Saturday, May 4, 2024
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बीकानेर की रम्मतें : आनन्दित करने का ये जादू आज भी है कायम

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बीकानेर abhayindia.com राजस्थान का बीकानेर शहर परम्पराओं का शहर है। इसे बीकाणा के नाम से भी जानते है। होली पर यह शहर रम्मतों की मस्ती और रंग में डूब जाता है। रम्मतों के माध्यम से इतिहास को जीवंत करने का प्रयास कर नई पीढ़ी को उससे रूबरू कराया जाता हैं। रम्मत के उस्ताद यानि कलाकार मौजूदा राजनीति और सामाजिक बुराइयों पर व्यंग कसकर होली के रंग को और गाढ़ा करने से नहीं चूकते। इस आयोजन को देखने में इतना मजा आजा है कि कब सुबह हो जाती है पता ही नहीं चलता। इस आयोजन को देखने अब सैलानी भी बीकानेर आते है।

रम्मत खेलने की परम्परा बीकानेर में करीब एक सदी पहले शुरू हुई थी। हालांकि इस विधा का उत्थान जैसलमेर से माना जाता है। रम्मत परम्परा को शुरू करने के संबंध में मान्यता है कि प्राचीन काल में होली पर बच्चे देवी—देवताओं, राक्षसों आदि के स्वांग रचकर गांव—मोहल्लों में घूमा करते थे। इस दौरान जो चन्दा मिलता था उससे सामूहिक भोजन जैसे आयोजन कर लेते थे। धीरे—धीरे इसका स्वरूप बदल गया। गायन को भी इसमें जोड़ दिया गया। फिर धार्मिक, सामाजिक मुद्दे और समस्याएं इसका हिस्सा बनती गई। जैसलमेर से बीकानेर आकर बसे कलाकारों ने बीकानेर में इसे बढ़ाया। जैसलमेर, पोकरण, फलौदी आदि में भी रम्मतें होती हैं।

रम्मत में कलाकार किसी किरदार का स्वांग रचकर खास विषय या घटना को गीत, छन्द और ख्यालों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इसमें रोचकता के लिए व्यंग का सहारा लिया जाता है। इन छन्दों, गीतों का निर्माण आमतौर पर कलाकार सामूहिक तौर करते है। सार्वजनिक तौर पर जब रम्मत खेली जाती है तो पूरा मोहल्ला रातभर जागता है। पुरूष कलाकार ही महिला किरदारों की भूमिका निभाते है। रम्मत आयोजन की तैयारियां बसंत पंचमी से शुरू हो जाती है। लेकिन, आगाज होलाष्टक से होता है। होलाष्टक के आठ दिन तक बीकानेर के अलग—अलग मोहल्लों में अलग—अलग रात रम्मतें खेली जाती है। बाहरगुवाड़ में फक्क्ड़दाता की रम्मत में ख्याल, चौमासा, और लावणी प्रस्तुत की जाती है।

बीकानेर में रम्मत परम्परा के परवान चढ़ने के दो कारण माने जाते है। बीकानेर सेठों की नगरी रही है। कई सेठ इस कला के प्रोत्साहन के रम्मत कलाकारों की आर्थिक मदद करते थे। तो कुछ सेठ इसलिए भी इन कलाकारों को महत्व देते थे कि कहीं वे रम्मतों में उनके कारनामों की पोल नहीं खोल दे। आज रम्मत का स्वरूप बदल गया है। इनके विषय बदल गए है। स्थानीय मुद्दों के साथ देश—दुनिया की राजनीति पर तंज इन रम्मतों में कसे जाते है।

By- Deepak Vyas

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