








अखंड भारत की इस पावन धरा पर,
कैसा ये अनर्थ हो रहा है,
छोड़कर सुसंस्कारों को आज का युवा,
नशे के जाल में जकड़ रहा है।
ना रहा डर बच्चों में, बड़ों का,
ना ही रहे वो आदर-सत्कार,
पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़ में,
रोज मानवता हो रही है शर्मसार।
ना ही रही सुनने की क्षमता,
ना ही रहे वो संयमित बोल,
असभ्यता कवच को धारण करके,
आज के युवाओं के बिगड़े है बोल।
हर रिश्तों का करो सम्मान,
कभी ना करो इनका अपमान,
अहंकार, क्रोध, नशे को त्यागो जीवन से,
भारतीय संस्कृति का करो सम्मान।
प्रेषक- मुरली मनोहर पुरोहित, कवि, लेखक, विचारक, मुरलीधर व्यास नगर, बीकानेर।





