घर में रसोई वह स्थान है जहाँ से परिवार के सभी सदस्यों का भरण पोषण होता है। रसोई के महत्व को बताते हुए महाभारत में कहा गया है- “अन्नाद् भावंति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः यज्ञादन्नं समभवत् यज्ञस्तस्मादन्नमभवत्” इस श्लोक में रसोई के महत्व को दर्शाया गया है, जिसमें कहा गया है कि अन्न के बिना जीवन संभव नहीं है, और अन्न का उत्पादन वर्षा पर निर्भर करता है, जो यज्ञ से उत्पन्न होती है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि रसोई उपयुक्त स्थान पर नहीं हो तो जीवन में परेशानियाँ होना स्वाभाविक ही है। अतः वास्तु शास्त्र के अनुसार रसोई अग्नि कोण में होना उत्तम माना जाता है। सवाल उठता है अग्नि कोण कौनसा है इसका जवाब वास्तु ग्रन्थ विश्वकर्मा प्रकाश देता है। “आग्नेये वा तु पूर्वदक्षिणे पाकशाला विनिर्मिता नैऋत्ये वा नोत्तरे वा नोत्तिष्ठेत् पाकशालिकः” इसका आशय है रसोई का स्थान आग्नेय कोण या पूर्व-दक्षिण दिशा में होना चाहिए, और नैऋत्य कोण या उत्तर दिशा में नहीं होना चाहिए।
किचन ऐसी जगह पर होना चाहिए जहां से मुख्य दरवाजे के बाहर से किचन का चूल्हा न दिखाई दे। खाना बनाते वक्त आपका मुख पूर्व दिशा की ओर रहना चाहिए तथा यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भोजन करते समय मुख पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। पद्मपुराण में कहा गया है – प्राच्यां नरो लभेदायुर्याम्यां प्रेतत्वमश्नुते। वारुणे च भवेद्रोगी आयुर्वित्तं तथोत्तरे॥ ‘पूर्व की ओर मुख करके खाने से मनुष्य की आयु बढ़ती है, दक्षिण की ओर मुख करके खाने से प्रेतत्व की प्राप्ति होती है, पश्चिम की ओर मुख करके खाने से मनुष्य रोगी होता है और उत्तर की ओर मुख करके खाने से आयु तथा ध नकी प्राप्ति होती है।’
रसोई घर में स्लैब या बर्तन रखने की अलमारी को दक्षिण या पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए। रसोई में उपयोग होने वाले मसालों और खाद्य पदार्थ को उत्तर-पश्चिम दिशा में रखा जाना चाहिए। वहीं ध्यान रखें कि किचन में बनी रोशनदान या खिड़कियां बड़ी होनी चाहिए।
बिजली के उपकरण जैसे माइक्रोवेव, मिक्सी आदि, बिजली उपकरणों को आप दक्षिण पूर्व कोने में रख सकते हैं। इसके अलावा बर्तन स्टैंड या कोई अन्य भारी वस्तु दक्षिण या पश्चिम दिशा में रखें। रसोई की पूर्व और उत्तर दिशा में कोई हल्का सामान रखना चाहिए।
कभी भी रसोईघर के ठीक सामने शौचालय नहीं होना चाहिए। वहीं, शौचालय के ऊपर या नीचे भी किचन का होना ठीक नहीं माना जाता। ऐसा होने पर घर परिवार के लोगों के स्वास्थ्य और उनकी वित्तीय स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, पीने के पानी का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। पानी की बोतलें, आर/ओ प्यूरीफायर, मिट्टी के बर्तन या पानी से संबंधित कोई भी बर्तन उत्तर-पूर्व दिशा में रखना चाहिए।रसोईघर का प्रवेश द्वार भी बहुत महत्वपूर्ण है। रसोईघर का दरवाज़ा पूर्व, पश्चिम या उत्तर दिशा में होना चाहिए।खाना बनाते समय ध्यान रखें कि आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर न हो, क्योंकि इससे खाना बनाने वाले व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं और परिवार को आर्थिक नुकसान हो सकता है।
रसोईघर का फर्श और दीवार कभी भी काले रंग में न रखें। स्टोव या हॉब को रसोईघर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने नहीं रखा जाना चाहिए। रात को सोने से पहले हमेशा अपने रसोईघर और बर्तनों को साफ करें।
किचन में पूजा का स्थान बनाना भी शुभ नहीं होता है। जिन घर में किचन के अंदर ही पूजा का स्थान होता है उस घर में रहने वाले गरम दिमाग के होते हैं और परिवार में किसी सदस्य को रक्त सम्बन्धी शिकायत भी हो सकती है।
आजकल कुछ घरों में पाश्चात्य देशों की होड़ में ओपन किचन बनवाने का ट्रेंड चल रहा है, जहाँ किचन हॉल के एकदम सामने होता है और किचन में दरवाज़ा नहीं होता। जरूरत पड़ने पर किचन के गेट पर केवल पर्दा लटका दिया जाता है। घर में किचन की यह स्थिति बहुत ही खतरनाक और अशुभ होती है।
“वास्तु राज वल्लभ” ग्रन्थ में कहा गया है – “पाकशाला विकृता यस्य मतभेदः कुले भवेत् वास्तुदोषेण कुलम् नश्यति न संशयः” इसका आशय है “जिसके घर में रसोई वास्तु सम्मत नहीं है, वहाँ पारिवारिक सदस्यों में मनमुटाव और मतभेद होते हैं। वास्तु दोष के कारण कुल का नाश होता है, इसमें कोई संशय नहीं है।”
दूषित किचन वाले घर में रहने वालों की रिश्तेदारों के साथ शत्रुता रहती है। गृहस्वामी के कितने ही मित्र हों धीरे-धीरे वह दूर होते जाते हैं। सास बहू में झगड़ा होने लगता हैं। घर की वह महिला जो गर्भधारण करने की उम्र में है, उसे गर्भधारण करने में या बच्चा होने में परेशानियाँ आती हैं। उस घर के बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में तरक्की नहीं कर पाते। किचन के इस वास्तुदोष को दूर करने के लिए किचन में दरवाजा लगाएँ ताकि किचन और लिविंग रूम अलग-अलग हो जाए। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431