








बीकानेर Abhayindia.com उत्तर भारत में सर्वाधिक प्रचलित रमणीय श्री रामचरितमानस को यूनेस्को ने मान्यता दी है। विश्व धरोहर के रूप में यही मान्यता प्राचीन समय से ही हर घर मंदिर मठ ने मानस को दे रखी है। पांडुलिपि सर्वेक्षण के दौरान जयपुर शहर में सर्वेक्षण किया गया। छोटे-बड़े सभी पांडुलिपि संग्रहालयो में सर्वाधिक रामचरितमानस की प्रतियां प्राप्त हुई। राजस्थान में पुरातात्विकविद् जिनविजय सूरी ने पुरातत्व अन्वेषण मंदिर की स्थापना करके सर्वप्रथम भीलवाड़ा से पांडुलिपि सर्वेक्षण का कार्य प्रारंभ किया। उन्हें मानस की हस्तलिखित प्रतियां सर्वाधिक संख्या में उपलब्ध हुई घट-घट में राम घर-घर में मानस यही स्वरूप था।
राजस्थान के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान सरकार के पांडुलिपि संरक्षण केंद्र हैं जिनमें सर्वाधिक मानस की प्रतियां उपलब्ध हैं।जयपुर के ब्रह्मपुरी क्षेत्र में घर-घर में मानस के हस्तलिखित प्रतियाँ मिलती रही हैं। बालंनंद मठ जयपुर में मानस की 100 से अधिक प्रतियां निहित है। सर्वाधिक प्राचीन मानस की पांडुलिपि पदम श्री नारायण दास पांडुलिपि शोध संस्थान में सुरक्षित है। संजय संग्रहालय म्यूजियम तथा प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान बड़ी चौपड़ जयपुर में मानस की क्रमश सभी कांडों की पांडुलिपियों हैं। इस धरोहर को वर्षों से सहज सुरक्षित किया जा रहा है गोस्वामी तुलसीदास की चौपाइयों को हृदय ग़म करके उपदेशों में व्यवहार में, शिक्षा में, कार्यों में, उद्घाटित किया गया है। ऐसे मानस को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया जाना ही था। अपरा काशी जयपुर में ही हजारों की संख्या में मानस की हस्तलिखित प्रतियाँ निहित हैं क्योंकि मानस का अरण्यकांड गोस्वामी जी ने जयपुर गलता तीर्थ में ही लिखा था, जिसे एक प्रति में जगजीवन दास जी ने उल्लिखित किया है। –श्रीमती अंजना शर्मा (ज्योतिष दर्शनाचार्य) (शंकरपुरस्कारभाजिता) पुरातत्वविद्, अभिलेख व लिपि विशेषज्ञ प्रबन्धक देवस्थान विभाग, जयपुर





