बीकानेर Abhayindia.com जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की वरिष्ठ साध्वीश्री प्रियरंजनाश्री ने रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे में बुधवार को प्रवचन में कहा कि अपनी चित्त-वृत्ति और श्रद्धा, विश्वास व शुद्ध भावना का परमात्मा समर्पण को करें। परमात्मा को अपना तथा अपने को परमात्मा का मानकर अनन्य भाव से भक्ति करें। मन व चित शुद्धि के लिए विवेक व ध्यान की आवश्यकता होती है। केवल आत्मा और अनात्मा का विवेक होने पर भी यदि ध्यान के द्वारा उसकी पुष्टि नही होने पर वह स्थिर नहीं हो सकता। इसके लिए हम दूसरों के दोष नहीं देखकर निरन्तर अपने मन व चित का निरीक्षण परीक्षण करें, उसके शुभ विचारों को पोषित व अशुभ विचारों को दूर करने का प्रयास करें।
उन्होंने कहा कि चित का अंत:करण का ही एक अंग है जिसमें हमारे संस्कारों व स्मृतियों का संग्रह होता है। चित्त का मतलब हुआ विशुद्ध प्रज्ञा व चेतना, जो स्मृतियों से पूरी तरह से बेदाग हो। उन्होंने घुड़सवार व बुढिया की कहानी सुनाते हुए कहा कि चित्त में अद्भूत इंटेलिजेंस है, वह प्रज्ञावान है। चित्त का संबंध अभौतिक आयाम से है। चित्त, मन का सबसे भीतरी आयाम, जिसका संबंध उस चीज से है जिसे हम चेतना कहते हैं। साधक अपने चित पर एक खास स्तर का सचेतन नियंत्रण पा लेता है तो उसकी पहुंच चेतन परमात्मा तक हो जाती है। इसके लिए अपना ध्यान सही दिशा में केन्द्रित करना होगा।
उन्हांने कहा कि मन के आयाम पूरी तरह से मस्तिष्क में स्थित नहीं होते वे पूरे सिस्टम में होते है। आठ तरह स्मृतियों, बुद्धि के पांच आयाम और अहंकार यानी अपनी पहचान के दो आयाम व चित कुल मिलाकर मन के सोलह हिस्से होते है। लेकिन चित असीमित होता है इसलिए वह सिर्फ एक ही होता है। मन मात्र इच्छाएं करता है और चित्त उनको पूरा करने के लिए चिंतन करता है। जब चित, चिंतन करता है तो वह अपनी बुद्धि व स्मृति का भरपूर उपयोग करता है और समाधान खोज लेता है। चित सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण से मिलकर बनता है। इसके प्रकाशशील, गतिशील और स्थैर्यशील अर्थात त्रिगुणात्मक स्वभाव है। चित की प्रख्या अवस्था सत्वगुण प्रधान, प्रवृति अवस्था रजोगुण प्रधान और स्थिति अवस्था तमोगुण प्रधान होती है। जब चित में सत्व गुण की प्रधानता होती है तो उसमें ज्ञान का प्रकाश होने से व्यक्ति में धर्म, ज्ञान और वैराग्य की उत्पत्ति होती है। प्रवृत्ति की अवस्था में व्यक्ति श्रम शील स्वभाव वाला होता है, जिसके फलस्वरूप वह समाज में मान, सम्मान, धन दौलत यश कीर्ति को प्राप्त करने में प्रवृत रहता है। चित के स्थिति रूप में तमोगुण प्रधान होता है, वह आलस्य प्रमाद, तंद्रा, अज्ञान व अकर्मण्यता आदि भावों में प्रवृत्त होता है। इस अवस्था मेंं वह अज्ञानता के वशीभूत होकर सभी निकृष्ठ (निषेध) कार्य करता है। इस अवसर पर विचक्षण महिला मंडल की मूलाबाई दुगड़ व सुनीता नाहटा ने विदाई गीत प्रस्तुत किया। साध्वीवृंद ने बुधवार को रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे से विहार कर जस्सूसर गेट के अंदर के भंसाली निवास पहुंची। जहां से वे गुरुवार को सुबह छह बजे नाल, फलौदी, बालोतरा के लिए प्रस्थान करेंगी।