










वास्तु विज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जिसमें दिशाओं की ऊर्जा को महत्व दिया गया है। आज से लाखों वर्षों पहले हमारे ऋषि मुनियों ने पंचतत्व की ऊर्जा और मनुष्य के जीवन में पड़ने वाले उनके प्रभाव का अध्ययन कर लिया था इसलिए वास्तु को प्रमाणिक विज्ञान माना जाता है। वास्तु शास्त्र किसी भी प्रकार के भवन निर्माण से जुड़ा होता है। यह भवन निर्माण की शुभ अशुभ चीजों को दर्शाता है। साथ ही वास्तु शास्त्र किसी भी भवन निर्माण से जुड़ी समस्याओं और उसके निवारण से अवगत कराता है। यह भूमि, दिशाओं और ऊर्जा के अनुसार कार्य करता है। इसको ध्यान में रखकर बनाया गया घर हमारे जीवन को खुशियों से भर देता है परंतु फिर भी कुछ ऐसे विषय हैं जिन पर प्रायः हमारा ध्यान नहीं जाता है जैसे कि वेध।
वेध का तात्पर्य है प्रकाश और वायु के मार्ग में रुकावट। मकान में वेध कई तरह के होते हैं। मुख्य द्वार के सामने किसी तरह की बाधा होती है उसे द्वार वेध की संज्ञा दी जाती है। इस संबंध में वास्तु राजबल्लभ में कहा गया है- द्वावारां विद्धमशोभन्स्व तरूणा कोणभ्रमस्तम्भकैः। उच्छायाद्वद्विगुणा विहाय पृथ्वी वेधो न मित्यन्तरे, प्राकारान्तर राजमार्गपस्तों वेधो न कोणद् वये।। इसका आशय है द्वार के सामने वृक्ष, कोण, कोल्हु, खंभा, कुआं, आम रास्ता, मंदिर या कील वैध हो तो द्वार के लिए शुभ नहीं है। मुख्य द्वार के सामने बिजली या टेलीफोन के पोल, पेड़-पौधे या पानी का टंकी होना भी द्वार वेध कहलाता है। मुख्य द्वार के सामने कुआं, हैंडपम्प या पानी की व्यवस्था हो तो मानसिक असंतुलन बना रहता है तथा घर में धन की कमी बनी रहती है। अतः इस वेध के कारण मकान में रहने वाले हमेशा परेशान रहते हैं।
द्वार वेध के कारण वित्तीय समस्याएं तथा स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यहाँ तक संबंधों में भी तनाव उत्पन्न हो सकता है। मुख्य द्वार के सामने वृक्ष वेध का होना बच्चों के विकास में बाधक होता है। विद्युत या टेलीफोन के खंभे रहने से भी घर में निवास करने वाले हमेशा परेशान रहते हैं तथा बेवजह इन्हें रोगों का सामना करना पड़ता है तथा घर में लक्ष्मी का अभाव बना रहता है। परंतु मकान की ऊँचाई से दुगुनी ऊँचाई की दूरी पर कोई द्वार वेध हो तो उसे वेध नहीं माना जाता है।
दरवाजा खोलते या लगाते समय कर्कश आवाज होना स्वर वेध कहलाता है। स्वतः दरवाजे का खुलना या बंद होना दरवाजे को दीवार या भूमि आदि से रगड़ते खुलना या बंद होना तथा दरवाजे के आर-पार किसी भी तरह का छिद्र होना अच्छा फल नहीं देता है। यह भवन में निवास करने वालों के लिए नाना प्रकार के विघ्न, बाधा एवं संकट उत्पन्न करते हैं। अतः भवन को इस दोष से मुक्त होना चाहिए।
मकान में कोई कोण छोटा हो तो इसे कोण वेध कहते हैं। ऐसे मकान में रहने वालों को मृत्यु तुल्य कष्ट झेलना पड़ता है जो असमय ही जिन्दगी का नाश कर देता है। अतः मकान के चारों कोण समकोण होने चाहिए। यदि मकान के 3, 5 या अधिक कोने हों तो भी कोण वेध होता है। ऐसे मकान में रहनेवालों को विभिन्न बीमारियां होने की संभावना रहती है।
भवन के मुख्य द्वार के सामने सेप्टिक टैंक, पानी की भूमिगत टंकी, हैंडपंप, नल, भूमिगत नाली या नहर का होना कूपवेध कहलता है। इस वेध के फलस्वरूप धन की कमी बनी रहती है अतः भवन को इस दोष से मुक्त रखना चाहिए। मकान पर पेड़, मंदिर, पहाड़, ध्वजा आदि की छाया नहीं पड़नी चाहिए। घर पर किसी पेड़ की छाया पड़ती हो तो उस पर निद्रा देवी का राज रहता है। ऐसे घर में रहने वाले लोग तमोगुणी और अंध विश्वासी होते हैं। वे अस्थि पीड़ा, पित्तजन्य कष्ट, तपेदिक, सायटिका एवं संधिवात जैसे भयानक रोगों से पीड़ित रहते हैं।
ऐसे मकान में रहनेवालों की बीमारी का निदान डॉक्टर भी नहीं कर पाते। अतः मकान पर किसी भी तरह की छाया नहीं पड़नी चाहिए। कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि कोई भी गली या सड़क आगे जाकर बंद हो जाती है और उस स्थान पर कई भूखंड होते हैं। अतः जो इस प्रकार के भूखंड होते हैं उनमें मार्ग के अंत वाला भूखंड बंद या कैदी भूखंड कहलाता है। यह भूखंड रिहायशी अर्थात् आवासीय दृष्टिकोण से शुभ एवं उपयोगी नहीं होता अतः इस तरह के भूखंड को त्याग देना चाहिए। अनुभवों में ऐसा देखा गया है कि इन घरों में रहने वाले संभवतः एक ही बीमारी से ग्रसित रहते हैं।
आजकल बहुमंजिली इमारतों में मुख्य द्वार को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं, क्योंकि ऐसे भवनों में एक या दो मुख्य द्वार न होकर अनेक द्वार होते हैं जैसे कि चारदीवारी का मेन गेट, अपने ब्लाक में आने का द्वार, लिफ्ट अथवा सीढिय़ों का प्रथम दिशा, ऊपर की मंजिलों के दोनों ओर के फ्लैटों के बीच का कारीडोर। अब ऐसी स्थिति में किस द्वार को मुख्य द्वार मानें यह एक समस्या है। सनद रहे फ्लैट में अंदर आने वाला आपका अपना दरवाजा ही आपका मुख्य द्वार होगा।
द्वार वेध के निवारण के उपाय के लिए दरवाजे के सामने की वस्तुओं को हटाकर द्वार वेध के प्रभाव को कम किया जा सकता है।वास्तु पूजन करने से भी द्वार वेध के प्रभाव को कम किया जा सकता है तथा दरवाजे के रंग और डिज़ाइन को वास्तु शास्त्र के अनुसार चुनने से द्वार वेध के प्रभाव को कम किया जा सकता है। घर के मुख्य द्वार पर सिंदूर से स्वस्तिक बनाने से वास्तुदोष के प्रभाव में कमी आती देखी गई है। बाँसुरी का भी उपयोग वास्तु शास्त्र और ग्रह दोष निवारण में बहुत ही उपयोगी है। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431





