Monday, November 25, 2024
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बीकानेर एक नजर में

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थार के मरूस्थल में हिलोरे खाते धोरों के बीच बसा पांच शताब्दियों से अधिक पुराना शहर बीकानेर, अपनी भौगोलिक विशेषताओं के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक व ऐतिहासिक परम्पराओं के चलते राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अलहदा पहचान रखता है।

बीकानेर की पहचान यहां के स्थापत्य और प्रस्तर शिल्प, चित्रकला, हस्तकला से ही नहीं है, बल्कि यहां लोगों के बीच भाईचारा और सौहार्द भी सामाजिक समसरता से भी है। बीकानेर वासियों की सरलता, सहजता और जीवनशैली यहां के जीवन्त पक्ष को उजागर करती है, दूसरी ओर जिले में उपलब्ध खनिज सम्पदा, कृषि उत्पाद, भुजिया-पापड़, रसगुल्ला तथा ऊन उद्योग ने इस क्षेत्र को आर्थिक महत्त्व की दृष्टि से भी एक अलग पहचान दी है।

यहां की विषम जलवायु को देखते हुए ही यहां केन्द्रीय शुष्क उद्यानिकी संस्थान, उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, भेड़-ऊन अनुसंधान केन्द्र, अश्व अनुसंधान केन्द्रों जैसे अनुसंधान केन्द्र स्थापित किए गए हैं। बीकानेर में राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय तथा महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय की बदौलत अकादमिक शिक्षा के भी नए आयाम स्थापित हो रहे हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पनरै सौ पैंताळवे, सुद बैशाख सुमेर।

थावर बीज थरपियो, बीकै बीकानेर।।

जोधपुर के राव जोधा के पुत्र राव बीका ने विक्रम संवत् 1545 की बैशाख सुदी द्वितीया वार शनिवार तद्नुसार 3 अप्रैल, 1488 के दिन बीकानेर की नींव रखी। प्राचीन काल में जांगल प्रदेश के नाम से विख्यात रहा बीकानेर, राज्य के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित सामरिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण जिला है।

भौगोलिक स्थिति

क्षेत्रफल की दृष्टि से बीकानेर 30247.90 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में समाया हुआ है। यह जिला 27.11 एवं 29.03 उत्तरी अक्षांश एवं 71.54 व 74.22 पूर्वी देशान्तर के बीच अवस्थित है। जिले की सीमा 6 जिलों श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, नागौर, जोधपुर व जैसलमेर के साथ ही पाकिस्तान से भी जुड़ी है। बीकानेर की कोलायत व खाजूवाला तहसील की सीमा पाकिस्तान को छूती करती है। मोटे तौर पर जिले को दो प्राकृतिक भागों उत्तर-पश्चिम रेगिस्तान और दक्षिणी-पूर्वी अर्द्ध मरूस्थल में विभाजित किया जा सकता है। मरूस्थल होने के कारण यहां तापान्तर काफी पाया जाता है। गर्मियों में जहां धूल भरी आंधियां चलती हैं और तापमान 50 डिग्री के पास पहुंच जाता है, वहीं सर्दियों में पारा जमाव बिन्दु तक चला जाता है।

वनस्पति

नदी व पहाड़ विहीन इस जिले में ट्राॅपिकल प्रकार के वन मिलते हैं। यहां आमतौर पर खेजड़ी, रोहिड़ा, बेर, जाल, पीलू, बबलू, कीकर, झाड़ियां इत्यादि के वृक्ष पाए जाते हैं। नहरों व तालाबों के किनारे तथा उद्यानों में शीशम, पीपल, नीम, वट, सरेस तथा यूकेलिप्ट्स (सफेदा) इत्यादि के वृक्ष भी देखे जा सकते हैं। इनके अलावा आक, फोग, बुई, पाला, करील, सिवाना, मंजू व काना, सेवण जैसी उपयोगी घास व झाड़ियां भी पाई जाती हैं। यहां मिलने वाले वन्य जीवों में भारतीय मृग, ब्लेक बक, चिंकारा, लोमड़ी, गीदड़, मैन्गूज, साही गिलहरी, जंगली रीछ, सूअर व भेड़िया आदि प्रमुख है।

पर्यटन स्थल

गौरवमयी इतिहास को अपने आंचल में समेटे बीकानेर जिला कला, साहित्य एवं संस्कृति के लिए जाना जाता है। दूर तक लहराता रेत का समन्दर पर्यटकों के लिए आकर्षक का केन्द्र है, तो श्रीकोलायत का पावन सरोवर, जूनागढ़ का ऐतिहासिक किला, लालगढ़ पैलेस, रामपुरिया हवेलियों में मानों पत्थर भी जुबानी बोल पड़ते हों। धार्मिक पर्यटन केन्द्र के रूप में भी जिले की अपनी अलग पहचान है।

गत कई वर्षों से नियमित रूप से आयोजित किए जा रहे  ऊंट महोत्सव ने बीकानेर के पर्यटन को कुछ ही अरसे में अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर विशिष्ट पहचान दिलाई है। जिला प्रशासन व पर्यटन विभाग के प्रयासों से यहां के पर्यटन स्थलों का निरन्तर विकास किया जा रहा है। यहां के प्रमुख पर्यटन एवं तीर्थस्थलों की बानगी इस प्रकार है

श्रीकोलायत

सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल की तपोभूमि श्रीकोलायत बीकानेर से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्री कोलायत का सुरम्य सरोवर व उसके 52 घाटों के साथ ही पास में बने सभी मंदिर बेहद सुंदर हैं। यहां प्रतिवर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा को भव्य मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह स्थान हिन्दू व सिख श्रद्धालुओं का संगम स्थल बन जाता है।

गजनेर

मरू प्रदेश का नैसर्गिक सौन्दर्य गजनेर में देखने को मिलता है। बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर जैसलमेर रोड पर स्थित गजनेर में झील, महल, वन्य जीव अभ्यारण्य, अप्रवासी पक्षियों का कलरव तथा तालाब में किलकारियां करते पक्षियों के झुण्ड बरबस ही राहगिरों का ध्यान आकर्षित करते हैं। यहां स्थित प्राचीन गोपाल मंदिर के उद्यान को रमणीय बनाया गया है। इस स्थान को पक्की सड़क व अन्य सुविधाओं से जोड़ कर एक ऊंचे टीले को उद्यान के रूप में विकसित किया गया है। इस परिसर को बीकानेर की स्थापत्य कला के अनुरूप गुमटियां व रैलिंग लगाकर नया स्वरूप दिया गया है।

देशनोक

बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर स्थित देशनोक का करणी धाम अपनी धार्मिक महत्ता, स्थापत्य कला तथा काबों (चूहों) के कारण विश्व प्रसिद्ध है। हर वर्ष देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। नवरात्रा में भव्य मेला लगता है। देशनोक की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता के मद्देनजर राज्य सरकार द्वारा करणी पैनोरमा का निर्माण करवाया गया है।

देवीकुण्ड सागर

बीकानेर से सात किलोमीटर दूर स्थित देवीकुण्ड सागर, तालाब एवं ऐतिहासिक महत्व के मंदिरों की श्रंृखला के कारण रमणीय स्थल है। इसके पास ही पूर्व बीकानेर राजघराने की छतरियां शिल्प व सौन्दर्य में अद्भुत हैं।

मुकाम

जिले की नोखा तहसील के मुकाम में गुरू जम्भेश्वर की तपोभूमि स्थित है। गुरू जम्भेश्वर के समाधि स्थल पर वर्ष में दो बार विशाल मेला लगता है। यहां प्रदेश के साथ हरियाणा, पंजाब, उत्तर-प्रदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

भाण्डाशाह जैन मंदिर

शिल्प सौन्दर्य के लिए विख्यात भाण्डाशाह जैन मंदिर, बीकानेर शहर के हृदय स्थल में स्थित है। मंदिर में कांच व सोने की अद्भुत कलाकारी पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकृष्ट करती है। कहते हैं कि इस मंदिर की नींव घी से भरी गई थी। मंदिर के गुम्बज की सीढ़ियों से ऊपर मंदिरों की श्रंृखला में नक्काशी का कार्य मंत्रमुग्ध करने वाला हैं। (फोटो भांडाशाह जैन मंदिर)

श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर

भाण्डासर जैन मंदिर के समीप ही स्थित है बीकानेर का प्रसिद्ध श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर। ‘नगरसेठ’ के नाम से विख्यात, इस मंदिर में संगमरमर एवं लाल पत्थरों का अद्भुत कार्य रोमांचित कर देने वाला है। बीकानेर वासियों की इस मंदिर के प्रति अपार श्रद्धा है। मंदिर परिसर में नगर विकास न्यास द्वारा विकसित पार्क, फव्वारों एवं झूलों के कारण पर्यटन दृष्टिकोण से इसकी महत्ता बढ़ गई है।

आचार्य तुलसी समाधि

बीकानेर शहर के उपनगर गंगाशहर में स्थित तुलसी समाधि स्थल भी अपार श्रद्धा का स्थान होने के साथ ही स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है।

कोडाणा भैरूनाथ मंदिर

बीकानेर से लगभग 24 किलोमीटर दूर बीकानेर-जैसलमेर रोड पर कोडमदेसर स्थित कोडाणा भैंरवनाथ का ऐतिहासिक मंदिर व तालाब है। भैरूजी की विशाल प्रतिमा व संगमरमर का कार्य अत्यन्त सुन्दर हैं। यहां विभिन्न जातियों के लोग जात-झड़ूला के लिए आते हैं।

जसनाथजी मंदिर

धोरों के बीच बसे कतरियासर गांव में भगवान जसनाथजी व देवी कालदे का मंदिर शिल्पकला का अनूठा नमूना है। मंदिर सिद्ध सम्प्रदाय ही नहीं आम श्रद्धालुओं की आस्था, विश्वास तथा पर्यटन विकास का प्रमुख केन्द्र बन चुका है। यहां साल में दो बड़े मेले भरते हैं तथा अग्नि नृत्य का भव्य आयोजन होता है।

सुसवाणी माता मंदिर

नोखा तहसील का सुसवाणी माता मंदिर जैन सुराणा व दुग्गड़ समुदाय के साथ हजारों लोगों की श्रद्धा का स्थल है। मंदिर में नवरात्रा के दौरान विशाल मेले, भक्ति संगीत का आयोजन होता है।  इनके अतिरिक्त शिवबाड़ी का ऐतिहासिक भगवान लालेश्वर-श्रीडूंगरेश्वर महादेव मंदिर, धनीनाथ गिरि मठ पंच मंदिर (कोटगेट के अंदर), नागणेचीजी मंदिर (पवनपुरी), सुजानदेसर में बाबा रामेदव मंदिर व कालीमाता मंदिर, भीनासर में मुरली मनोहर मंदिर, गंगाशहर का गोपेश्वर मंदिर भी श्रद्धा व भक्ति के महत्त्वपूर्ण स्थल है।

राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र

एशिया का प्रथम राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र बीकानेर के पर्यटन स्थलों में अहम स्थान रखता है। यहां ऊंटों पर अनुसंधान होता है। इस केन्द्र में स्थित ऊंटों के बाल व दूध से बने विभिन्न उत्पाद तथा ऊंटों की विभिन्न नस्लों आदि से संबंधित संग्रहालय आकर्षण का विशेष केन्द्र है।

राजकीय संग्रहालय

गंगा गोल्डन जुबली म्यूजियम के नाम से विख्यात राजकीय संग्रहालय, सर्किट हाउस के पास स्थित है। संग्रहालय में कला, इतिहास, संस्कृति, पुरातत्व, वस्त्रालय, शस्त्रागार आदि कक्ष बने हुए हैं, जिनमें बीकानेर रियासत की वर्षों पुरानी पल्लू की सरस्वती प्रतिमा सहित अनेक वस्तुओं का संग्रहण है। जूनागढ़ किले में एक संग्रहालय ‘प्राचीना’ भी स्थित है। यह अपने लोक कला संग्रहण के कारण अद्वितीय है। इसके अलावा पुरातत्व एवं ऐतिहासिक वस्तुओं के संग्रहण के कारण लालगढ़ संग्रहालय की भी अलग पहचान है।

टैस्सीटोरी समाधि स्थल

मूलतः इटली के रहने वाले राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विद्वान डाॅ. एल. पी. टैस्सीटोरी को बीकानेर क्षेत्र का मरूस्थलीय जीवन, लोक संस्कृति, भाषा व व्यवहार इतना भाया कि वे यहीं के होकर रह गये थे। उनकी समाधि सर्किट हाउस के पास स्थित हैं। टैस्सीटोरी के लेखन, शोध व अनुसंधान का कार्य अभिलेखागार में उपलब्ध है।

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