Tuesday, November 18, 2025
Hometrendingडिस्कॉम्स ने 25 साल में पहली बार विद्युत शुल्क में की कमी,...

डिस्कॉम्स ने 25 साल में पहली बार विद्युत शुल्क में की कमी, आमजन को मिलेगी राहत, उद्योगों को मिलेगा प्रोत्साहन

AdAdAdAdAdAd

जयपुर Abhayindia.com राजस्थान डिस्कॉम्स (जयपुर, जोधपुर एवं अजमेर विद्युत वितरण निगमों) ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए 2 अप्रैल, 2025 को राजस्थान विद्युत नियामक आयोग के समक्ष अपनी टैरिफ याचिकाएं प्रस्तुत की थी, जिस पर नियामक आयोग ने आज निर्णय किया है। लागत और खर्च के बढ़ते दबाव के बावजूद डिस्कॉम्स ने प्रदेश के सभी श्रेणी के विद्युत उपभोक्ताओं के लिए टैरिफ का सरलीकरण करने की कोशिश की है। मल्टीपल चार्जेज कम करके विभिन्न श्रेणियों को एकीकृत करने का प्रयास किया है। इस कदम का उद्देश्य मौजूदा जटिल टैरिफ संरचना को सरल बनाना है। डिस्कॉम ने टैरिफ में संशोधन का प्रस्ताव करते समय उपभोक्ता के हित को तरजीह दी है।

पहली बार डिस्कॉम्स ने लगभग सभी श्रेणियों में विद्युत शुल्क (एनर्जी चार्ज) कम करने का प्रस्ताव दिया। सिर्फ एक श्रेणी (0 से 50 यूनिट तक प्रति माह विद्युत उपभोग करने वाले घरेलू उपभोक्ताओं) के लिए विद्युत शुल्क 4 रूपए 75 पैसे प्रति यूनिट यथावत रखा गया है। डिस्कॉम्स ने जब यह टैरिफ याचिका दायर की थी तब उपभोक्ताओं पर 70 पैसे प्रति यूनिट फ्यूल सरचार्ज देय था। पहली बार डिस्कॉम्स ने फ्यूल सरचार्ज के साथ जोड़कर 0 से 100 यूनिट तक प्रतिमाह उपभोग वाले घरेलू उपभोक्ताओं से 70 पैसे प्रति यूनिट प्रत्तिमाह रेगुलेटरी सरचार्ज प्रस्तावित किया था। इसी तरह अन्य उपभोक्ताओं से फ्यूल सरचार्ज के साथ 1 रूपए प्रति यूनिट रेगुलेटरी सरचार्ज प्रस्तावित किया था।

300 यूनिट प्रति माह तक उपभोग वाले
घरेलू उपभोक्ताओं पर रेगुलेटरी 
सरचार्ज का नहीं पड़ेगा असर

प्रदेश में घरेलू श्रेणी के लगभग 1 करोड़ 35 लाख उपभोक्ता हैं, जिनमें से 1 करोड़ 4 लाख रजिस्टर्ड घरेलू श्रेणी के उपभोक्ताओं को मुख्यमंत्री निशुल्क बिजली योजना में राजस्थान सरकार सब्सिडी प्रदान कर रही है। इन 1 करोड़ 4 लाख उपभोक्ताओं में से प्रति माह 100 यूनिट तक उपभोग करने वाले 62 लाख उपभोक्ताओं को अपनी बिजली खपत के लिए कुछ भी भुगतान नहीं करना होता है, क्योंकि सब्सिडी की वजह से उनका बिजली बिल शून्य आता है। इन उपभोक्ताओं पर रेगुलेटरी सरचार्ज का भार भी नहीं आएगा। राज्य सरकार इसे वहन करेगी।

वहीं, घरेलू श्रेणी के 51 से 150 यूनिट स्लैब में लगभग 35 लाख से अधिक उपभोक्ता हैं। इन उपभोक्ताओं के लिए विद्युत शुल्क 6 रुपये 50 पैसे प्रति यूनिट से घटाकर 6.00 रुपये प्रति यूनिट कर दिया गया है। इस प्रकार इन्हें भी 50 पैसे प्रति यूनिट की राहत दी गई है। घरेलू श्रेणी के 150 से 300 यूनिट स्लैब वाले उपभोक्ताओं के एनर्जी चार्ज में भी 35 पैसे प्रति यूनिट की राहत प्रदान की गई है।

याचिका में लघु, मध्यम और वृहद औद्योगिक श्रेणी के लिए विद्युत शुल्क की दरों को एकरूपता प्रदान करने का प्रयास किया गया है। औद्योगिक श्रेणी में विद्युत शुल्क की एक ही दर रखी गई है। वृहद् औद्योगिक श्रेणी में पहले 7 रूपए 30 पैसे प्रति यूनिट विद्युत शुल्क था जिसे 6 रूपए 50 पैसे प्रति यूनिट कर दिया गया है। मध्यम श्रेणी में विद्युत शुल्क दर 7 रूपए प्रति यूनिट थीं। जिसे अब कम करते हए 6 रूपए 50 पैसे प्रति यूनिट कर दिया है। इसी प्रकार स्मॉल औद्योगिक श्रेणी में दो रेट्स थी, 6 रूपए और 6 रूपए 45 पैसे प्रति यूनिट। इसको एकीकृत करते हुए 6 रूपए प्रति यूनिट कर दिया है। इससे औद्योगिक श्रेणी में समान टैरिफ दर को प्रोत्साहन मिलेगा।

20 लाख से अधिक कृषि उपभोक्ताओं 
के लिए भी नहीं आएगा 
रेगुलेटरी सरचार्ज का भार

कृषि उपभोक्ताओं के लिए विद्युत शुल्क 5 रूपए 55 पैसे प्रति यूनिट है। उसे भी घटाते हुए 5 रूपए 25 पैसे प्रति यूनिट किया है। कृषि उपभोक्ताओं पर रेगुलेटरी सरचार्ज को भी राज्य सरकार वहन करेगी। राज्य में 20 लाख से अधिक कृषि उपभोक्ता हैं। राजस्थान डिस्कॉम्स पर रेगुलेटरी असेट्स का अत्यधिक भार है। रेगुलेटरी असेट्स दरअसल नियामक आयोग द्वारा स्वीकृत वह घाटा है जिसकी भरपाई टैरिफ के द्वारा नहीं हो पा रही है। आयोग इसे वितरण निगमों के घाटे के रूप में तो मानता है लेकिन उपभोक्ताओं पर अधिक भार न डालने की मंशा से इसकी वसूली को मंजूरी नहीं देता। इस कारण साल दर साल यह घाटा बढते हुए वर्तमान में लगभग 49 हजार 800 करोड़ रूपए तक पहुंच चुका है।

टैरिफ के माध्यम से इस घाटे की पूर्ति नहीं होने के कारण निगमों को भरपाई के लिए वित्तीय संस्थाओं से बार-बार ऋण लेना पड़ता है जिसे ब्याज सहित चुकाने के कारण निगमों पर आपूर्ति लागत (कॉस्ट ऑफ सप्लाई) का दबाव बढ़ रहा है। इस ब्याज भार का सीधा असर उपभोक्ता के टैरिफ पर पड़ता है, जितना जल्दी इस रेगुलेटरी असेट्स की रिकवरी होगी उपभोक्ता पर ब्याज भार के कारण पड़ने वाला विपरीत असर कम होगा। रेगुलेटरी सरचार्ज से प्राप्त होने वाले राजस्व को डिस्कॉम्स अपने ऋणभार को कम करने तथा विद्युत तंत्र को सुदृढ़ करने के उपयोग में लेंगे। जिससे उन्हें लोन कम लेना पड़ेगा।

डिस्कॉम्स का जोर अपने पावर परचेज कॉस्ट को कम करने पर है। इसके लिए सौर ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। कुसुम योजना में 1800 मेगावाट से अधिक क्षमता के विकेन्द्रित सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए जा चुके हैं। करीब 22 जिलों में कृषि उपभोक्ताओं को दिन में दो ब्लॉक में बिजली आपूर्ति दी जाने लगी है। इस योजना के माध्यम से प्रदेश में लगभग 12 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता विकसित करने का लक्ष्य है। वितरण निगम अपने बेहतर पावर परचेज मैनेजमेंट से बिजली खरीद की औसत लागत को वर्ष 2023-24 के 5 रूपए 7 पैसे प्रति यूनिट से घटाकर वर्ष 2024-25 में 4 रूपए 87 पैसे तक ले आए हैं। इससे आने वाले समय में लॉसेज एवं पावर परचेज कॉस्ट में कमी आएगी। जिसका सीधा फायदा उपभोक्ताओं को होगा। प्रस्तावित रेगुलेटरी सरचार्ज के मंजूर होने से रेगुलेटरी असेट्स लगभग 6 हजार 700 करोड़ रूपए कम हो जाएंगे। इससे आने वाले समय में लॉसेज कम होंगे और उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं मिलेंगी। डिस्कॉम्स ने फिक्स चार्जेज में रिविजन प्रपोज किया है जिससे कि विद्युत तंत्र को मजबूत रखा जा सके।

यूपी, एमपी और आन्ध्र जैसे राज्यों से अधिक
है हमारी औसत विद्युत आपूर्ति लागत

औसत आपूर्ति लागत का विश्लेषण करें तो यह राजस्थान  में 7 रूपए 96 पैसे, आन्ध्र प्रदेश में 7 रूपए 26 पैसे, मध्य प्रदेश में 7 रूपए 14 पैसे और उत्तर प्रदेश में 7 रूपए 84 पैसे प्रति यूनिट है क्योंकि राजस्थान को अपनी विषम भौगौलिक परिस्थितियों के कारण विद्युत उत्पादन, प्रसारण से लेकर आम उपभोक्ता तक बिजली पहुंचाने में प्रतिकूलता का सामना करना पड़ता है, जिसका असर लागत पर पड़ता है।

प्रदेश की थर्मल इकाइयों के लिए छत्तीसगढ़ में कोल ब्लॉक आवंटित है। प्लांट तक कोयला पहुंचाने में परिवहन लागत अधिक होने से पॉवर परचेज कॉस्ट बढ़ती है। साथ ही विशेषकर पश्चिमी राजस्थान में छितरी हुई आबादी और गांव-ढाणियों के बीच अधिक दूरी होने के कारण विद्युत तंत्र विकसित करने के लिए केपिटल इंवेस्टमेंट जुटाना डिस्कॉम्स के लिए टेढ़ी खीर है। पश्चिमी राजस्थान में भूमिगत जल स्तर काफी नीचे होने के कारण औसत 26 एचपी की मोटर वाले एक कृषि कनेक्शन देने के बदले जोधपुर विद्युत वितरण को औसत लागत 3 लाख 79 हजार रूपए वहन करनी पड़ती है। जबकि इसकी एवज में औसतन उपभोक्ता को जो अदा करना होता है वह मात्र 39 हजार 500 रूपए ही है। व्यय और रिकवरी के बीच इस अंतर को पाटने के लिए वित्तीय संस्थानों से ऋण लेना पड़ता है।

जैसे-जैसे शहरों और गांवों में बिजली की औसत खपत बढ़ रही है। प्रति घरेलू उपभोक्ता का औसत लोड जहां पहले 1 से 2 किलोवाट के बीच हुआ करता था वहीं अब घरेलू विद्युत उपकरणों जैसे ए.सी. वॉशिंग मशीन, मिक्सर, इलैक्ट्रिक वाहनों आदि के बढ़ते प्रचलन के कारण यह औसत लोड 5 से 6 किलोवाट तक हो चुका है। औसतन प्रति 20 घरेलू उपभोक्ताओं के लिए विद्युत तंत्र (100 केवीए क्षमता का ट्रांसफार्मर, 11 केवी केबल, एल.टी पिलर बॉक्स, पोल, मीटर आदि) विकसित करने पर डिस्कॉम्स को 10 लाख रूपए तक लागत आती है। जबकि 100 वर्ग गज आकार के आवास में रह रहे प्रति घरेलू उपभोक्ता से कनेक्शन के रूप में 8 से 10 हजार रूपए ही लिए जाते हैं। इस प्रकार डिस्कॉम्स को अपने नेटवर्क को विकसित करने में काफी केपिटल इंवेस्टमेंट की जरूरत पड़ती है। यह पूर्ति बैंकों से ऋण के रूप में की जाती है।

अधिकतम विद्युत शुल्क (प्रति यूनिट)

घरेलू लागत में राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश,महाराष्ट्र,तमिलनाडु और मध्यप्रदेश में क्रमश: 7 रूपए 50 पैसे, 9 रूपए 75 पैसे, 16 रूपए 62 पैसे, 11 रूपए 80 पैसे और 6 रूपए 80 पैसे हैं। राजस्थान में वाणिज्यिक विद्युत 8 रूपए 50 पैसे, आन्ध्र प्रदेश में 10 रूपए 15 पैसे, महाराष्ट्र में 13 रूपए 21 पैसे, तमिलनाडु में 9 रूपए 10 पैसे और मध्यप्रदेश में 8 रूपए 90 पैसे है। इसी प्रकार औद्योगिक विुद्युत शुल्क राजस्थान में 6 रूपए 50 पैसे,आन्ध्र प्रदेश में 7 रूपए 80 पैसे , महाराष्ट्र में 8 रूपए 68 पैसे ,तमिलनाडु 8 रूपए और मध्यप्रदेश में 7 रूपए 85 पैसे  है।

AdAdAdAdAd
- Advertisment -

Most Popular

error: Content is protected !!