बीकानेर abhayindia.com बीकानेर में होली लोगों के सिर चढ़ कर बोलती है। अश्लील गीतों का कार्यक्रम बाकायदा लाऊड स्पीकर लगा कर होता है। बरसों से होते इस कार्यक्रम का अब आधुनिक पीढ़ी विरोध कर रही है, लेकिन विरोध को दरकिनार कर कार्यक्रम किया जा रहा है। इस सम्बंध में विरोध करने का कारण समझ में आता है, लेकिन विरोध के बावजूद कार्यक्रम करने की जिद समझ से परे है।
एक पुरानी घटना याद आती है जब मेरे एक पुराने कार्यालय में मेरे वरिष्ठ सहकर्मी नया नया एंड्रॉयड फोन लेकर आये और उनकी नज़र में पुराने से पुराने वाट्सएप मेसेज भी नए ही थे इसलिये वो धुंआधार फॉरवर्ड करते रहते थे जिससे किसी को खास आपत्ति भी नहीं थी। लेकिन हद तो तब हुई जब वो पोर्न क्लिप और लिंक फॉरवर्ड करने लगे और मैं भयंकर परेशानी में आ गया। मैंने उन्हें समझाया कि फोन पर बच्चे भी गेम खेलते हैं और आपने यह कचरा डाल दिया। मेरे बार-बार मना करने पर वो हो हो कर खींसे निपोर देते और किसी भी समय यह कृत्य कर देते थे। उस दौर में घर पर एक ही एंड्रॉइड फोन हुआ करता था, जिसे भी मुझे सहकर्मी की हरकतों की आशंका के चलते स्क्रीनलॉक करके रखना पड़ता था। अंत में मैंने एक रास्ता निकाला जिसका मुझे जीवन भर अफसोस भी रहेगा किन्तु मान्यवर उसी से काबू आये।
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मैं एक दिन सवेरे सवेरे ही उनके घर पर पहुंच गया। भाईजी के बारे में बताया गया कि वो स्नान कर रहे हैं और मुझे सोफे पर बैठने की जगह दे दी गई। मैंने भाभीजी के चाय के प्रस्ताव को तुरंत मानते हुए उन्हें चाय बनाने के लिये विदा किया और उनके सुपुत्र जो तब कॉलेज में अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थी थे, उन्हें तलब कर लिया। सुपुत्र महोदय को मैंने अपना फोन पकड़ाया और कुछ लिटरेचर अंग्रेजी की साइट्स खोल कर उसे पढ़ने दी और ज्ञान दिया कि इसके लिंक तुम्हारे पिताजी ने भेजे हैं।
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तभी उसके पिताश्री का आगमन हुआ और उसने हर्षनाद सा करते हुए पिताश्री को बताया कि उनके अंकल जी को भेजे लिंक कितने ज्ञानवर्धक हैं। मेरा फोन अपने पुत्र के हाथ में देखकर उनके हाथों के तोते उड़ गए। वो मुँह बांये मुझे देख रहे थे और मैं मुस्कुरा रहा था। कुछ देर के सन्नाटे के बाद मैंने उन्हें बताया कि उनके सुपुत्र को इंग्लिश लिटरेचर से सम्बंधित साइट दिखाई है तो उनके जान में जान आई। उस दिन के बाद वो कम से कम मेरे लिये तो सुधर ही गए।
बीकानेर होली के अश्लील गीतों के कार्यक्रम के विरोध में जुटे लोगों को कुछ ऐसा ही दांव खेलना आवश्यक है।
-अविनाश व्यास (ये लेखक के अपने विचार हैं)