







बीकानेर abhayindia.com भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा उष्ट्र प्रजाति की औषधीय उपयोगिता एवं उष्ट्र पालन व्यवसाय की भावी संभावनाओं को लेकर 29 जनवरी को दोपहर 12 बजे समिति कक्ष में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजन किया जाएगा। इस अवसर पर एनआरसीसी के नए निदेेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू अपने विषय-विशेषज्ञ वैज्ञानिकों के साथ मीडिया-पत्रकार बन्धुओं से मुखातिब होंगे।
केन्द्र निदेशक डॉ.ए.साहू ने आयोजित होने वाले प्रेस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि ऊंट के विकास एवं संरक्षण हेतु केन्द्र द्वारा बहु आयामी बेहतर विकल्प खोजे जा रहे हैं। ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्मों को देखते हुए इसे एक ‘दूधारू पशु’ के रूप में स्थापित किए हेतु सफलता की ओर अग्रसर है। उष्ट्र दूध पर गहन शोध उपरांत ही यह पाया गया कि मधुमेह, टी.बी., ऑटिज्म आदि मानवीय रोगों के प्रबंधन में यह दूध लाभदायक है। केन्द्र के सतत प्रयासों द्वारा ही एफ.एस.एस.ए.आई. से ऊँटनी के दूध को कार्यात्मक खाद्य (फंक्शनल फूड) पदार्थ के रूप में मान्यता मिलने से देश में उष्ट्र दुग्ध विपणन की प्रबल संभावनाएँ जाग्रत हुई है। नतीजतन, आज ऊँट पालकों के कई गैर सरकारी संगठन तथा निजी एजेन्सियाँ, एनआरसीसी से प्रशिक्षित एवं प्रेरित होकर इस विपणन क्षेत्र में पदार्पण करते हुए लाभ कमा रहे हैं।
डॉ. साहू ने कहा कि पारिस्थिकीय पर्यटन (इको-टूरिज्म) को बढ़ावा देने हेतु केन्द्र द्वारा ऊँट संग्रहालय, उष्ट्र सवारी, ऊँट-गाड़ी सवारी, उष्ट्र दुग्ध डेयरी, उष्ट्र दुग्ध पार्लर, उष्ट्र बाड़ों के भ्रमण जैसी विविध गतिविधियां नियमित तौर पर संचालित किए जाने के अलावा अन्तर्राष्ट्रीय ऊँट उत्सव के तहत एनआरसीसी में ऊँट दौड़ प्रतियोगिता की सफलता आदि को देखते हुए बदलते परिदृश्य में ऊँट को पर्यटन-मनोरंजन आदि से जुड़े ऐसे अनेकानेक नए आयामों के रूप में भी स्थापित करना समय की मांग है। ऊँट प्रजाति में ऐसी अनेकानेक प्रबल संभावनाएं विद्यमान हैं जिससे ऊँट पालक भाइयों की आमदनी में बढ़ोतरी की जा सकती है तो निश्चित तौर पर वे इस व्यवसाय से जुड़े रहेंगे।
निदेशक ने केन्द्र के भावी परिदृश्य में ऊँट उत्पादन में बढ़ोत्तरी, ऊँटनी के दूध के औषधीय महत्व के साथ इसके बेहतर व्यावसायीकरण, बालों-खाद की उपयोगिता, उष्ट्र पर्यटन-उष्ट्र दौड़ एवं इसकी शारीरिक विलक्षणताओं के विकास एवं इस व्यवसाय के विविध एवं अन्य संभावित क्षेत्रों में उष्ट्र उपयोगिता को सिद्ध किए जाने हेतु आने वाली चुनौतियों के समाधान तलाशते हुए व्यावहारिक एवं गुणवत्तापूर्ण सुधार लाने की दिशा में तीव्र अनुसंधानिक प्रयास किए जाने की बात भी कही ।



