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राजेश ओझा/बीकानेर abhayindia.com विरोधियों पर सियासी तीर चलाने वाले सांसद हनुमान बेनीवाल राजस्थान की राजनीति में आज सबसे अलग नेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। आरएलपी प्रमुख बेनीवाल जब बोलना शुरू करते है तो विरोधी बगले झांकने पर मजबूर हो जाते है। उनके इसी आक्रामक अंदाज ने उन्हें प्रदेश की राजनीति का सबसे चर्चित लीडर बना दिया है।
वर्ष 2018 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले हनुमान बेनीवाल खींवसर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। बेनीवाल राजस्थान की दो प्रमुख राजनेतिक पार्टियों से अलग होकर अपनी नई पार्टी आरएलपी का गठन कर विधानसभा चुनाव में 3 सीटें हासिल की।
जब हनुमान बेनीवाल भाजपा के विधायक थे, तब भी बेनीवाल विरोधी पार्टी कांग्रस के साथ अपनी ही पार्टी के नेताओं से दो-दो हाथ करने में जरा भी संकोच नहीं किया करते थे। बेनीवाल को बचपन से ही सियासी माहौल मिला। बेनीवाल के पिता रामदेव चौधरी भी विधायक थे, लिहाजा उन्होंने सियासत को करीब से देखा। वे यह समझ चुके थे कि उनके अंदर एक सफल राजनेता बनने के सारे गुण मौजूद है। राजस्थान में सरकार चाहे किसी की भी रही हो, बेनीवाल को इससे फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि बेनीवाल यह अच्छी तरह से जानते थे कि सियासत में किसी नेता की नब्ज कब, कहां और कैसे दबानी है।
छात्र जीवन में ही हनुमान बेनीवाल के अंदर एक सफल नेता के गुण झलकने लगे थे। साल 1995 में उन्हें छात्र संघ अध्यक्ष पद के लिए चुना गया। इसके बाद हनुमान बेनीवाल ने कभी पीछे मूड़कर नहीं देखा। 1997 में राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव में भी हनुमान बेनीवाल ने अपनी जीत का परचम लहराया।
हनुमान बेनीवाल ने 2003 में ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल से पहली बार नागौर के मूंडवा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन बेनीवाल इस चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे। फिर बेनीवाल 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर जीत कर विधायक बने। अब हनुमान बेनीवाल बीजेपी के कद्दावर नेताओं में गिने जाने लगे थे। लेकिन 2008 में ही अपनी ही पार्टी की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का विरोध करने की वजह से बेनीवाल को बीजेपी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
भाजपा से अलग होने के बाद साल 2013 में बेनीवाल खींवसर ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीतकर एक बार फिर विधायक बनकर विधानसभा तक पहुंचे। अब हनुमान बेनीवाल भाजपा और कांग्रेस के बंधनों से आजाद थे, ऐसे में वो दोनों पर ऐसे-ऐसे हमले करने लगे कि राजस्थान की जनता का झुकाव अपने आप ही बेनीवाल की तरफ होने लगा। राजस्थान के जाट समुदाय के हितों की बात और उनकी कई मांगों को लेकर वक्त वक्त पर बेनीवाल ने सरकार के साथ लोहा भी लिया।
धीरे-धीरे हनुमान बेनीवाल के विरोधियों की संख्या भी बढऩे लगी तो दूसरी ओर बेनीवाल की सियासत की जडें राजस्थान में और गहरी होती जा रही थी। जिसका पता तब चला जब 2019 में हनुमान बेनीवाल ने लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी (आरएलपी) और बीजेपी का गठबंधन कर लिया। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बेनीवाल के लिए नागौर की सीट खाली छोड़ दी और वो भारी वोटों से जीतकर आरएलपी के सांसद बन गए। उनके साथ भाजपा का गठबंधन राजस्थान की सभी 25 सीटों पर सफल रहा और एक बार फिर भाजपा ने राजस्थान लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया कर दिया।
इससे पहले चुनाव चिन्ह बोतल बनाकर भाजपा से अलग होकर बेनीवाल ने विधानसभा चुनाव 2018 से पहले राजस्थान में जहां तीसरे मोर्चे के रूप में अपनी अलग पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) का गठन किया, वहीं 58 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे और तीन विधानसभा सीटों को जीतकर अपनी मौजूदगी राजस्थान में दर्ज करवाई। चुनाव परिणाम आने के बाद जाट बेल्ट में बीजेपी कमजोर साबित हुई, वहीं कई जगहों पर हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के प्रत्याशियों ने भाजपा को चुनाव हराने का काम किया। भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर ऐसा कोई रिक्स नहीं लेना चाहती थी। यही वजह थी कि जाट बाहुल्य जाट लोकसभा सीट पर कमजोर दिख रही भाजपा को आरएलपी से गठबंधन कर सिर्फ नागौर की एक सीट छोड़कर फायदे का सौदा नजर आया।
बेनीवाल की वजह से 2019 का किला फतह करने का बाद खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेनीवाल की पीठ थपथपाकर उन्हें आशीर्वाद दिया। अब अगर राजस्थान में बीजेपी पर विरोधियों का कोई वार होता है तो हनुमान पार्टी की ढाल बनकर सबसे आगे नजर आते है। आरसीए विवाद में हनुमान बेनीवाल कांग्रेस नेता रामेश्वर डूडी के साथ खड़े नजर आए और जमकर सुर्खियां भी बटोरी।
राजस्थान में 21 अक्टूबर को होने वाले दो विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव में एक बार फिर बेनीवाल ने भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया है। खींवसर विधानसभा सीट पर भाजपा ने अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतरा है वहां कांग्रेस के हरेन्द्र मिर्धा से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के नारायणराम बेनीवाल का सीधा मुकाबला होगा, नारायणराम बेनीवाल हनुमान बेनीवाल के छोटे भाई है।
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