बीकानेर (अभय इंडिया न्यूज)। हिन्दू पंचांग के अनुसार 18 मार्च को मनाए जा रहे नववर्ष का स्वागत करने के लिए केवल आमजन ही नहीं, बल्कि प्रकृति भी इठला रही है। ऋतुराज वसंत ने प्रकृति को अपनी आगोश में ले लिया है। पेड़ों की शाखाएं नए पत्तों के साथ जहां इतरा रही हैं, वहीं खेत और खलिहानों ने सरसों के पीले फूलों की चादर ओढ़ ली है। कोयल की कूक समूची फिजां में अमृत घोल रही है। दुल्हन सी सजी धरती नवरात्रि में मां के आगमन की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही है।
नववर्ष का आगाज कुछ इसी तरह से हो रहा है। शहर में धर्मप्रेमी धर्मयात्रा को निहारने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। पृथ्वी के नए सफर की शुरुआत के इस पर्व को मनाने और भक्तजनों को आशीर्वाद देने के लिए स्वयं माता रानी अवतरित होने वाली है। ‘माता रानी’ यानी शक्ति स्वरूपा का यह पर्व सभी धर्मप्रेमियों में एक नई ऊर्जा का संचार करने वाला है। इस धरा पर न केवल मानव जाति, बल्कि देवता, गंधर्व, दानव सभी शक्तियों के लिए माता रानी पर ही निर्भर रहते हैं। दुर्गा का अर्थ होता दुर्ग, यानी किला। जिस तरह एक किला अपने भीतर रहने वालों को शत्रुओं से सुरक्षा के लिहाज से कवच का काम करता है, उसी प्रकार दुर्गा के रूप में मां की उपासना हमें अपने शत्रुओं से एक दुर्ग रूपी सुरक्षा चक्र प्रदान करती है।
इसलिए जरूरत इस बात को समझने और स्वीकार करने की है कि यह आज का ही नहीं बल्कि अनादिकाल का शाश्वत सत्य है कि हमारे सबसे बड़े शत्रु हमारे ही भीतर होते हैं। असल में प्रत्येक व्यक्ति के भीतर दो प्रकार की प्रवृत्तियां होती हैं, एक आसुरी और दूसरी दैवीय। यही वो वक्त होता है जब हम अपने भीतर एक दिव्य ज्योति जलाकर उस शक्ति का आह्वान कर सकते हैं, इससे न केवल हमारे भीतर दैवीय शक्तियां का विकास होता है, बल्कि आसुरी प्रवृत्तियों का नाश भी हो जाता है। जिस तरह मां दुर्गा ने महिषासुर, धूम्रलोचन, चंड मुंड, शुभ निशुंभ, मधु कैटभ जैसे राक्षसों का नाश किया, उसी प्रकार हमें भी अपने भीतर राक्षसरूपी क्रोध, आलस्य, लालच, अहंकार, मोह, ईष्र्या, द्वेष का नाश करना चाहिए। नवरात्रि वो समय होता है जब यज्ञ की अग्नि की ज्वाला से हम अपने अन्दर के अन्धकार को मिटाने के लिए वो ज्वाला जगाएं जिसकी लौ में हमारे भीतर पलने वाले सभी राक्षसों का, हमारे असली शत्रुओं का नाश हो। इस समय हमें खुद को निर्मल और स्वच्छ करके मां का आशीर्वाद लेना चाहिए। स्वयं पर विजय प्राप्त करने का यह सबसे बड़ा पर्व होता है।