है जिससे वे प्रसन्न होकर लाभ पहुँचाते हैं।

जपना 108 बार क्यों-? हमारे श्वास प्रत्येक पल में 6 निकलते हैं। 25 पलों के एक मिनट में 15 श्वास हुए। इस हिसाब से एक घंटे में 900 तथा बारह घंटे में 10800 श्वास निकले। इनका शतांश 108 होता है। अतः 108 बार ही अपने इष्टदेव का जप किया जाता है।

एक रहस्य यह भी है कि माया का अंक 8 है और ब्रह्मन का अंक 9 है। माया में ही परिवर्तन होता है ब्रह्मन में नहीं। माला में 108 मणियाँ होती है। सूर्य के 12 भेदों को ब्रह्मन के अंक से गुणा करने पर 108 आता है। 108 का योग भी 1+0+8=9 (ब्रह्मन) ही होता है। इस प्रकार सूर्यात्मिक विष्णु का जप गायत्री रूप में 108 बार ही होना अपेक्षित है। -अंजना शर्मा (ज्योतिष दर्शनाचार्य) (शंकरपुरस्कारभाजिता) पुरातत्वविद्, अभिलेख व लिपि विशेषज्ञ प्रबन्धक देवस्थान विभाग, जयपुर राजस्थान सरकार

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad
Ad
- Advertisment -

Most Popular