बीकानेर abhayindia.com ‘पुष्करणा सावा फिर आया, मंगल गीत गाना है, झूठी शान-शौकत के दिखावे में कर्ज तुम बढ़ाना मत, शादी है एक पवित्र बंधन, इसे अपवित्र करना मत, मंगलमय हो सावा अपना…कवियत्री डॉ.कृष्णा आचार्य ने पुष्करणा सावे पर अपने विचारों को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोया है।
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गोष्ठी में कवि संजय आचार्य(वरुण) ने विदाई गीत पर आधारित रचना सुनाकर सभी को भाव विभोर कर दिया। आचार्य ने ‘चिड़कली उडऩे को तैयार, आज चिड़े संग उड़ जाएगी, अपने पंख पसार… गीत के माध्यम से बेटी की विदाई के बाद परिजनों के दर्द को शब्दों से बयां किया।
मितव्यता का धोतक है सावा…
साहित्यकार, कवियत्री डॉ.कृष्णा आचार्य ने पुष्करणा सावे को मितव्यता का धोतक बताया। आचार्य ने कहा कि समाज के सामूहिक विवाह समारोह की परम्परा रियासकाल से चली आ रही है। इसे अपनाकर युवा पीढ़ी फिजुलखर्ची से बच सकती है। साथ ही शहर की संस्कृति का साक्षात उदाहरण यह सावा है। लोगों को इसमें अधिकाधिक रूप से भागीदारी निभानी चाहिए। वहीं अपनी परम्परा के अनुसार युवाओं को विष्णु स्वरूप में दूल्हा बनकर जाना चाहिए।