Sunday, November 24, 2024
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ऊँटनी का दूध अब नूतन पाउडर तकनीक से देशभर में उपभोक्ताओं तक पहुंचेगा

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बीकानेर Abhayindia.com भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) की ओर से ऊँटनी के दूध पाउडर की नूतन प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण से अब देश भर में ऊँटनी के दूध की उपलब्धता सुलभ हो सकेगी। इस प्रयोजन के लिए एनआरसीसी एवं पर्ल लेक्टो कंपनी के बीच आज एक महत्वपूर्ण एमओयू किया गया जिसमें केन्द्र के निदेशक डॉ. आर्तबन्‍धु साहू एवं पर्ल लेक्टो कंपनी के संस्थापक अमन ढिल द्वारा हस्ताक्षर किए गए तथा इसके साथ ही नूतन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का शुभारंभ भी किया गया।

केन्द्र के निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने ऊँटनी के दूध का पाउडर बनाने से जुड़ी इस नूतन प्रोद्योगिकी के संबंध में खुशी जाहिर करते हुए कहा कि केन्द्र के वैज्ञानिकों ने नवीन तकनीकों का उपयोग करके गुणवत्तायुक्त उत्पाद बनाने की विधि विकसित की है जिससे कि ऊँटनी के दूध में मौजूद औषधीय गुण भी बरकरार रहते हैं। डॉ.साहू ने यह भी कहा कि ऊँटनी के दूध में विद्यमान गुणधर्मों के आधार पर इसे ‘औषधीय भण्डार’ कहा जाना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि एनआरसीसी वैज्ञानिकों ने यह साबित किया है कि इसका दूध मधुमेह, क्षय रोग, ऑटिज्म आदि के प्रबंधन में कारगर है। साथ ही केन्द्र द्वारा ऊँटनी के दूध से विभिन्न स्वादिष्ट उत्पाद विकसित किए गए हैं। इसके अलावा वैश्विक शोध ने भी इसके महत्व को दर्शाया है, नतीजतन देशभर में ऊँटनी के दूध की मांग तेज होने लगी है।

डॉ. साहू ने ऊँटनी के दूध की उद्यमिता पर व्यावहारिक विचार रखते हुए कहा कि ऊँटनी के दुग्ध उत्पादन, संग्रहण, प्रसंस्करण, शीतलीकरण एवं आपूर्ति आदि को लेकर व्यावहारिक चुनौतियां देखने में आ रही थी, अब एनआरसीसी द्वारा पर्ल लेक्टो कंपनी के साथ तकनीकी हस्तांतरण को लेकर किए गए इस एमओयू से ऊँटनी के दूध का पाउडर व इससे निर्मित उत्पाद जरूरतमंद उपभोक्ताओं को सुलभ हो सकेंगे। केन्द्र द्वारा ऊँट की बहुआयामी उपयोगिता तलाशे जाने की दिशा में बढ़ी इस नई पहल (एमओयू) को ऊँट पालकों के लिए विशेष महत्व वाला बताते हुए डॉ. साहू ने कहा कि ऊँट पालकों को इसका सीधा लाभ मिल सकेगा।

डॉ.साहू ने इस अवसर पर अपील की कि अब ऊँट पालक, उष्ट्र दुग्ध व्‍यवसाय की सोच को पूरी तहर से अपनाते हुए इस दिशा में आगे बढ़े जिससे उष्ट्र दुग्ध व्यावसायीकरण के रूप में परिणत करने में मदद मिल सके। डॉ. आर.के. सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने कहा कि गाय व भैंस के दूध की प्रसंस्करण विधियां ऊँटनी के दूध के प्रसंस्करण में प्रत्यक्ष रूप से उपयोग नहीं लाई जा सकती है क्योंकि ऊँटनी के दूध की अलग विशेषताएं हैं, इसलिए केन्द्र के वैज्ञानिक नवीन विधियों द्वारा ऊँटनी के दूध के प्रसंस्करण तथा विविध गुणवत्तायुक्त उत्पाद बनाने के लिए प्रयासरत हैं। एमओयू अवसर के दौरान पर्ल लेक्टो डेयरी के संस्थापक अमन ढिल ने बताया कि यह कम्पनी मुख्य तौर पर गाय के दूध का व्यापार कार्य कर रही है, कंपनी की मंशा है कि औषधीय गुणवत्ता युक्‍त ‘कैमल मिल्क’ को बाजार में लाया जाना चाहिए ताकि दूध के व्यवसाय के साथ-साथ जरूरतमंद एवं आमजन को इसका लाभ मिल सके। कंपनी पूरे देश के अलग अलग शहरों में स्थित अपने पॉर्लरों एवं ऑनलाईन माध्यमों से पाउडर तथा उससे निर्मित उत्पाद उपलब्ध करवाएगी।

एनआरसीसी की उष्ट्र डेयरी प्रौद्योगिकी एवं प्रसंस्करण इकाई के प्रभारी डॉ. योगेश कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि केन्द्र द्वारा ऊँटनी के दूध से नवीन तकनीक द्वारा उष्ट्र दुग्ध पाउडर बनाने की विधि तथा अन्य महत्वपूर्ण तकनीकी पहलू कम्पनी को हस्तांतरित किए गए हैं। अब केन्द्र द्वारा विकसित तकनीकी से पर्ल लेक्टो कंपनी कैमल मिल्क पाउडर का उत्पादन कर सकेगी। डॉ. योगेश ने कहा कि एनआरसीसी द्वारा ऊँटनी के दूध से निर्मित मूल्य-संवर्धित सभी उत्पाद यथा- सुगन्धित दूध, कुल्फी, आईसक्रीम, पेड़ा, घी, मक्खन, चीज, चॉकलेट आदि की तकनीकों को भी केन्द्र द्वारा हस्तांतरित किए जाने के संबंध में प्रयास चल रहे हैं तथा कई व्यक्तिगत तथा कम्पनियों द्वारा तकनीक हस्तांतरण का अनुरोध किया जा रहा है। इसलिए इच्‍छुक उद्यमी, किसान, उत्पादक संगठन, एनजीओ, डेयरी उद्यमी, एजेंसीज तथा बेरोजगार व्यक्ति आदि केन्द्र के तकनीक प्रबंधन इकाई से सम्पर्क कर तकनीक हस्तांतरण के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा उभरने वाली इन प्रौद्योगिकीयों का उद्यम के रूप में लाभ उठा सकते हैं। एमओयू के इस अवसर पर केन्द्र के वैज्ञानिक गणों में डॉ. राकेश रंजन, डॉ. वेद प्रकाश, प्रशासनिक वर्ग से अखिल ठुकराल तथा पर्ल लेक्टो कम्पनी के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे।

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