Monday, March 3, 2025
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अस्पताल में मरीज के मर्ज को मिटाने में कारगर  है ये वास्तु उपाय 

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वास्तु शास्त्र वास्तुकला नियोजन का प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो दिशा, स्थान संरेखण और लेआउट के सिद्धांतों को परिभाषित करता है। यह सत्य है वास्तु शास्त्र पुरातन है लेकिन इस विज्ञान के कुछ व्यावहारिक पहलू आज के समय में भी लागू होते हैं।

अस्पताल ईंटों और सीमेंट से बनी इमारतों से कहीं बढ़कर हैं, वे उम्मीद और उपचार के आश्रय हैं। उन्हें सकारात्मक वाइब्स को बढाने के हिसाब से डिज़ाइन किया जाना चाहिए ताकि उपचार सुनिश्चित हो और रिकवरी तेज़ हो। बीमार, चिंतित और उदास लोग अस्पतालों में आते हैं। यह अनिवार्य है कि अस्पताल का वातावरण उनमें सकारात्मक ऊर्जा भर दें। यदि वास्तु शास्त्र को आपके वास्तुशिल्प डिजाइन का अभिन्न अंग बनाया जाता है, तो सकारात्मकता और समृद्धि बढ़ेगी। आपके अस्पताल की साइट पर एक ईंट भी रखे जाने से पहले नियोजन चरण के दौरान ही सरल वास्तु शास्त्र सिद्धांतों को आपके ब्लूप्रिंट में शामिल किया जा सकता है।

वास्तु शास्त्र को लेकर अभी भी बहुत से लोगों में यह भ्रम है कि इसका प्रयोग केवल घर तथा ऑफिस में ही किया जा सकता है। वास्तविकता यह है कि वास्तु का उपयोग न केवल घर या ऑफिस वरन हॉस्पिटल्स, क्लिनिक और लैब बनाने में भी किया जा सकता है इसलिए मरीजों के हित और शीघ्र स्वास्थ्य लाभ  के लिए हॉस्पिटल एवं नर्सिंग होम में वास्तु नियमों का पालन किया जाना आवश्यक है। आधुनिक मेडिकल साइंस और प्राचीन भारतीय वास्तु के मेल से मरीज तेजी से रिकवर होंगे, वहां के डॉक्टर व अन्य स्टाफ खुश रहेंगे तथा हॉस्पिटल संचालक भी लाभ उठा सकेंगे।

वास्तु के अनुसार, हॉस्पिटल का रिसेप्शन नॉर्थ-ईस्ट या नॉर्थ दिशा में बनाया जाना चाहिए। प्रवेश द्वार के पास एक बगीचा या पार्क मरीजों को प्रकृति से जुड़ने और मन की शांति और स्थिरता प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यदि यह संभव नहीं है, तो गमले में लगे पौधे और ताजे फूल लगाएँ। रिसेप्शन का फ्लोर बाकी बिल्डिंग के मुकाबले में नीचा होना चाहिए। इसके साथ ही रिसेप्शन पर बैठने वाले रिसेप्शनिस्ट का मुंह नॉर्थ या ईस्ट दिशा में इस तरह होना चाहिए कि वह मेन एंट्रेंस से आने-जाने वालों पर नजर रख सकें। ऐसा होने से अस्पताल प्रबंधन को बहुत फायदा होगा तथा वहां पर मरीज जल्दी स्वस्थ होंगे।

हॉस्पिटल में कई तरह के रूम होते हैं जिन्हें स्पेशलाइजेशन के आधार पर अलग-अलग कैटेगरी में बांटा जाता है, जैसे सर्जरी, आईसीयू, ऑपरेशन कक्ष, पेशेंट रूम, स्टाफ रूम, विजिटर्स, रिसेप्शन आदि। ऑपरेशन थिएटर को हमेशा हॉस्पिटल की पश्चिम दिशा में बनाया जाना चाहिए। यदि यह संभव नहीं हो तो इसे साउथ-वेस्ट डायरेक्शन में बनाया जा सकता है। ऑपरेशन थिएटर में एंट्री करते ही साउथ-ईस्ट डायरेक्शन में भारी मशीनें तथा उपकरण रखे जाने चाहिए।

हॉस्पिटल एवं नर्सिंग होम में भर्ती मरीजों के पैर कभी भी दक्षिण दिशा में नहीं होने चाहिए। ऑपरेशन करते  डॉक्टर का चेहरा पूर्व या उत्तर की ओर रहे। जिस भूखंड पर  हॉस्पिटल एवं नर्सिंग होम बना हो, उसका ढलान पूर्व या उत्तर दिशा में होना शुभ होता है। दक्षिण की ओर ढलान होना अशुभ  है। मरीजों को देखते समय डॉक्टर का चेहरा पूर्व या उत्तर दिशा में होना जरूरी है।

सूर्य हमारे ग्रह के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। सूर्य के प्रकाश में उपचार करने की शक्ति होती है। यह विटामिन डी प्रदान करता है जो प्रतिरक्षा और हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए एक आवश्यक तत्व है। वास्तु प्राकृतिक प्रकाश तक पहुँच को बहुत महत्व देता है। अस्पताल के प्रत्येक कमरे में बड़ी खिड़कियाँ होनी चाहिए ताकि सूरज की रोशनी अंदर आ सके। प्रत्येक कमरे को उज्ज्वल और अच्छी तरह से प्रकाशित करने के लिए रोशनदान या गुंबदों की योजना बनाई जानी चाहिए।

हवा ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत है। ऑक्सीजन के बिना जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है। उपचार के लिए भी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। अस्पताल के प्रत्येक कमरे को क्रॉस-वेंटिलेशन के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए। अस्पताल के मध्य भाग को खुला और विशाल रखा जाना चाहिए।

हॉस्पिटल में मंदिर या पूजा स्थल उत्तर पूर्व दिशा में बनवाना उत्तम होता है। पीने के पानी की व्यवस्था भी उत्तर पूर्व दिशा में ही होनी चाहिए। बाथरूम को पूर्व या उत्तरी दिशा में बनाया जाना चाहिए। मेडिकल बुक्स, थीसिस तथा जर्नल्स की रैक्स को साउथ या वेस्ट दिशा में रखा जाना चाहिए। हॉस्पिटल में उपयोग होने वाली इलेक्ट्रॉनिक मशीन जैसे एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई आदि के लिए दक्षिण पूर्व दिशा सर्वोत्तम है।

वास्तु के नियमों का पालन करने पर इन बिल्डिंग में पॉजिटिव वाइब्स आती है एवं वहां का पूरा माहौल ही बहुत आरामदायक और शांत हो जाता है। इसके असर से मरीजों को भी जल्दी आराम मिलता है। इन सबके साथ-साथ सबसे बड़ी बात, हॉस्पिटल के संचालन में भी कोई परेशानी नहीं आती। -सुमित व्यास, एम.ए (हिंदू स्टडीज़), काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मोबाइल – 6376188431

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